मुझे भी चैन से खाने का हक़ है… – संगीता त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

सन्डे की सुबह सबकी फरमाइश पर रमा ने छोले -भठूरे बनाये… सबने चटकारे ले -ले कर खाया।

“वाह माँ बहुत टेस्टी छोले -भठूरे बने था, मजा आ गया खा कर “बेटी अंकिता ने माँ की तारीफ करी। पतिदेव ब्रेकफास्ट के बाद टी. वी. पर अपने प्रोग्राम में चिपक गये., बेटी -बेटा अपने मोबाइल में और सासू माँ भी अपने बेटे के साथ मैच देखने में लगी थी।

अब तक रमा को भी भूख लग आई थी सोचा चलो आज मै भी गर्म गर्म भठूरे खा कर फिर बाकी काम निपटाऊँगी..।

अपनी प्लेट लगा जैसे ही पहला निवाला मुँह में डाला, घंटी बज गई, आदत के मुताबिक कोई नहीं उठा, रमा को ही अपनी प्लेट छोड़ उठना पड़ा, देखा प्रेस वाला खड़ा था।

“सुनो अंकिता तुम जरा कपड़े इकठ्ठा करके डायरी में नोट कर प्रेस के लिये दे दो .”रमा ने अंकिता को आवाज लगाई, कुर्सी खींच कर बैठी ही थी, अंकिता की आवाज सुनाई दी,”मम्मा, आप दे लो मेरा जरुरी फोन आ गया,”कहती फोन ले कमरे में चली गई।

 पतिदेव को आवाज लगाई, वे बोले “अरे यार तुम खुद दे लो,मैच अपने पीक पर है, मै नहीं छोड़ना चाह रहा हूँ..”

हार कर रमा उठी, हाथ धो कर कपड़े दिये, फिर दुबारा खाने बैठी,मोबाइल बज उठा, पति को बोली भी जरा देख लो किसका फोन है, मै नाश्ता कर लूँ तब तक..।

“रमा मोबाइल मुझे दे दो…, पति को मोबाइल ला कर दिया, तब तक उन्होंने एक फरमाइश और जड़ दी..
“रमा एक कप अच्छी सी कॉफी पिला दो तो मजा आ जायेगा…..”

रमा फिर नाश्ता करने बैठी, अपनी प्लेट के छोले भठूरे देख उसे रोना आ गया, भठूरे सूख कर कड़े हो गये थे, छोले भी ठन्डे….,तब तक दरवाजे की घंटी फिर बज उठी,

. “रमा कितना खाओगी, अभी तक तुम्हारा नाश्ता खत्म नहीं हुआ, देखो तो दरवाजे पर कौन घंटी बजा रहा ..छुट्टी के दिन भी चैन से बैठ कर टी. वी. भी नहीं देख सकता हूँ,”पति की खीझ भरी आवाज सुनाई दी..।

.रमा ने हसरत से प्लेट को देखा, दरवाजा खोलने चल दी, सामने काम वाली खड़ी थी..।

“यार तुमसे एक कप कॉफी माँगा था, क्या करती रहती हो,”पति की आवाज सुन रमा ने नाश्ते की प्लेट ढक दी, कॉफी बनाने चल दी…, पति को कॉफी पकड़ा कर आई तो बेटा रमा के गले में हाथ डाल बोला, माँ, प्यारी माँ, मुझे कोल्ड कॉफी पीने का मन कर रहा, क्या आप बना दोगी “

रमा सुबह से सबकी फरमाइश पूरी कर रही थी, तो भला बेटे की क्यों ना करती, उसे भी कोल्ड कॉफी बना कर दी..। तभी कामवाली बोल उठी “दीदी, छोला -भठूरा बनाई हो, हमें भी एक गर्म -गर्म खिला दो..”

 रमा गर्म -गर्म छोला -भठूरा एक प्लेट में ले आई, ये देख कामवाली बोली “दीदी पहले खा लूँ फिर काम करुँगी, नहीं तो भठूरा ठंडा हो जायेगा, मजा नहीं आयेगा….।

बस रमा के दिमाग की बत्ती जल गई, सीख मिल गई, अपनी प्लेट का भठूरा परे खिसका कर रमा अपने लिये भी दुबारा गर्म भठूरा ले आई, जैसे ही खाने बैठी,”यार रमा, कॉफी में शुगर कम डाली है क्या, मजा नहीं आ रहा, थोड़ा शुगर ले आओ..”

“मै नाश्ता कर रही हूँ, आप ले लो..”कह कर रमा गर्म नाश्ते का मजा लेने लगी।किसी ने सच कहा, कभी दूसरों को ना बोल कर अपनी ख्वाहिश खुद पूरी करनी पड़ती…,।

जब कुछ देर तक शुगर नहीं आई तो झींकते हुये विशाल उठे और कॉफी में शुगर मिलाने लगे…
“अरे अभी तक तुम्हारा नाश्ता खत्म नहीं हुआ..”आश्चर्य से विशाल बोले…

.”खत्म तो तब होगा, जब आप लोग शुरु करने दोगे…घंटी बजे या कोई और काम, आप लोग बैठे ही रहते हो …,आप लोग तो गर्म -गर्म मजे से खा लेते हो..,मैंने खाया ता नहीं ये आप लोग को ध्यान नहीं ..,

अपनी फरमाइश में आप लोग भूल जाते, मै भी इंसान हूँ, मुझे भी भूख लगती है, मुझे भी आराम से खाने का मन करता है, ये नहीं कि एक निवाला खाया, फिर किसी काम के लिये उठा दिये गये,.., सन्डे आप लोगों का आराम का दिन है, मेरे लिये कौन सा दिन है, सन्डे मेरा काम और बढ़ जाता है, आप लोगों की फरमाइश पूरी करते .., मेरी भी ख्वाहिश है कि मै भी सबके साथ गर्म नाश्ता या खाना खाऊ,..।”

 रमा ने दिल की भड़ास निकाल दी, कामवाली भी अपनी पसंद को पहले और काम को बाद में करेंगी, कह जता दिया, उसकी पसंद भी ऊपर है, फिर रमा क्यों नहीं जता पाती, उसको भी चैन और आराम से गर्म नाश्ता करने का हक़ है…।

गिलास रखने आये बेटे और बेटी ने रमा की बात सुन ली,”दीदी, मम्मी सही कह रही हमलोग तो कभी ध्यान ही नहीं देते, मम्मी ने खाया या नहीं… हमारी गलती है..”
. “तू सही कह रहा, चल मम्मी से माफ़ी मांगते “अंकिता बोली..

” सॉरी माँ, हम लोगों से गलती हुई, अब आप सबके साथ बैठ कर खाओगी, “अंकिता बोली

“यार सॉरी तो मुझे भी बोलनी है, सबसे ज्यादा मै ही अपने काम के लिये तुम्हे आवाज लगाता हूँ, अब से जब मै घर में रहूँगा, दरवाजा खोलना हो या कोई और काम हो, मै खुद करूँगा..”विशाल ने अफ़सोस जताते हुये कहा….।

… सासू माँ पीछे कहाँ रहने वाली,”बहू अब मै भी कामों में तुम्हारी मदद कराया करुँगी…”

परिवार के सदस्यों की बातें सुन रमा की आँख भर आई पर आज जान गई, चुप रहने से नहीं आवाज उठाने से ही समस्या का हल निकलता है…।

.—संगीता त्रिपाठी

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