मुझे जन्म देने वाली मेरी माँ – के कामेश्वरी

सुलोचना और अशोक दोनों ही घर में रहते थे । अशोक बैंक में मैनेजर थे ।एक साल पहले ही रिटायर हुए थे । दो बच्चे थे लड़का पंकज विदेश में था और लड़की पल्लवी इसी शहर में थी । सब अपने -अपने घर गृहस्थी में व्यस्त थे । आज पल्लवी का जन्मदिन है ।सुबह से ही सुलोचना ने सोच रखा था कि क्या – क्या बनाना है क्योंकि हर साल पल्लवी अपने पति और दोनों बच्चों के साथ घर आती थी । उसकी पसंद के सारे पकवान सुलोचना बनाती थी । सब हँसते -हँसते खाना खाते थे

और देर रात तक रुक कर वे अपने घर चले जाते थे । हर साल सुलोचना नए -नए पकवान बनाती थी । बेटे पंकज के बारे में ही उन दोनों को फ़िक्र थी क्योंकि एम . एस करने के लिए गया हुआ पंकज अभी तक वापस नहीं आया था ।

वहीं उसने अपनी पसंद की लड़की से ब्याह कर लिया था और अब   उसकी दो लड़कियाँ भी हैं । आज तक सुलोचना और उसके पति अशोक ने पंकज के बच्चों को और  पंकज की पत्नी को स्काइप में ही देखा था  । अशोक तो कुछ नहीं कहते थे पर सुलोचना उसकी याद करके आँसू बहा लेती थी । आज भी उसे सुबह से ही पंकज की बहुत याद आ रही थी । वह उदास होकर बैठी थी कि अशोक ने कहा सुलु तबीयत तो ठीक है न बता हम दोनों ही रहते हैं कुछ तकलीफ़ है

तो डॉक्टर के पास जाएँगे ।सुलोचना ने कहा नहीं मैं बिलकुल ठीक हूँ । अब तो हमारी ज़िम्मेदारियाँ भी ख़त्म हो गई हैं । आप तो शाम को क्लब की तरफ़ निकल जाते हो और दोस्तों के साथ वक़्त बिता लेते हो पर मुझे ही समय बिताना मुश्किल हो रहा है । आकाश ने कहा तुम्हें पढ़ने का शौक़ है न क्यों नहीं कुछ कोर्स कर लेती  । सुलोचना ने कहा नहीं अशोक अब पढ़ने की इच्छा नहीं है । रुकिए चाय बनाकर लाती हूँ । वह जाती है और दो कप चाय बनाकर लाती है और दोनों पीने लगते हैं तभी फ़ोन की घंटी बजती है ।सुलोचना ने रिसीवर उठाया उधर से पल्लवी की आवाज़ आई !!!हेलो !!सुलोचना बहुत खुश हो गई और पल्लवी को जन्मदिन की बधाई



देती है । पल्लवी कहती है ,माँ आज शाम को आप दोनों तैयार रहना मैं कार भेज दूँगी । कहाँ जाना है पल्लवी तुम सब तो खाना खाने आने वाले हो न । पल्लवी कहती है नहीं माँ इसबार हम नहीं आएँगे आप दोनों आओगे मैंने आपको जो साड़ी दी है उसे ही पहनना उसमें ही सिला हुआ ब्लाउज़ भी है ।पापा तो वैसे भी पाजामा कुर्ता पहन लेंगे । आप लोगों के लिए सरप्राइज़ है माँ । बॉय कहकर फ़ोन रख देती है । जैसे तैसे शाम हुई । अशोक और सुलोचना तैयार होकर बैठे थे

तभी पल्लवी की भेजी हुई कार आ गई । दोनों चुपचाप कार में बैठ गए । उन्होंने ने देखा कार एक बहुत बड़े होटल के पास आकर रुक गई जैसे ही दोनों कार से बाहर आए बाहर पल्लवी खडी थी। उसने कहा माँ आप इस साडी में बहुत सुंदर दिख रही हैं । है न पापा!!!! अशोक मुस्कुराने लगे और सुलोचना शरमा गई । पल्लवी दोनों को अंदर लेकर गई और फ़र्स्ट रो में ही बिठाया और खुद स्टेज के पीछे काम है कहकर चली गई । सुलोचना दामाद रवि और बच्चों के लिए ढूँढ रही थी ।

कोई भी दिखाई नहीं दे रहे थे । हाल धीरे-धीरे भरने लगा । शायद प्रोग्राम बहुत ही धूमधाम से मनाया जा रहा था । मुख्य अतिथि के आते ही कार्यक्रम शुरू हो गया । पल्लवी के बॉस और कुछ ऑफ़िसर्स भी आ गए । सब लोगों के भाषणों के बाद बेस्ट फरफारमर को एवार्ड मिले ।जिनमें पल्लवी भी थी । पल्लवी अवार्ड लेने गई तो सुलोचना को गर्व महसूस हो रहा था !तभी पल्लवी के बॉस ने पल्लवी को जन्मदिन की बधाई

दी और स्टेज पर केक आ गया और पूरे हाल में लोग हेपी बर्थडे गा रहे थे । पल्लवी को केक काटने के लिए बुलाया गया ।उसने कहा एक मिनट और माइक अपने हाथ में लेकर कहती है कि माँ आप आइए न पापा आप भी आइए न कहकर दोनों को बुलाती है ।

सुलोचना सोचती है कि हम क्यों ?  फिर अपने पति के साथ स्टेज पर जाती है ।पल्लवी केक के सामने माँ को खड़ा करती है । उनके एक तरफ़ पिता जी को और एक तरफ़ वह खुद खड़ी हो जाती है । सुलोचना की नज़र केक पर पड़ती है जिस पर पल्लवी का नाम नहीं बल्कि सुलोचना का नाम लिखा था ।  जन्मदिन की बहुत -बहुत बधाई



माँ । वह हैरान हो जाती है और पल्लवी की तरफ़ देखती है । पल्लवी कहती है दोस्तों आज कंपनी की दसवीं सालगिरह के साथ -साथ मेरे जन्मदिन को भी मनाया जा रहा है !!जिसके लिये मैं आप सबको तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहती हूँ । आज मेरा जन्मदिन नहीं बल्कि मेरी जन्मदात्री मेरी माँ का जन्म दिन है । वह दिन जब वह माँ बनी थी । फिर जन्मदिन उनका मनाना चाहिए न कि मेरा । जब हम छोटे थे माँ हमारा जन्मदिन एक त्योहार के समान मनाती थी ।

नए कपड़े ,चॉकलेट और मिठाइयाँ हमारा मनपसंद खाना सब होता था । जैसे -जैसे हम बड़े होते जाते हैं ,हमारे जन्मदिन पर माँ नहीं दोस्त होते हैं । फिर पति ससुराल से सास ,ससुर देवर ,ननंद सब होते हैं पर माँ नहीं होती है । मेरे ख़याल से बिना माँ के जन्मदिन मनाने से कोई फ़ायदा ही नहीं है । इसलिए मैंने सोचा आज मेरा नहीं मुझे जन्म देने वाली मेरी माँ का जन्मदिन मनाऊँ । तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हॉल गूंज उठा । सुलोचना की आँखों से आँसू आ गए ।

उसी आँसुओं से धुँधली तस्वीरें उभर कर आई उनका बेटा पंकज। बहू प्रिया ,उनके बच्चे मधु और शील स्टेज पर आ रहे थे ।उनके पीछे दामाद रवि अपने दोनों बच्चों के साथ आ रहे थे । बच्चों के आते ही सुलोचना ने उन्हें गले लगा लिया ।पूरे लोग सुलोचना को घेर कर खड़े हो गए । सुलोचना अपने बेटे को पूरे पाँच साल बाद देख रही थी । उसकी पत्नी और बच्चों को पहली बार देख रही थी । उसके आँखों से ख़ुशी के आँसू झर रहे थे ।

बच्चों ने नानी और दादी के लिए बर्थडे गाना गाकर विश किया । पंकज ने माइक लिया और कहा जब दीदी ने मुझे बताया कि मैं मेरे जन्मदिन पर मेरा नहीं माँ का जन्मदिन मनाना चाहती हूँ यह सुनकर मैंने उन्हें दिल ही दिल में हेट्साप किया । वह सच ही कह रही हैं

कि बिना माँ के हमारा अस्तित्व ही नहीं है । माँ नौ महीने अपने कोख में रखती है ,पैदा होते ही बड़े ही प्यार से हमारा पालन पोषण करती है । पिताजी नौकरी करके पैसे कमाते हैं पर माँ हमें अनुशासन में रखती है हमारी सारी ज़रूरतों को पूरा करती है ।हम उसकी इच्छाओं के बारे में नहीं जानते हैं ।यहाँ तक उसके जन्मदिन को भी याद नहीं रखते ।

मुझे ही देखिए पाँच साल से मैं इंडिया नहीं आया ।हमेशा कोई न कोई बहाना मेरे पास रहता था कि छुट्टियाँ नहीं है ।बच्चों के स्कूल हैं कहकर टाल देता था । आज दीदी की वजह से मैं यहाँ हूँ । माँ मुझे माफ़ कर दीजिए कहते हुए माँ के पैर छूने लगता है । सुलोचना बेटे को गले लगा लेती है । उसे लगता है कि भगवान ने इतनी सारी ख़ुशियाँ उसकी झोली में एक साथ डाल दी हैं । पूरे परिवार के साथ वह केक कट करती है और पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा था ।

एक माँ की जीत की ख़ुशी थी । जिसकी कोई तुलना किसी से नहीं कर सकता है । वह अपनी ख़ुशी बच्चों और नाते पोतियों में ही पा सकती है । उसकी अपनी एक छोटी सी दुनिया होती है । जिसमें सिमटकर ही वह अपनी ख़ुशी पा लेती है ।

के कामेश्वरी

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