संगीता ने बेटे राघव की राशि से बड़ी धूमधाम से सगाई कर दी। पर शादी का मुहूर्त चार महीने बाद का निकला। जैसा कि
अक्सर होता है राघव और राशि फोन पर लगे रहते थे। एक दो दिन से राघव कुछ चुप चुप था। संगीता ने राघव से इस का कारण जानना चाहा। राघव ने बड़े ही मायूस होकर कहा “ममा, राशि कह रही थी कि उसे खाना बनाना नहीं आता है।”
“तो क्या हुआ ? शादी के बाद सीख लेगी ।” संगीता ने हंस कर कहा
“नहीं, वो बात नहीं है ।”राघव ने उत्तर दिया
“फिर क्या बात है ? ” संगीता ने जानना चाहा
“असल में उसे कुछ भी बनाना नहीं आता है और आप जानती हैं न! मुझे तरह तरह के पकवान खाने का कितना शौक है ? ” राघव ने मायूस स्वर मे कहा
“मैगी नूडल्स बनाने तो आते हैं न? ” संगीता ने मुस्कुरा कर कहा
“हां ! नूडल्स तो बना लेती है ।”राघव का उत्तर था
“और सैंडविच ? ”
“हां ! वह भी बना लेती है ।”
” बस फिर तू चिंता न कर । धीरे धीरे सब सीख जाएगी ।बेटा! वह भी तुम्हारी तरह पढ़ाई में लगी रही है । फिर खाना बनाना कब सीखती? दूसरे जिन बच्चों ने इतनी पढ़ाई कर ली है, उनके लिए खाना बनाना सीखना क्या मुश्किल है ? “संगीता ने राघव को आश्वस्त किया।
इधर संगीता मन ही मन सोच रही थी कि ‘मुझे खाना बनाना नहीं आता है ‘ आज कल की लड़कियों का तकिया कलाम बन गया है । पहले ‘जहां लड़की होकर खाना बनाना नहीं आता है ‘ यह कहना शर्म नाक माना जाता था आज शान का विषय बन गया है । दूसरी ओर संगीता को स्वयं विवाह से पहले खाना बनाना कहां आता था ? उस ने भी तो शादी के बाद ही सब कुछ सीखा है ।यह सोचकर उसके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई ।
नियत समय पर राघव -राशि का विवाह हो गया।राशि बहू बनकर घर आ गई । संगीता पूर्ववत रसोई सम्हालती रही। जीवन की गाड़ी अपनी गति से चलने लगी। राघव अब भी खान-पान , कपड़े -लत्ते के लिए मां पर ही निर्भर था। अक्सर वह संगीता से अपनी मनपसंद डिश के लिए डिमांड कर बैठता था!
अब धीरे धीरे राशि को यह सब नागवार गुजरने लगा। कोई भी पत्नी यह सहन नहीं कर पाती हैं कि उसका पति किसी भी बात के लिए उसे छोड़ कर किसी दूसरी स्त्री पर निर्भर हो । विशेष रूप से अपनी मां पर ।पता नहीं सास -बहू का यह कैसा रिश्ता है ? शायद लड़कियों को बचपन से ही समझाया जाता है कि तुम्हारा
असली घर तुम्हारा ससुराल है। उस घर (ससुराल) में ही तुम्हारा वर्चस्व कायम होगा। इसी लिए ससुराल पहुंचते ही लड़कियां अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए छटपटाने लगती हैं।
पर यहां परिस्थितियां अलग थी।घर की पूरी की पूरी व्यवस्था संगीता के हाथ में थी । राशि को घर के कामों से कोई सरोकार नहीं था या वह किसी को काम को हाथ में लेने से डरती थी।उन्ही दिनों राघव ने अपने एक मित्र को खाने पर आमंत्रित किया। संगीता ने बड़ा ही लजीज खाना बनाया। राशि ने अच्छे से डाइनिंग टेबल सजाया और बड़े ही उत्साह से खाना परोसने लगी। खाना बहुत ही स्वादिष्ट बना था।
“राघव तुम बहुत नसीब वाले हो । भाभी जी कितना बढ़िया खाना बनाती है । ” खाना खाते हुए राघव के मित्र ने अपनी पत्नी की तरफ देख कर कहा
“राशि को खाना बनाना कहां आता है?यह सब तो मम्मी ने बनाया है।”राघव के मुंह से बेसाख्ता ही निकल गया ।
“फिर तो —–” मित्र की पत्नी ने बात अधूरी ही छोड़ दी। एकांत मिलते ही वह राशि के कान में फुसफुसा कर बोली “फिर तो सारी पॉवर तुम्हारी सास के पास ही है।”
इतना कहकर वह तो चली गई पर राशि के मन में हलचल मच गई। राशि धीरे धीरे किचन की तरह रुख करने लगी । वह संगीता को खाना बनाते समय बड़ें ध्यान से देखने लगी। एक दो बार देखकर समझ जाती थी । भला हो इस यूट्यूब का रही सही कसर उस ने पूरी कर दी। कहते हैं ” करत -करत अभ्यास के जड़ मति होत सुजान ” फिर वह तो समझदार थी,जहीन थी ।अब वह एक से एक बढ़िया व्यंजन बनाने लगी। घर पर उसकी पकड़ भी बढ़ गई।
पर अभी तक राघव के कपड़े लत्ते संगीता ही सम्हालती थी। एक दिन सर्दी के कपड़ों को धूप दिखाकर संगीता ने वह सब दीवान पर रख दिए और राघव को उन्हें अपनी अलमारी में रखने का आदेश दिया।दो तीन दिन कपड़े वहीं पड़े रहे। यह सब देखकर संगीता ने राघव के आफिस से आने पर कहा “अपने कपड़े अपनी अलमारी में रख लो , नहीं तो कल मैं रख दूंगी। पर तब तुम्हें ऑफिस जाते समय उन्हें ढूंढने में परेशानी होगी।”
घोर आश्चर्य !!! सुबह उठते ही राशि ने सबसे पहले राघव के कपड़े अलमारी में टांगे और फिर दूसरे कामों में लगी। यह सब देखकर संगीता मन ही मन मुस्कुरा रही थी । यहां सवाल खाना बनाने या कपड़े सम्हालने का नहीं , आधिपत्य का है और राघव पर पूर्ण आधिपत्य प्राप्त कर ने के लिए राशि निरंतर प्रयत्नशील है ।
बिमला महाजन
#घर का आंगन बहू से सजता है तो ससुराल भी तो सास के बिना फीका होता है ।
Nice story
Aise bahuon ko sasural me nahi rahna chahiye