मुखौटा – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

प्रीतम घर का सबसे छोटा बेटा था।तीन बड़े भाई और भाभियों का संयुक्त परिवार था।प्रीतम जब पढ़ाई कर रहा था ,तभी बड़े भाई की दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी।दो छोटे-छोटे बच्चे थे,एक बेटा और एक बेटी।प्रीतम के मम्मी -पापा पहले तो बड़ी बहू पर जान छिड़कते थे।सारा घर उसने संभाल रखा था।तीनों देवरों के खाने-पीने,पढ़ाई करवाने की जिम्मेदारी उन्हीं (मालती भाभी)ने ले रखी थी।अपने बच्चों और देवरों में कभी  भी भेद नहीं करती थीं।

पति की मृत्यु के बाद उस घर में उनकी स्थिति बहुत ही दयनीय हो चुकी थी। मम्मी बात-बात पर ताने देखतीं”कैसी कुलक्षिणी बहू ब्याह कर लाया मेरा बड़का।खा गई मनहूस मेरे बेटे को।अरे पत्नियां ब्याह कर आतीं हैं ससुराल,और पति के कंधे पर चढ़कर श्मशान जातीं हैं।इस मनहूस ने तो मेरे कलेजे के टुकड़े को ही श्मशान पहुंचा दिया।मायके से कोई लिवाने भी नहीं आता कि टरे हमारे घर से।बच्चे तो हमारे हैं, हम पाल देंगें।इस विधवा जवान बहू को छाती में मूंग दलने के लिए क्यों बिठाकर रखें?”पापा उनकी बातों का समर्थन नहीं करते थे।वे मालती भाभी को अपनी बेटी ही मानते थे।

इस घर की पुरानी रीत चली आ रही थी कि खाना बनाने के बाद सबके हिस्से की दाल -सब्जी अलग -अलग कटोरियों में मम्मी परोस कर रखतीं थीं।खाने बेठने पर बस थाल में गर्म गर्म रोटी दी जाती थी,कटोरियों के साथ।खाना मालती भाभी ही बनातीं‌ थीं,पर परोसती मम्मी थी।प्रीतम देखा करता था कि धीरे-धीरे मालती भाभी की खुराक कम ही होती जा रही है।कुछ भी नहीं खा पातीं थीं,ना दाल ,ना सब्जी।कभी मठा में नमक डालकर,या कभी दाल में पानी डालकर ही दो रोटी बड़ी मुश्किल से खा पातीं थीं।

पुरुषों के खाने के बाद ही महिलाएं खातीं थीं।पापा ने की बार देखा था मालती भाभी को रूखा खाना खाते हुए,समझाया भी था”  कि सेहत खराब हो जाएगी।पेट में सब्जी और दाल तो पड़ता ही नहीं।मालती बेटा अपना नहीं तो दोनों बच्चों के लिए तो सोचो।तुम कमजोर हो गई तो उन्हें कैसे संभालोगी।”

मालती भाभी सर पर सलीके से पल्लू लिए कहती”पापा जी,अब उमर हो रही हमारी।ज्यादा तेल मसाले का खाना नुकसान करता है।यही सिलसिला चलता रहा।कितनी बार जब भी प्रीतम की सब्जी की कटोरी खाली हो जाती तो मां समान बड़ी भाभी की कटोरी से , सब्जी लेने जाता, मम्मी जोर से। चिल्लाकर कहतीं”देख छोटे,मैंने घर में कुछ कायदे कानून बनाएं हैं।जो उनको ना मानोगे,तो लक्ष्मी चली जाएगी घर से।अपनी -अपनी कटोरी की सब्जी हि खानी पड़ेगी।

और चाहिए तो मैं कड़ाही से लाकर देती हूं।”प्रीतम मम्मी की इस आदत को बचपन से देखता आया है।तब लगता था कि घर में अनुशासन बनाए रखने के लिए, मम्मी ने यह नियम बनाए हैं।पर मालती भाभी की खुराक दिनों दिन कम होती जा रही थी।प्रीतम इस बात से दुखी था। डॉक्टर के पास जाना इन‌ औरतों के लिए सबसे कठिन काम है।दो भाईयों की शादी हो गई थी।वे यहीं साथ में रहते थे।भाभियों को मम्मी ने अपनी रसोई के सारे संविधान रटवा डाले थें।कोई भी नियम टस से मस नहीं होने चाहिए,सख़्त हिदायत थी उनकी।

देखते-देखते प्रीतम की शादी भी तय हो गई।शहर में नौकरी करता था,सो वहीं के धनवान परिवार से रिश्ता आया था प्रीतम के लिए। मम्मी पापा ने लड़की देखकर और लड़की के पापा का ऐश्वर्य देखकर झट शादी के लिए हां कर दी।प्रीतम की पत्नी प्रिया आजाद ख्यालों वाली लड़की थी।मन की बहुत सरल थी,ऐसा मालती भाभी कहती थीं। मम्मी तुरंत बात काटकर कहतीं”शहरी छोरी है,कमाई करे है।सरल कहां से दिखी बड़की को?”

शादी के बाद प्रिया को कुछ दिन घर पर ही छोड़कर प्रीतम अपने काम पर शहर चला गया।प्रिया से कहा”मालती भाभी को देखा ना तुमने कितना लाड़ करती हैं मुझसे और तुमसे।मानों हम ही उनके सगे बेटे-बहू हैं।कुछ दिन‌ यहां

रुककर फिर मेरे पास आ जाना।मालती भाभी कम से कम शायद तुमसे अपने मन का दुख कहे।,”प्रिया पढ़ी लिखी और‌ नौकरी पेशा थी।घर में किसी‌ चीज की कोई कमी नही थी।पापा ने भर भर कर दहेज दिया था।सरल मन के कारण उसने काफी साड़ियां और उपहार भाभियों और मम्मी में बांट दिया था।मालती भाभी ने कुछ भी लेने से मना कर दिया।प्रिया को लगा‌ एटिट्यूड दिखा रहीं हैं।एक आखिरी बार‌ पूछा प्रिया ने”बड़ी भाभी,मैं दे रहीं हूं अपनी खुशी से,आपको लेनी ही पड़ेगी।”

मालती भाभी हमेशा की तरह टालती हुई बोलीं”मेरी प्यारी देवरानी,कितना कुछ तो है मेरे पास।अब और लेकर क्या करूंगी।तू ज़िद मत कर,जब जरूरत होगी ,मैं तुझसे मांग लूंगी।”

एक महीने रुककर ही प्रिया समझ चुकी थी मालती भाभी का वात्सल्य प्रीतम के प्रति कितना गहरा है।उसने भी उन्हें खुश रखना शुरू कर दिया।कभी मॉल ले जाती कभी पिक्चर।बच्चों का होमवर्क भी प्रिया समय से पूरा करवा देती।मालती भाभी गद्गगद् होकर आशीर्वाद देती”भगवान तुम्हें बहुत जल्दी प्यारा सा बच्चा देंगे।तुम बहुत अच्छी हो प्रिया।”

देखते-देखते लगभग दो महीने होने को आ रहे थे।एक दिन दोपहर के खाने पर जब सभी देवरानी -जिठानिया खाने पर बैठी,तो आदतन मम्मी ने सबकी थालियों में सब्जी ,दाल निकाल कर दी।मालती भाभी और मंझली भाभी गरम गरम रोटियां सेंकती गईं।सबके सामने थालियां लगाकर मालती भाभी भी प्रिया की जिद की वजह से साथ ही बैठीं।आज प्रिया के मन में मालती भाभी से मजाक करने की सूझी।थालियां सरकाते-सरकाते भाभी की थाली अपनी थाली से पलट दी।किसी को भनक भी नहीं लगी,यहां तक कि मालती भाभी को भी।अलग से गुड़,मीठा,सेंधा नमक रखा रहता था मेज पर ।जिसके साथ ही मालती भाभी एक -आध रोटी खा पातीं  थीं।

आज पहला निवाला कटोरी की दाल में डुबोकर जैसे ही मुंह में डाला, गुड़ का टुकड़ा तोड़ने लगी।पर यह क्या?दाल‌ तो बहुत अच्छी लगी भाभी को।दूसरा निवाला सब्जी के साथ भी तृप्ति के साथ खा रहीं थीं वे।सभी अवाक थे। मम्मी जी तो आंखें फाड़े बड़की का मुंह देखे जा रहीं थीं। मम्मी के माथे पर पसीना चूने लगा।दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।ना तो बाकी बहुओं की कुछ समझ में आया ना ही प्रिया के।मालती भाभी ने टोका”प्रिया तुम क्या मुझे खाते हुए देखकर ही अपना पेट भर लोगी।खाओगी नहीं क्या?तुम्हारी पसंद की कटहल बनी है।”

प्रिया बड़ी भाभी को तृप्त होकर खाते पहली बार देख रही थी।प्रीतम ने बताया था उनकी कम खुराक के बारे में।आज यदि प्रीतम यहां होता तो अपनी भाभी मां को ऐसे खाते देखकर कितना खुश‌ होता।सोचती हुई प्रिया ने जैसे ही रोटी दाल‌ में डुबोकर मुंह में डाली नमक और मिर्च की अत्यधिक मात्रा जीभ जला दी।सब्जी के साथ खाकर भी वैसा ही अनुभव हुआ।बाकी लोग तो अच्छी तरह से खा रहे थे।दो कौर खाकर ही प्रिया के आंख -नाक से पानी आने लगे।

हांथ धोकर दौड़कर अपने कमरे में जाकर रोने लगी। रोते-रोते अचानक जो बात उसके मन में संदेह बनकर आई ,उसे तो साफ-साफ पूछना ही पड़ेगा मम्मी जी से। मम्मी खाकर अपने कमरे में आराम कर रहीं थीं।पापा बाहर टहलने‌ गए थे।

जैसे ही प्रिया ने मम्मी जी से इस अलग स्वाद के बारे में जानना चाहा,वो तो डर के मारे रोने लगी।प्रिया का हांथ पकड़ कर अपने पास बिठाया ,और दरवाजा बंद कर दिया।वे बोलीं”तूने बड़की की थाली से अपनी थाली क्यों बदली।तेरी थाली की कटोरियों में तो नमक और मिर्च सामान्य ही था।

“प्रिया को मम्मी की बात सुनकर लगा,उसने दिन में‌ तारे देख लिए ।पढ़ी लिखी प्रिया को अब सारा माजरा समझ में आ गया।तुरंत फोन लगाने लगी प्रीतम को। मम्मी जी ने रोते हुए फोन ले लिया उसके हांथ से।हांथ जोड़कर बोलीं”छुटकी ,तुझे प्रीतम की कसम है जो कुछ बताया।”

प्रिया का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया था।”मालती भाभी के विधवा होने की इतनी बड़ी सजा दे रहीं हैं आप।बिचारी आधा पेट खाकर या उपवास रहकर सो जाती हैं।जानतीं हैं कितनी बद्दुआ लगेगी इस घर को।अरे,आप उन्हें भेज दीजिए हमारे साथ,पर ऐसा जुल्म मत करिए।आपको मम्मी बोलने में भी शर्म आ रही है।इस घर के सारे पुरुष आपका कितना सम्मान करते हैं।आपकी हर बात को पत्थर की लकीर मानते हैं।और आप का यह रूप है।छि छि छि।”

मम्मी ने प्रिया को पकड़ा जोर से और रोते हुए बोलीं”बड़का चला गया अपना परिवार छोड़कर।कम उम्र में विधवा हो गई है।उसे संभालकर रखना भी तो मेरी जिम्मेदारी है।नमक मिर्च ज्यादा मिलाने से वो सादा खाना खाती है,और कोई कह भी नहीं पाता कि खर्च बढ़ता है

उसके हिस्से का।बच्चों को तो मेरे बेटे अपना मानते हैं,पर भाभी को कहीं ऊंच-नीच कह देंगें,तो मैं बर्दाश्त कर पाऊंगी क्या?मुझे माफ़ कर दे।उसके साथ जो किया मैंने ,अब जब तक जिंदा रहूंगी,गुड़ ,छांछ से ही खाऊंगीं।मुझे मेरे कान्हा की कसम।”

प्रिया हतप्रभ थी,किसे दोषी ठहराए?समाज,रस्मों रिवाज, परिस्थिति,आमदनी,या एक मां????

शुभ्रा बैनर्जी 

दिन में तारे दिखाई देना

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