मुझे अफसोस है – गीता वाधवानी : Moral Stories in Hindi

 दरवाजे पर घंटी बजती है और कल्याणी देवी जाकर दरवाजा खोलते हैं। सामने पुलिस खड़ी थी। पुलिस ऑफिसर ने पूछा -” क्या आपके बेटे का नाम अभिषेक है और वह इस समय कहां है? ” 

 कल्याणी- घबरा कर पूछती है -” क्या हुआ इंस्पेक्टर साहब, क्या बात है? हां अभिषेक है मेरे बेटे का नाम और वह अंदर ही है। वह सो रहा है। ” 

 इंस्पेक्टर साहब-” उसे जगाइए और हमारे से मिलने के लिए कहिए। ” 

 कल्याणी-” हां हां जगाती हूं पर आप पहले बात तो बताइए। ” तभी कल्याणी के पति विनोद बाबू वहां आ जाते हैं। 

 कल्याणी अभिषेक को उठाती है। पुलिस का नाम सुनकर अभिषेक के चेहरे का रंग पीला पड़ जाता है।  कल्याणी-” अभिषेक तू इतना घबरा क्यों रहा है सच बता क्या किया है तूने? ” 

 अभिषेक-” मैंने कुछ नहीं किया। ” वह इंस्पेक्टर साहब के पास आता है। 

 इंस्पेक्टर -” क्या तुम अभिषेक हो? कल रात 2:00 बजे तुम कहां थे?  अपना मोबाइल दिखाओ। ” 

 अभिषेक घबराकर कहता है-” मैं दोस्त की पार्टी में गया था और अपना फोन भी दिखाता है। ” 

 इंस्पेक्टर-” पार्टी कहां पर थी और उस पार्टी में कौन-कौन था? ” 

 कल्याणी और विनोद बाबू बीच में बोल पडते हैं, आखिर बात क्या है इंस्पेक्टर साहब कुछ तो बताइए। 

 इंस्पेक्टर कोई जवाब नहीं देता और अभिषेक कहता है 

” पार्टी में मेरे सारे दोस्त थे और पार्टी मेरे दोस्त अजीत  के फ्लैट पर थी। वह एक अपार्टमेंट में रहता है उसका फ्लैट आठवीं मंजिल पर है। 

 इंस्पेक्टर-” सच-सच बताओ वहां क्या हुआ था? ” 

 अभिषेक-” पार्टी करने के बाद हम सब अपने-अपने घर चले गए थे। ” 

 इंस्पेक्टर को गुस्सा आ गया और वह अभिषेक को खींचकर  जीप में बिठाने लगा। विनोद बाबू ने कहा-”  “क्या बात है इंस्पेक्टर साहब, आप इसे ऐसे कैसे पकड़ कर ले जा सकते हैं, आखिर इसने किया क्या है?” 

 इंस्पेक्टर-” इसने और इसके दोस्तों ने मिलकर एक लड़की का बलात्कार किया है और उस लड़की ने चिट्ठी लिखकर उसके बाद आत्महत्या कर ली। इन लोगों ने उसे जान से मारने की कोशिश भी की थी। ताकि वह किसी को कुछ बता ना सके। उसे मरा हुआ समझकर यह छोड़कर चले गए और बाद में होश आने पर उस लड़की ने सबके नाम उस चिट्ठी में लिखे हैं।  वह लड़की अजीत के यहां काम करने वाली नौकरानी की बेटी ममता थी।” 

 इतना कहकर पुलिस अभिषेक को पकड़ कर ले गई। उसके चार दोस्त और पकड़े गए। उन सब के ऊपर केस किया गया। अभिषेक के चार दोस्तों के माता-पिता अपने बेटों की करतूत पर पर्दा डालते रहे और उन्हें बचाने की कोशिश करते रहे। उनका कहना था कि जवानी में ऐसी गलती हो जाती है, लेकिन कल्याणी देवी और विनोद बाबू को अभिषेक पर पूरा भरोसा था, उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि अभिषेक ऐसा काम कर सकता है, लेकिन उस लड़की की चिट्ठी चीख चीख कर सच बयां कर रही थी। 

 कल्याणी देवी का भरोसा टूट चुका था। वह हमेशा इस भ्रम में रही थी कि उन्होंने अपने बेटे को महिलाओं का आदर करना सिखाया है और उनके द्वारा दिए गए संस्कार बहुत अच्छे हैं। लेकिन संस्कारों पर कुसंगति का असर आ गया। 

 कल्याणी देवी ने जज साहब के फैसला सुनाने से पहले कहा-” जज साहब, मुझे यकीन नहीं हो रहा कि मेरा बेटा ऐसा कुछ कर सकता है, आज मुझे बहुत “अफसोस” हो रहा है कि मैंने ऐसे पुत्र को जन्म दिया मैंने इसे हमेशा औरतों का सम्मान करना सिखाया फिर ना जाने कैसे यह इतनी नीच हरकत पर उतर आया। यह अब हमारा बेटा नहीं है। आप इसे हमारी तरफ से जो चाहे मर्जी सजा दे और इसे फांसी पर चढ़ा दें और उस मासूम ने जिन-जिन लड़कों के नाम लिखे हैं

आप उन सब को ऐसी सजा दें कि कोई भी गुनाह करने से पहले सौ बार सोचे। हम हमेशा अपनी लड़कियों को देर रात घर से बाहर मत घूमो, जोर से मत हंसो, लड़कों से मत मिलो,दोस्ती मत करो, अच्छे ढंग के कपड़े पहनो, यही सब शिक्षाएं देते रहते हैं, सीखने की जरूरत है लड़कों को। हमारे सीखाने के बाद भी इन लड़कों ने इतना बुरा काम किया। मुझे शिकायत है उन माता-पिता से जो अपने नालायक लड़कों का पाप ढकने के लिए उनके साथ देते हैं। आप इन सब को कड़ी से कड़ी सजा दीजिए, शायद तब मेरा अफसोस थोड़ा कम हो सके। ” 

 ऐसा कहते हुए कल्याणी देवी न्यायालय से बाहर चली गईं और फूट-फूट कर रोने लगी। पांचो लड़कों को फांसी की सजा सुनाई और गरीब के साथ न्या

( इस कहानी का जीवित या मृत किसी भी व्यक्ति से किसी तरह का कोई संबंध नहीं है) 

 स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली

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