” आ रहा हूँ…।” लगातार काॅलबेल बजते देख
आकाश दरवाज़े की ओर जाते हुए ज़ोर-से बोला।उसने लैपटाॅप का बैग अपने कंधे पर डाला और दरवाज़ा खोला तो सामने मनोहर काका के साथ लाल साड़ी पहने, माँग में सिंदूर- माथे पर बड़ी बिंदी लगाये बाईस वर्षीय युवती को देखकर वो चकित रह गया।
” तुम…काका, आप इसे लेकर यहाँ क्यों आये…मेरा इसके साथ कोई संबंध नहीं है।” वो लगभग चीखते हुए बोला।
” ऐसा नहीं कहते बेटा…ये तुम्हारी ब्याहता पत्नी है।पिता के देहांत के बाद अब इसका तुम्हारे सिवा और कौन है।तुम्हारी अमानत लौटा कर मैं भी अब अपने बेटे के पास जा रहा हूँ।” कहते हुए मनोहर काका ने युवती को अंदर जाने का इशारा किया और साथ लाये बक्सा को फ़र्श पर रखते हुए युवती से बोले,” अब यही तुम्हारा घर है और आकाश…।” युवती ने अपनी गर्दन हिलाकर सहमति दी और उनके चरण-रज़ लेकर अपने मस्तक पर लगा लिया।
” लेकिन काका…।” आकाश पुकारता रह गया, तब तक में मनोहर काका ऑटोरिक्शा में बैठकर जा चुके थे।उसने क्रोध-से युवती को देखा और अपने पैर पटकता हुआ ऑफ़िस चला गया।
अपने केबिन में बैठकर वह लैपटाॅप पर काम करने की कोशिश करने लगा लेकिन बार-बार उसकी आँखों के सामने युवती का चेहरा आ जाता था।
आकाश जब आठवीं कक्षा में था तभी एक दुर्घटना में उसके माता-पिता का देहांत हो गया था।तब उसके चाचा-चाची ने ही उसकी देखभाल की और उसकी पढ़ाई पूरी करवाई।मुंबई के एक मल्टीनेशनल कंपनी में वह ज़ाॅब करने लगा तब एक दिन उसके चाचा ने उसे फ़ोन करके घर बुलाया और कहा कि मैंने तुम्हारे लिये एक सुंदर-सुशील लड़की पसंद की है..नाम वसुधा है।तुम भी एक बार मिलकर तसल्ली कर लो तो बात…।उसे अपने चाचा पर पूरा विश्वास था, इसलिए उसने कहा कि आपने देख ली है तो मैं क्या…।फिर भी आपका मन रखने लिये कल जाकर मैं मिल लेता हूँ।
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वसुधा की बड़ी-बड़ी आँखें और उसके लंबे-घने बालों के आकर्षण से आकाश स्वयं को रोक न सका।उसने एक-दो प्रश्न किया, जिसका जवाब वसुधा ने अपनी गरदन हिला कर दिया।आकाश ने समझा कि वो शरमा रही है…।बस उसने चाचा को हाँ कह दिया।
दुल्हन बनी वसुधा ने जब अपना चेहरा आईने में देखा तो लजाकर हथेली में छुपा लिया।आशीर्वाद देते समय उसके पिता की आँखें भर आईं।उनकी बेटी कितनी #किस्मतवाली है जो उसे आकाश जैसा अच्छा वर मिला है।मेरी बेटी अपने घर में राज करेगी…।
फेरे होने के बाद वर-वधू एकांत में मिले..आकाश बोला,” अब तो हमारी शादी हो गई..अब तो बताओ कि मैं तुम्हें कैसा लगता हूँ।”
वसुधा ने हाथ के इशारे-से कहा कि बहुत अच्छे।आकाश का माथा ठनका..वह चिल्लाया,” तुम बोल क्यों नहीं रही…क्या तुम…।”
इस बार वसुधा ने स्पष्ट कर दिया कि वो बोल-सुन नहीं सकती।सुनते ही आकाश के पैरों के नीचे से ज़मीन निकल गई।वह भागकर अपने चाचा के पास गया और शिकायत की तो वो बोले,” बेटा..लड़की सुशील है..बोल नहीं सकती है तो क्या..तेरा घर..।” आकाश समझ गया कि चाचा ने पैसों के लालच में उसके अरमानों का सौदा कर दिया है।उसने चाचा से अपना रिश्ता तोड़ लिया और वसुधा को उसी हाल में छोड़ कर मुंबई आ गया।
आकाश अपने विवाह को एक हादसा समझकर भूल गया और उसने अपने साथ काम करने वाली निशा के साथ दोस्ती कर ली।सब कुछ अच्छा चल रहा था कि अचानक गाँव में बीमारी फैली जिसमें वसुधा के पिता की मृत्यु हो गई।माँ पहले ही स्वर्ग सिधार गई थी..तो मनोहर काका वसुधा को लेकर उसके पास चले आये।अब उसे वसुधा को अपने….।
” आकाश…कहाँ खोये हो…न तो तुमने मेरा मैसेज़ पढ़ा और न ही फ़ोन पिक किया..एनीथिंग राँग…।” निशा की आवाज़ सुनकर उसने अपनी सोच को विराम दिया।
” नहीं…कुछ नहीं..देर से सोया तो सिर भारी है।” उसने बात टाल दी और जल्दी काम निपटाकर घर चला गया।
घर पहुँचकर आकाश ने काॅलबेल बजाई.. फिर उसे याद आया कि वो तो सुन नहीं…। उसने चाभी से दरवाज़ा खोला तो चकित रह गया है।दो-तीन घंटे में वसुधा ने उसके बिखरे घर को व्यवस्थित कर दिया था।एक बार को उसका मन वसुधा की तरफ़ खिंचा लेकिन जब वसुधा ने अपनी चूड़ी खनकाई तो उसका मन वितृष्णा से भर उठा।उसके लिये वसुधा एक मुसीबत थी जिससे वो जल्द से जल्द छुटकारा पाना चाहता था।वह ऑफ़िस जाता तो निशा से नज़रें नहीं मिला पाता था।
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आखिरकार एक दिन निशा ने कारण पूछ लिया तब आकाश ने उसे सारी बात बताई और कहा कि घर में उसे देखकर मेरा दम घुटता है।निशा समझदार लड़की थी, उसने आकाश को समझाया कि जो कुछ हुआ उसमें वसुधा की तो कोई गलती नहीं है।तुम्हारे चाचा ने तुमसे स्वार्थवश सच छुपाया था।अब वसुधा तुम्हारी पत्नी है..यही सच है।मैं अभी सबको तुम्हारी शादी के बारे बताती हूँ।
उस वक्त तो आकाश चुप रहा परन्तु मन ही मन वो वसुधा को वापस भेजने की मंसूबे बनाने लगा।वह बात-बात पर वसुधा पर झल्लाता…उसके बनाये खाने में गलतियाँ निकालता।वसुधा को बहुत दुख होता..वह आकाश को खुश करने की हरसंभव कोशिश करती लेकिन हर बार उसे निराशा ही हाथ लगती और तब वह अपनी डायरी को आँसुओं से भर देती।वह लिखती, कहते हैं कि प्यार की कोई भाषा नहीं होती तो फिर तुम मेरे आँसुओं को क्यों नहीं पढ़ पाते…साथ रहकर भी उनके प्यार के लिये तरस रही हूँ…विधाता ने मेरी किस्मत किस स्याही से लिखी है कि सुहागन होकर भी….।
इसी बीच आकाश को एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में एक महीने के लिये अमेरिका जाना पड़ा।उसके लिये वसुधा से दूर रहने का यह एक सुअवसर था।जाने से एक रात पहले उसने वसुधा से कहा,” तुम बहुत अच्छा खाना बनाती हो…मेरा ख्याल भी रखती हो…।” सुनकर वसुधा लजा गई।
” लेकिन मैं तुम्हें पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं कर सकता।मैं वापस आकर तुम्हें तुम्हारी मौसी के यहाँ छोड़ आऊँगा।खर्चा देता…।” इसके आगे वो सुन न सकी।उसकी सारी उम्मीदों पर पानी फिर चुका था।विदा के समय पिताजी ने तो उसे किस्मतवाली कहा था लेकिन यहाँ तो…।उसने तय कर लिया कि इनके वापस आने से पहले ही मैं गंगा मईया की गोद में समा जाऊँगी।
आकाश चला गया।अमेरिका पहुँचकर उसने वसुधा की कोई खोज-खबर नहीं ली लेकिन निशा उससे मिलने आती थी…रविवार के दिन वो वसुधा को मुंबई घुमाने भी ले जाती थी।एक दिन निशा ने वसुधा की डायरी पढ़ ली, तब उसे वसुधा की पीड़ा का एहसास हुआ।उसने वसुधा को कहा कि आकाश दिल का बुरा नहीं है…उसे वक्त दो..वो तुम्हें ज़रूर समझेगा।
देखते-देखते एक महीना बीत गया और आकाश वापस भारत आने के लिये हवाई जहाज में बैठ गया।उसकी आगे वाली सीट पर दो बच्चे खेल रहें थें।उसने देखा कि एक तो बहुत बोल रहा है लेकिन दूसरा केवल मुस्कुरा रहा था।उसने उत्सुकतावश उस बच्चे से नाम पूछा तब बच्चे की माँ बोली,” निशांत नाम है।यह जन्म से बोल-सुन नहीं सकता लेकिन सब समझता है।” सुनकर आकाश को वसुधा की याद आ गई।
वो भी तो…।अपनों का स्नेह पाकर निशांत कितना खुश है।वसुधा भी तो खुश रहना चाहती होगी लेकिन मेरी नफ़रत और क्रोध ने उसके सपनों को चूर-चूर कर दिया था।कितनी मुरझा गई थी वो…। उसे वसुधा की डायरी में लिखे वो शब्द याद आ गये,” मैं सबको समझती हूँ… कोई मुझे क्यों नहीं समझता…मुझसे कोई प्यार क्यों नहीं करता…।
” आकाश की आँखें नम हो आईं।वो सोचने लगा,अनजाने में मैंने वसुधा का कितना दिल दुखाया है…उसे मुसीबत समझ रहा था लेकिन सच तो यह है कि उसके आने से मेरा फ़्लैट घर बन गया है।उसके कदम पड़ते ही साल भर से अटका हुआ मेरा प्रपोज़ल पास हो गया है।हे भगवान!..मुझसे कितनी बड़ी भूल हो गई है।
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अब आकाश जल्द से जल्द वसुधा के पास पहुँचना चाहता था।घर पहुँचकर उसने दरवाज़ा खुला देखा तो किसी अनहोनी की आशंका से वो घबरा गया।वसुधा-वसुधा पुकारते हुए वो पूरे घर में उसे ढूंढने लगा।तभी उसकी नज़र पड़ोस की बच्ची पर पड़ी।वसुधा उसके साथ सांकेतिक भाषा में बात कर रही थी।उसने चैन की साँस ली।
आकाश को देखकर बच्ची अपने घर चली गई और वसुधा ने उसे एक कागज दिया जिसपर लिखा था, मैं कल चली जाऊँगी।आकाश ने उसे फाड़ कर फेंक दिया और उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोला,” यू आर माई लकी चार्म…।” फिर उसने जेब से लाल गुलाब निकाला और उसे देते हुए बोला,” आई लव यू..।” वसुधा के गाल शर्म से लाल हो गये।
साल भर बाद वसुधा ने एक बेटे को जनम दिया।आकाश ने एक होटल में पार्टी दी..।बच्चे को आशीर्वाद देने के साथ-साथ सभी वसुधा की प्रशंसा भी कर रहें थे।तभी एक महाशय वसुधा के पास आकर बोले,” भाभी…आपकी कोई बहन हो तो बताइये.. आकाश भाई की तरह हम भी लकी कहलाना चाहते हैं।” फिर तो पूरा हाॅल ठहाकों से गूँज उठा।वसुधा क्या कहती…आज वो स्वयं को किस्मतवाली मान रही थी।उसने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया और कहा कि मेरी इस छोटी-सी दुनिया को बुरी नज़र से बचाना।
विभा गुप्ता
# किस्मतवाली स्वरचित, बैंगलुरु
इंसान चाहे तो अपने व्यवहार से अपनी शारीरिक कमी को दूर करके सभी के दिल में अपनी जगह बना सकता है जैसा कि वसुधा ने किया।साथ ही, आकाश ने वसुधा को अपनाकर समाज को एक सार्थक संदेश दिया है।