मम्मी जी ,मैं घूंघट नही हटाऊँगी  – रिंकी श्रीवास्तव

सुनो बड़ी बहु , मालति मामी का फोन  आया है ,अगले हफ्ते उनकी  बहु  की  गोदभराई की रस्म है ,तो हम सभी को बुलाया है ,कह रही थी कि भतीजे की शादी के बाद से आप आयी नही ,इस बार सबको आना है ,सुनीता जी बोली |

अगले हफ्ते !पर मम्मी जी अगले हफ्ते तो बच्चों  की वार्षिक परीक्षाएं हैं ,तो मैं  कैसे जा पाऊंगी |आप सब चले जाइयेगा और  निधि  (देवरानी )को भी ले जाइये इस बार दो साल हो गये शादी को पर अभी तक  गयी नही मामी के यहाँ |

हाँ ,ठीक है छोटी बहु  को ही ले जाती हूँ |

छोटी बहु !सुनीता जी आवाज लगाती हैं |

जी मम्मी !

सुनो छोटी बहु , अगले हफ्ते मालति मामी के यहाँ  चलना है ,तो तुम अपनी तैयारी कर लेना और सुनो उनके यहाँ चलना तो लम्बा घूंघट लेना !

मेरे मायके मे सारी बहुएं  घूंघट करती हैं ,तुमसे तो ढंग से सिर पर पल्लू भी नही लिया जाता ,हरदम माथा उघाड़े  पूरे घर मे घूमती रहती हो ,ना ससुर का लिहाज है ना ही जेठ का ,सास की तो कोई गिनती ही न है ,समझा -समझा कर थक गयी हूँ कि ससुराल मे बडों  के सामने घूंघट लिया करो उनका सम्मान होता है मगर नही तुम्हे तो अपनी मनमर्जी करनी है |

बड़ी  बहु को देखो आज भी सिर से पल्लू ना सरकता उसका और एक ये महारानी है कि सिर पर पल्लू टिकता ही नही है |हुँह ! सुनीता जी का पल्लू पुराण एक बार फिर चालू हो गया |

और निधि अपना पल्लू संभालती हुई जी मम्मी कहती हुई फिर अपने काम में  लग गयी |

 

        गोदभराई  के दिन सभी जाने के लिए तैयार हो गये थे निधि भी तैयार हो आ गयी थी ,सुनीता जी ने उसे देखा और उसका पल्लू  थोड़ा और लम्बा कर दिया |

हाँ ! अब ठीक है कम से कम होंठ तक तो घूंघट करना ही ,मुँह नही दिखना चाहिए ,समझी जो कि मेरी नाक कट जाए सबके सामने |



जी मम्मी !

चलो अब  |

खैर  सुनीता जी सपरिवार मायके पहुँची |

पर वहां पहुँच कर तो वे हैरान रह गयी उनकी भतीजा बहु जिसकी गोदभराई थी वो तो स्लीवलेस ब्लाउज और नेट की 

खूबसूरत सी ओपन पल्लू साड़ी  पहने सबसे हंस -हंस कर बातें कर रही थी | घूंघट की तो बात छोड़ो सिर पर भी पल्लू न था |

सुनीता जी को आया देख मामा मामी जी पास आकर उनके चरण स्पर्श कर बोले ,आइए दीदी  चलकर बहु को आशीर्वाद दीजिए |

हुँह ,बहु है कहाँ !वो तो मॉडल  बनी घूम रही है |मालति तूने बहु को ज्यादा ही सिर पर चढ़ा रखा है न कोई पल्लू न घूंघट,

भले घर की बहुएं ऐसे रहती हैं  भला !बड़े  बुजूर्ग का कोई सम्मान ही नही , तू तो कितना लम्बा घूंघट  करती थी ,याद है ना |

दीदी आप भी किस जमाने की बात कर रही हैं ,हमारा समय अलग था अब समय अलग है और फिर सम्मान सिर्फ घूंघट लेने से ही नही होता ,सामने वाले की नजर मे होता है ,उसके व्यवहार मे झलकता है ,देखिए ना मेरी बहु कितनी खुश है |

चलिए बहु को आशीर्वाद दीजिए |

हाँ  तुम चलो  हम आते हैं |

छोटी बहु तुम भी घूंघट हटा दो जब कोई भी बहु ना की है तो तुम भी मत करो |

नही मम्मी जी ,मैं  घूंघट नही हटाऊँगी ! ये क्या बात हुई कि कोई ना किए है तो मै भी हटा दूँ ,मै घूंघट कर के ना आई होती तो बात अलग थी अब जब मैं यहाँ आ गयी हूं  तो सबको देखकर मै भी  घूंघट हटा दूँ ये मुझसे ना होगा |

 मै ऐसे ही ठीक हूं |

तूने तो सास की बात ना मानने की कसम खा रखी है ,

सुनीता जी बोली|

फिर निधि पूरे फंक्शन मे घूंघट किये रही ,और सुनीता जी मुँह फुलाए रही कि छोटी बहु ने फिर उनकी बात ना मानी |

लेखिका : रिंकी श्रीवास्तव

 

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