कंचन शुरु से ही सीधी साधी लड़की थी।
करना तो उसे ही सीधी सादी लड़की थी।
हमेशा हंसती मुस्कुराती अपने काम से काम रखती।
वह अपने सादगी संपन्न व्यवहार के द्वारा सभी का मन जीत लेती।
वह छोटे बड़े सभी के साथ
साथ सहजता से घुल मिल जाती।
लेकिन वह स्वयं के निर्णय बहुत सोच समझकर करती कोई भी कार्य करने से पहले उसके परिणाम के बारे में काफी सोचती।
एक दिन नजदीक के रिश्तेदार कंचन के घर पर आ गए। कचन की मां से उसके लिए रिश्ते की बात पक्की करके चले गए। कंचन की मां स्वेता ने भी सहजता के साथ स्वीकृति दे दी।
अच्छा खानदान और अच्छा रिश्ता देखकर स्वेता न नहीं कर सकी ।
कंचन की शादी व्यवस्थित तरीके से सम्पन्न की गई।
कंचन ने शादी के बाद अपने व्यवहार से सभी का दिल जीत लिया ।
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उसकी मधुर वाणी सुनकर सभी गदगद हो जाते ।
ससुर भी संस्कारी बहु को पा कर बहुत गदगद थे।
जहां पर भी जाते अपनी बहु की तारीफ किए बिना न रहते।
सास और बहु घर का सभी कार्य मिलकर कर लेती ।
किसी को शिकायत का अवसर न मिलता।
कंचन समय पूर्व ही सभी कार्यों को समाप्त कर लेती ।
अब तारा, कंचन की ननद भी अपनी पढ़ाई पूरी करके वापस आ गई थी।
तारा ने जब देखा की सभी कंचन की बहुत सराहना करते हैं तो उसे बहुत जलन होती।
तारा को कंचन में हमेशा दोष ही दोष नजर आता।
हद तो जब हो गई जब तारा ने कंचन खिलाफ अपनी मां रिमी के कान भरने शुरू कर दिए।
रिमी को भी अब कंचन के हर काम में दोष नजर आने लगा।
वह हर बात पर कंचन को जलील करती।
कंचन अपने संस्कारों की वजह से चुप रहती।
अब तो जैसे उसकी हंसी पर पहरा लग गया था।
अब वह अपने काम से काम रखती और घंटो कमरे में बैठ कर आंसू बहाती।
वह इसके बारे में अपने पति से भी कुछ न कहती।
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लेकिन अति कभी अच्छी नहीं होती।
इस बात को तारा और रीमी ने कभी न समझा।
गुब्बारे में भी एक सीमा तक हवा भरी जा सकती है ज्यादा हवा भरने पर वह फूट जाता है।
ऐसा ही हुआ कंचन के साथ।
अपने व्यवहार को बदलते हुए उसने मन ही मन चुप्पी को साध लिया।
आज जब राकेश ने देखा तो वह अवाक सा देखता ही रह गया।
कंचन अपना सारा सामान सूटकेश में पैक कर रही थी।
कंचन की उदासी देख कर राकेश को डर लगा।
राकेश यह सब समझ न सका। कंचन से पूछने पर भी उसका साहस न हुआ।
आज कंचन ने सभी के सामने अपना फैसला सुना दिया कि जब मैनें कोई गलती नहीं की तो मैं बर्दाश्त क्यों करूं ।
मुझे भी एक ऑफिस में काम मिल गया है।
मैं अपनी ‘जिम्मेदारी खुद उठा सकती हूँ मैं नहीं किसी पर बोझ
नहीं।
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“यदि मेरे संस्कार व्यवस्थित है तो मुझे गर्व है। मुझे देखकर यदि कोई शांति से नहीं रह सकता है हर बात के लिए मुझे हि दोषी करार देता है तो मैं ऐसी जगह पर नही रह सकती।
यह सुनकर सभी कंचन का मुंह देखते रह गए।
किसी ने आशा नहीं की थी कि कंचन ऐसा भी कर सकती है।
घर के सभी सदस्य अपराध बोध से ग्रसित कंचन को ओर
देख रहे थे ।
ससुर में स्थिति को संभालते हुए कहा बेटा कंचन यदि तुम्हें कोई परेशान कर तो चली आना सीधा मेरे पास अपने पिता का दरवाजा तुम्हारे लिए सदैव खुला है।
तारा और रीमी अपने किए कर्मो को आँचल में छुपाने का प्रयास कर रहे थे।
अब सभी कंचन को पहले से भी अधिक आदर से देखते।
उन्हें एहसास हो गया था कि घर की इज्जत को बहु ही संभाल कर रख सकती है।
रीमी को मन ही मन तारा पर बहुत गुस्सा आ रहा था।
सोच रही थी मेरी बेटी क्या
बाहर पढ़ कर यही सीख कर आई है।
रीमी को अपनी बहु पर नाज था।
कंचन का हाथ पकड़ते हुए कहने लगी बेटा मुझे माफ कर दो न जाने में किन बातों में उलझ गई थी।
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कंचन को अपने फैसले पर गर्व था।
आज चुप रहती तो उसे जीवन भर मानसिक उत्पीड़न सहती।
सही निर्णय लेने पर वह अपने सपनों को मंजिल तक पहुंचा रही थी।
ऋतु गर्ग, सिलिगुड़ी,पश्चिम बंगाल