“फिर से एक और बेटी..!,पता नहीं क्या ग्रह लेकर यह मनहूस इस घर में आई है…कुलक्षिणी…!,एक तो खाली हाथ आई है…यहां पड़ी रहकर सिर्फ माल ही उड़ाती रही है.. अब बेटी पर बेटी…उंह…!” मुँह बिचका कर कैकई यानी नीरा की सास ने गुस्से में नीरा से कहा।
एक तो नवजात को जन्म देने के बाद नीरा का शरीर वैसे ही टूटा हुआ था। उस पर से इस व्यंग्य बाण को झेलने के बाद वह बर्दाश्त नहीं कर सकी। वह फूटफूटकर रो पड़ी। “अम्मा जी,है तो आपकी ही ना.. बेटी है तो क्या हुआ?”
पर नीरा के आँसू और उनमें छुपा दर्द न उसकी सास को पिघला पाए और न ही उसके पति शैलेश को। अस्पताल से घर आने के बाद नीरा को रसोई का पूरा काम थमा दिया गया, जैसा कि वह पहले किया करती थी। अब डेढ़ साल में दो बच्चों को जन्म देने के बाद वह बहुत ही कमजोर हो चुकी थी।
दिन रात कोल्हू के बैल की तरह जुते रहने के बाद भी वह किसी को खुश नहीं कर पाती थी। कैकेई ने उसके पति और उसके बीच इतनी बड़ी खाई खोद दिया था कि उसे पाटना मुश्किल नहीं नामुमकिन था। कैकेई को अपने रुतबे पर बहुत ही ज्यादा घमंड था।
वह खुद एक धनवान परिवार से ताल्लुक रखती थी। शादी के बाद उन्होंने चार बेटों को जन्म दिया था। इसलिए ससुराल में उनकी बहुत ही इज्ज़त थी। यही मानसम्मान और इज्ज़त उनके सिर चढ़कर बोलने लगा था। वह अपने से नीचे तबके वालों के साथ कभी भी सीधी मुँह बात ही नहीं करती थी।
अपने बड़े बेटे शैलेश का विवाह वह अपनी मर्ज़ी से करना चाहती थी लेकिन उसके ससुर को स्कूल मास्टर की बेटी इतनी पसंद आ गई कि वह बस चट मंगनी पट ब्याह कर घर ले आए। पढ़ीलिखी लड़की दिनरात अब आँसू बहाने को मजबूर हो गई थी।
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एक दिन नीरा अपनी बच्ची को दूध पिला रही थी तभी शैलेश ने उसे आवाज देते हुए उसे जल्दी से चाय और पकौड़े बनाने के लिए कहा। “बस दो मिनट, अभी आई..!”कहकर नीरा बच्ची को सुलाने लगी। गुस्से में कैकेई कमरे में आई।
उसके बालों को पकड़ कर चिल्लाते हुए कहा “लंबी जुबान आ गई है तुम्हारी!इतनी हिम्मत आ गई है तुममें?”चलो इस घर से निकलो बाहर। अब तब ही आओगी जब तुम माफी मांगोगी।” “अम्मा ,आखिर मैंने क्या किया है?
क्यों बाहर निकलूं और मैं माफी क्यों मांगू?”नीरा दर्द से कराहते हुए बोली। “इसलिए कि तुमने मेरे बेटे के साथ बदतमीजी की है..!”दहाड़ते हुए कैकेई ने कहा।
“एक मिनट अम्मा जी!,नीरा ने कहा, मैंने आपके बेटे का बहुत अपमान किया है। मैं आप लोगों के लायक बिल्कुल भी नहीं हूं।मुझे यह अच्छी तरह से पता है फिर भी ना जाने क्यों मैं आप लोगों के आगे झुकती रही। आपका हर जुल्म सहती रही।
यह सोचकर कि भगवान मेरे ऊपर रहम करेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब मैं अपने दोनों बच्चियों के साथ इस घर को छोड़कर जा रही हूँ।” ” हां हां जाओ! केकई उसी तरह दहाड़ते हुए बोली तुम इस काबिल हो कि इन दोनों पापियों की शादियां कर दोगी?
बिना दान दहेज के कोई नहीं ब्याहेगा।” नीरा अपनी दोनों बेटियों और अपने सामान के साथ घर से निकल गई। उसका पति शैलेश वहीं बैठा हुआ था। वह नहीं चाहता था कि नीरा घर छोड़कर जाए लेकिन मां के आगे उसकी एक न चली। वह चुपचाप देखता रहा।
नीरा वहां से निकलने के बाद अपने घर पहुंची। इतनी बुरी हालत में देखकर उसके माता पिता का दिल भर आया। उसके पिताजी एक सरकारी स्कूल के मास्टर थे। ” बाबूजी मां!, थोड़े दिन के लिए शरण दे दो।जब तक मेरी बच्ची छोटी है।”
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“अरे ऐसा क्यों बोलतीहो? तुम्हारा भी घर है बेटी!” समय का चक्र बीता। नीरा एक सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल हो चुकी थी। बड़ी बेटी डॉक्टर थी। उसकी छोटी बेटी ने प्रशासनिक परीक्षा में प्रथम स्थान पाया था। टीवी पर न्यूज़ एंकर ने नीरा का इंटरव्यू लिया तो नीरा फूट फूट कर रो पड़ी।
मैंने बड़ी मुश्किल और कठिनाई से बच्चों को पढ़ाया आज ईश्वर ने मेरी सुन ली।” टीवी में न्यूज़ देखते हुए आज अपाहिज पड़ी कैकेई की आंखें बह निकली। उसने भरे गले से कहा ” मुझे माफ कर दो नीरा..!घमंड का चश्मा मेरी आंखों में चढ़ गया था।”
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#घमंड
प्रेषिका–सीमा प्रियदर्शिनी सहाय