निलिमा जी के बेटे प्रशांत की शादी को लगभग एक महीना हो चला था।नीलिमा जी बहुत सोच समझकर अपने लिए बहू चुन कर लाई थी।उनके अनुसार बहू ऐसी होनी चाहिए थी जो कि कामकाजी भी हो और बड़ों का लिहाज करना भी जानती हो और घर में रच बस भी जाए पर निलिमा जी की सहेलियां सभी हंसती और उनसे कहती,” इतना कुछ बहू में देखने जाएगी तो कहां से तुझे ऐसी लड़की मिलेगी” पर निलीमा जी अक्सर यही जवाब देती” ढूंढने से तो भगवान भी मिल जाते हैं… देखना,मुझे भी ऐसी बहू ज़रूर मिल जाएगी”।
फिर निलिमा जी की ननंद कांता जी ने उन्हें सुगंधा के बारे में बताया जो कि उनके पड़ोस में ही रहती थी।सुगंधा एक अच्छी खानदानी लड़की थी।उसके पिताजी का अच्छा खासा व्यापार था और एक ही बड़ा भाई था जो कि पिता के व्यापार में ही हाथ बंटाता था।सुगंधा की माताजी कुशल गृहिणी थी और उन्होंने अपने दोनों बच्चों को अच्छे संस्कार दिए थे।सुगंधा खुद भी नौकरी करती थी और और देखने में भी बहुत सुंदर थी।
निलीमा जी को तो उसकी फोटो देखते ही वह पसंद आ गई थी और कांता जी ने उसके गुणों की इतनी बड़ाई की थी कि निलीमा जी ने तो मन ही मन उसे अपनी बहू मान भी लिया था।फिर देखने दिखाने की रस्म हुई और देखते ही देखते सुगंधा निलीमा जी की बहू बन उनके घर आ गई थी।
सुगंधा ने थोड़े दिन तो अपनी कंपनी से छुट्टी ले ली थी और प्रशांत के साथ वह 1 हफ्ते के लिए बाहर भी घूम आई थी।अब लगभग 1 महीने के बाद ज़िंदगी थोड़ी सुचारू रूप से चलने लग पड़ी थी।निलिमा जी ने भी अपनी बहू में अपनी अपेक्षाएं ढूंढने शुरू कर दी थी और धीरे-धीरे वह अपनी अपेक्षाओं के बारे में किसी ना किसी तरह सुगंधा को बताती जाती थी।हालांकि निलिमा जी की शादी शुदा बेटी रजनी अक्सर मां को फोन पर समझाती रहती ” भाभी से ज्यादा अपेक्षाएं मत करना। मम्मी, आजकल वो ज़माना नहीं रहा कि बहुएं उसी हिसाब से चलें जैसे आप उन्हें चलाना चाहती हो..आजकल की बहुओं को भी थोड़ी आज़दी चाहिए होती है और आपकी बहू वैसे बहुत अच्छी है अगर ज्यादा अपेक्षाएं रखोगी तो आगे जाकर कहीं मुश्किल ना हो जाए”।
” हां हां..तू मुझे मत समझाया कर”, निलिमा जी अक्सर रजनी को टोक देती।
एक दिन निलिमा जी के भाई घर आए और उन्हें अपने साथ चलने के लिए कहने लगे।निलीमा जी आनाकानी कर रही थी पर उनके भाई बोले,”अब तुझे घर की क्या चिंता है..अब तेरी बहू आ गई है..चिंता छोड़ और थोड़े दिन मेरे साथ रहने चल”।
सुगंधा ने भी आगे से कहा,” मम्मी जी, आप चिंता मत करिए और मामा जी के साथ चली जाएं।मैं यहां सब कुछ संभाल लूंगी”, और निलिमा जी अपने भाई के साथ अपने मायके चली गई।वहां से वह लगभग हर रोज़ फोन कर घर का हाल-चाल लेती रहती और अपने पति से भी पूछती रहती कि बहू ठीक से घर को संभाल रही है या नहीं।
उनके पति सुधाकर जी कहते,”सुगंधा बेटी ने सब कुछ बहुत अच्छे ढंग से संभाल लिया है…तुम फिक्र मत करो और आराम से वहां पर रहो”।
निलिमा जी जब वापिस आई तो उन्होंने देखा कि सुगंधा ने सब कुछ अच्छी तरह से संभाल रखा था लेकिन निलिमा जी खुश होने की बजाय थोड़ा चिढ़ सी गई।उन्हें लगा कि शायद अब इस घर में सुगंधा के होने से उनका महत्व थोड़ा कम होता जाएगा और इसी बात की चिढ़ को लेकर वह अपने भाई की बहू के गुणगान सुगंधा और सबके सामने खाने की मेज़ पर करती रही और कहती रही कि किशन (उनके भाई) की बहू तो बहुत स्मार्ट है..नौकरी नहीं करती लेकिन घर को पूरा अच्छी तरह से संभाल कर रखा हुआ है..मज़ाल है कि एक पत्ता भी इधर का इधर हो जाए और साथ ही साथ अपने सास-ससुर की सेवा का भी पूरा ध्यान रखती है।मैं तो जितने दिन रही उसने मेरे सामने उसने अपनी सास को तो एक चम्मच तक भी उठाने नहीं दिया।
“हां हां.. हमारी सुगंधा भी तो अपने काम में बहुत अच्छी है”, सुधाकर जी ने बात को संभालते हुए कहा।
“हां, लेकिन इसे इतना समय कहां मिलता है घर पर देने के लिए… ज़्यादा दिन तो इसका दफ्तर में ही निकल जाता है” निलिमा जी यह बात कह कर अपना खाना खत्म कर अपने कमरे में चली गई।
सुगंधा को बुरा तो बहुत लगा लेकिन वह कुछ नहीं बोली। प्रशांत को भी लगा कि मम्मी ने आज बात ठीक ढंग से नहीं की और रात को सुगंधा से बोला,” मम्मी की बात पर ध्यान मत देना..वो कई बार ऐसे ही ज़्यादा बोल जाती हैं”।
सुगंधा बोली,” नहीं नहीं..मुझे उनकी बातों का बुरा नहीं लगा..तुम चिंता मत करो”।अगले दिन सुगंधा तैयार होकर जाने लगी तो निलिमा जी ने उसे बोला कि आज शाम को मेरी कुछ सहेलियां आने लगी है तो तू थोड़ा दफ्तर से जल्दी आ जाना।
“मम्मी जी, आप यह बात मुझे थोड़ा पहले बता देती तो मैं दफ्तर में फोन कर अपने बॉस से पहले बात करके रखती”।
“बहू, तू नहीं आ सकती तो मत आ”, निलिमा जी ने रूखे स्वर में कहा।
“नहीं मम्मी जी, मैं पूरी कोशिश करूंगी जल्दी आने की”, कहकर सुगंधा दफ्तर के लिए निकल गई।वहां भी उसका काम में मन नहीं लगा और उसने वहीं से ही खाने का कुछ सामान आर्डर कर लिया और अपने बॉस से बात कर जल्दी निकल आई और आते ही झटपट कुछ खाने का सामान घर में बना लिया।निलीमा जी की सहेलियां तय समय पर आ गई और सब ने आकर सुगंधा के खाने की बहुत तारीफ की।निलिमा जी कहां चुप रहने वाली थी अपनी एक सहेली की तरफ देख कर बोली,” सुलक्षणा तेरी बहू के क्या कहने…तेरी बहू ने जो पिछली बार पालक की चाट खिलाई थी मैं तो उंगलियां चाटती रह गई थी। सच में तेरी बहू के बनाए हुए पकवानों के आगे सारे पकवान फीके हैं”।
सुलक्षणा जी बोली,” नहीं नहीं.. सुगंधा ने भी बहुत अच्छा खाना बनाया है और सब कुछ दफ्तर से आकर एकदम से करना बहुत बड़ी बात है”।
“अरे इसमें बड़ी बात कहां”, नीलिमा जी बोली।
सुगंधा सब कुछ रसोई में सुन रही थी लेकिन कुछ बोली नहीं।फिर तो यह निलिमा जी की यह आदत ही बन गई.. जब देखो वह किसी ना किसी की बहू की तारीफ सुगंधा के सामने करती रहती और उसे चिढ़ाने की भरपूर कोशिश में रहती।हालांकि निलिमा जी जानती थी कि सुगंधा उन्हें जवाब नहीं देती है और ना ही घर के किसी काम को करने में हिचकिचाहट करती है बल्कि उन्हें और सुधाकर जी को पूरा मान-सम्मान भी देती है और अपनी ननद रजनी के आने पर उस पर खूब प्यार लुटाती है और उसके वापिस आने पर उसे अच्छा नेग भी देती है लेकिन उनको पता नहीं क्या आदत थी कि वह हमेशा सुगंधा को नीचा दिखाने की फिराक में रहती ।
प्रशांत भी कुछ महीनों से यह सब कुछ देख रहा था और सुगंधा के लिए बहुत बुरा महसूस कर रहा था।एक दो बार उसने दबी ज़बान से मां को समझाने की कोशिश भी की लेकिन नीलिमा जी ने उसे डपट कर कह दिया,” तू क्या जोरू की गुलामी कर मुझे समझाने आया है”।
सुधाकर जी ने भी निलिमा जी को टोकते हुए बोला था,” इतनी अच्छी बहू तो है..तो तुम क्यों उसे नीचा दिखाने के लिए हमेशा दूसरों की बहुओं की तारीफें उसके सामने करती रहती हो।कभी पलट कर जवाब दे दिया उसने तो तुम्हारी इज्ज़त धरी की धरी रह जाएगी।अपनी इज़्ज़त अपने हाथ में होती है”।
“चलो जी, आप चुप रहो..आपको क्या पता”, नीलिमा जी किसी की भी बात सुनने के लिए तैयार नहीं थी।
एक दिन ऐसे ही सुगंधा की सहेली अपने पति और सास के साथ उसी शहर में आई और सुगंधा से मिलने के लिए उनके घर शाम को आ गई।सुगंधा ने उन्हें एक रात के लिए रोक लिया..रात को सुगंधा ने बहुत अच्छी खाने की तैयारी की थी।खाना खाकर उसकी सहेली की सास बोली,” सुगंधा बेटी, तेरे खाने में तो बहुत स्वाद है..शादी से पहले भी तो तुम खाना बहुत अच्छा बनाती थी मैंने तुम्हारे मायके में तुम्हारे हाथ से बना खाना खाया है पर अब तो ऐसा लगता है जैसे तुम्हारे हाथों में जादू आ गया है”।
यह सुनकर सुगंधा मुस्कुरा उठी लेकिन निलिमा जी आगे से बोली,” कहां बहन जी, इतना भी स्वादिष्ट खाना नहीं है। आप खुद बहुत अच्छी है ना इसलिए आपको इसके खाने में स्वाद लग रहा है हम तो जैसे तैसे खा लेते हैं। हम जब 2 महीने पहले आपके घर आए थे तो मुझे याद है आपकी बहू ने कितना स्वादिष्ट खाना बनाया था।मेरी ज़ुबान पर तो इसके खाने का स्वाद अभी तक है”।
यह बात सुनकर सुगंधा की सहेली मुस्कुरा उठी लेकिन सुगंधा का चेहरा इस बार गुस्से से लाल हो गया शायद सहेली के ससुराल वालों के सामने वह अपनी बेइज्ज़ती बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी लेकिन..किसी तरह अपना गुस्सा पी गई और चुप रही ।
अगले दिन सुगंधा और प्रशांत की छुट्टी थी और सुगंधा की सहेली अपने पति और सास के साथ बहुत सुबह सुबह ही चली गई थी।दोपहर को रजनी अपने पति के साथ उनके घर आई तो निलिमा जी जानबूझकर पिछली रात का किस्सा लेकर बैठ गई और नमक मिर्च लगाकर रजनी को सुनाने लगी,” इसकी सहेली के हाथों में बहुत स्वाद है लेकिन उसकी सास तो अपनी बहू के सामने इसकी बढ़ाई किए जा रही थी”।
सुगंधा ने जब यह बात सुनी तो उससे रहा नहीं गया और वह बोली,” मम्मी जी, बात ऐसी है कि दूसरों की बहू सबको अच्छी लगती है जैसे आपको मेरी सहेली के हाथों में बहुत स्वाद नज़र आ रहा या फिर सुलक्षणा आंटी की बहू की पालक की चाट आपको बहुत अच्छी लगी थी.. बस उसी तरह से जैसी आपको दूसरों की बहुएं अच्छी लगती है उसी तरह दूसरों को आपकी बहू अच्छी लगती है।यह शायद इंसानी फितरत है कि दूसरों की बहू सबको अच्छी लगती है”, यह कहकर सुगंधा वहां से उठकर रसोई में सबके लिए चाय बनाने के लिए चली गई।
निलिमा जी को सुगंधा का इस तरह सबके सामने ही जवाब देना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा लेकिन वह यह भी जानती थी कि सुगंधा को इस तरह से जवाब देने के लिए उन्होंने ही मजबूर किया था और अब वह कर भी क्या सकती थी।उन्होंने सुधाकर जी की तरफ देखा जो कि आंखों ही आंखों में उनसे कह रहे थे,” देखा, मैंने कहा था ना अपनी इज़्ज़त अपने ही हाथ में होती है”..और निलिमा जी ने ने मन ही मन प्रण किया कि वह अपनी बहू से अपने रिश्तो में आगे से सुधार करने की हरसंभव कोशिश करेंगी।
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#अप्रकाशित
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गीतू महाजन।
अप्रतिम कहानी के लिए सादर धन्यवाद