आदित्य के कमरे का दरवाजा अभी तक भी नहीं खुला था, सुबह के नौ बज रहे थे और मंजू जी कब से उसके उठने का इंतजार कर रही थी, कभी वो घड़ी को देखती तो कभी रसोई में ठंडे हो रहे नाशते को, फिर सोचा जाकर दरवाजा बजा देती हूं, पर आदित्य का गुस्सा याद आते ही वो सिहर उठी, बड़ी देर तक बेचैन होकर कमरे से रसोई तक चक्कर लगाती रही, उनके पति भावेश जी तैयार होकर नाशते की टेबल पर आ चुके थे, मंजू जी की हालत उनसे छुपी हुई नहीं थी।
“मुझे तो नाश्ता दे दो, अभी वो तो उठा नहीं होगा, रात को देर तक सड़कों पर जो घुमता है, मुझे तो ऑफिस जाना है, काम करना है, घर चलाना है, और एक इनको देखो बस देर तक बिस्तर में पड़े रहते हैं, खाने और कमाने की जरा भी फ्रिक नहीं है।”
मंजू जी नाश्ता लगा देती है, “तुम भी खा लो बेकार इंतजार करने से क्या फायदा?” तुम्हें तो डायबिटीज है,अपने खाने-पीने का ख्याल रखा करो, बुढ़ापे में किसी से कोई उम्मीद मत रखना, तुम्हारा बेटा तो खुद अपनी जिंदगी की परवाह कर लें, वो ही बहुत है।”
मंजू जी नाश्ता करती है, भावेश जी उन्हें दवाई देते हैं, और अपने खाने का डिब्बा लेकर ऑफिस निकल जाते हैं।
करीब दस बजे आदित्य कमरे से बाहर आता है, “मम्मी एक कप अदरक की चाय बना दो, सिर भारी हो रहा है और आपने मुझे जगाया नहीं, बेटा भूखा सो रहा है तो सो रहा है, माता-पिता को जरा भी परवाह नहीं है, आप लोग तो नाश्ता कर लिये होंगे, अब मुझे भी दे दो, अपने ही घर में खाना-पीना मांगकर खाना होता है, मेरी तो कोई इज्जत ही नहीं है, कोई मनुहार ही नहीं करता है, कहने भर को इकलौता बेटा हूं।”
अपने सत्ताइस वर्षीय बेटे की बात सुनकर मंजू जी मन ही मन दुखी हो गई, माता-पिता जब बुढ़े होने लगते हैं, बच्चे उन पर चिल्लाना शुरू कर देते हैं, उन्हें इस बात की जरा भी परवाह नहीं होती कि इससे उनका मन कितना आहत होता होगा।
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वो नाश्ता देकर चुपचाप अखबार पढ़ने लग जाती है, तभी आदित्य फिर तेज आवाज में बोलता है, “ये सब क्या है? ये नाश्ता मुझे नहीं खाना है, कुछ और अच्छा सा बना दो, मै पागल हूं जो अकेले दीवारों से बात कर रहा हूं, आप मुझसे बात क्यों नहीं कर रहे हो?” आपको भी मुझसे बात करने में शर्म आती है क्या?”
“हां, मुझे अपने बेटे पर शर्म आती है, मुझे शर्म आती है कि मै तेरी मां हूं, “अब तो शर्मसार करना बंद कर दो” बहुत हो गया, तूने हमें किसी पडौसी किसी रिश्तेदार के आगे सिर उठाने लायक नहीं छोड़ा, तूने तो हर जगह अपने माता-पिता को शर्मसार ही किया है।”
“हमने तुझे क्या इसी दिन के लिए पढ़ाया-लिखाया था, इतनी अच्छी पढ़ाई करके भी घर पर बैठा है, रात भर आवारा दोस्तों के साथ घुमता है, ये तो मेरे संस्कार नहीं थे, खाने-पीने की गलत आदतें अपना ली है, गलत लोगों के साथ उठने-बैठने लगा है, तेरे गलत कामों की वजह से पुलिस तक घर पर आ गई है, ऐसा बेटा होने से अच्छा है, मै तुझे पैदा ही नहीं करती, तूने तो मेरे प्यार,दुलार,ममता को शर्मसार किया है।”
“अरे! नौकरी नहीं मिलती तो क्या कोई इस तरह अपना जीवन बर्बाद कर लेता है क्या? तू कोई बिजनस भी कर सकता है, अभी तो तेरे पास समय है, तेरे पापा कमा रहे हैं, घर चल रहा है, तुझ पर कोई जिम्मेदारी भी नहीं है, तू अपने काम को पूरा समय दे सकता है, अभी मेहनत कर, कमाई कम मिले तो भी कोई बात नहीं, कुछ तो कर, कोई भी काम छोटा या बड़ा नही होता है, पर तू है कि बस अपनी जिंदगी बर्बाद कर रहा है, और कोई भी माता-पिता ऐसे बेटे को देखकर शर्मसार ही होंगे।” मंजू जी बोले जा रही थी।
आदित्य के हाथो में चाय का कप यूं का यूं ही रखा रह गया, एक घुंट उसके हलक से नीचे नहीं उतरा, उसने चाय का कप रखा, नाश्ता भी नहीं किया और वापस अपने कमरे में चला गया, मंजू जी को पता था कि वो अकसर ऐसा ही करता है, उन्होंने कुछ नहीं कहा।
कुछ देर बाद आदित्य तैयार होकर घर से निकल गया, दोपहर से शाम हो गई, रात को भावेश जी भी आ गये, दोनों पति-पत्नी ने खाना भी खा लिया, जब उनके सोने का समय हुआ तब आदित्य आया, मंजू जी ने खाना रखा, उसने चुपचाप से खाया और अपने कमरे में चला गया।
सुबह दोनों ने सवाल किया कि, “तेरी कोई नौकरी लग गई है क्या?” पर आदित्य ने कोई जवाब नहीं दिया।
अब ये रोज की ही दिनचर्या हो गई थी, आदित्य सुबह समय पर उठता, चाय-नाश्ता करके तैयार होकर बाहर चला जाता और रात तक घर वापस आता, अब जो भी बनता था वो आसानी से खा लेता था।
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भावेश जी और मंजू जी कुछ समझ नहीं पाये, एक महीने बाद आदित्य ने मंजू जी के हाथों में चेक लाकर रख दिया, “मम्मी, ये मेरी इस महीने की कमाई है, मैंने अपने दोस्त के साथ मिलकर ट्युशन क्लासेज खोली है, कमाई बहुत ज्यादा नहीं है, पर शुरूआत है, आगे जाकर हम और भी विषयों की ट्युशन क्लासेज लेंगे, साथ ही मै अपने इंटरव्यू की भी तैयारी करता रहूंगा, मैं हर तरफ से नकार दिये जाने पर हार गया था, पर अब नहीं टूटूंगा, ना ही हार मानूंगा, ना ही आपको शर्मसार करूंगा।
आदित्य की बातें सुनकर मंजू जी की आंखें भर आई,और उन्होंने अपने बेटे को बहुत सारा आशीर्वाद दिया।
धन्यवाद
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक अप्रकाशित रचना