मुफ्त की मार – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

सौरभ की शादी पक्की हो गई  पीयूष के बड़े चाचा का फोन आया था घर में बड़ा उत्साह व्याप्त था शादी में जाना था सबको।

पीयूष ने मुझसे कहा सुन आलोक तू भी चल हम लोगो के साथ।यहां अकेला क्या करेगा आखिर सौरभ ने तुझे भी तो निमंत्रित किया है मेरा तो भाई है पर तेरा भी तो दोस्त है ..!!कितना बुरा लगेगा उसे तेरे ना जाने पर..!

नहीं भाई बहुत दूर की यात्रा है मुझे ऑफिस से छुट्टी नहीं मिल पाएगी मैने त्वरित बहाना कर दिया था ।असल बात तो रुपए की थी या तो मैं आने जाने का खर्च उठा लूं या व्यवहार भेज दूं!!

मैं किरायेदार था पीयूष के दूसरी कॉलोनी में बने घर में किराए से रहता था ।सौरभ का आना जाना लगा रहता था सो मेरा भी खासा परिचय हो गया था लेकिन अब इतना भी नही कि मैं इतना खर्चा उठाकर उसकी शादी में शामिल होने चल पड़ूं..!!

भाई तुम लोग तो जा ही रहे हो मेरा व्यवहार सौरभ को बधाई सहित दे देना मैंने पीयूष के प्रस्ताव से किनारा करते हुए कहा।

…इसीलिए तो कह रहा हूं तुझसे आखिर ट्रेन में रिजर्वेशन तो करवा ही रहे हैं तेरा भी करवा देता हूं बढ़िया एसी कोच रहेगा दूरी का पता भी नही चलेगा  बहती गंगा में तू भी हाथ धो ले साथ में चल बस मेरे पिताजी का ध्यान रखना इतनी जिम्मेदारी ले ले बुजुर्ग हैं मना कर रहा हूं पर मान ही नहीं रहे हैं ये बुजुर्गो को शादी ब्याह में जाने का

उछाह हम लोगो से कही ज्यादा रहता है सारे रिश्तेदारों से पंचायत जो करनी होती है अब मैं ठहरा सौरभ का भाई  उसकी तरफ ध्यान दूंगा या पिताजी की तरफ ।मेरे भाई तू साथ चल पिताजी का ख्याल रखे रहना बस ..कोई खर्चा नहीं होगा तेरा चल अब ज्यादा मत सोच बारात के मजे ले ले ।पीयूष ने मेरे ना जाने के मूल कारण का समाधान करते हुए कहा।

अब मैं सोच में डूब गया।इतना प्रलोभन भरा प्रस्ताव!! आना जाना मुफ्त तीन दिनों का भोजन पानी भी मुफ्त बारात का मजा अलग!! सौरभ अलग एहसान मानेगा..!!रंग लगे ना फिटकरी रंग चोखा.. मैने झट से हामी भर दी ।

बड़े उत्साह से बड़ा सा सूटकेस तैयार कर लिया। शादी में मुफ्त में भरपूर मजे करने का सुनहरा अवसर मिल रहा था।पियूष के पिताजी  बिचारे बुजुर्ग हैं बस उन्हें साथ ही तो चाहिए मेरा . सही बात है बिचारा पीयूष कैसे ध्यान रख पाएगा..मुझे थोड़ा सा ख्याल ही तो रखना है बस..बाकी तो मजे ही करने हैं..!!आसमान में उड़ रहा था मैं तो..!

मेरे पहुंचते ही पीयूष ने अपने पिता जी से मेरा परिचय करवा दिया । मैंने झुक कर चरण स्पर्श किया तो वे गदगद ही हो गए अरे तू तो बड़ा संस्कारी है ।चल मुझे गाड़ी में बिठा दे मैने देखा उन्हें चलने फिरने में तकलीफ थी थोड़ी मुश्किल से उन्हें सहारा देकर मैंने गाड़ी में बिठाया।राहत की सांस ली उन्हें ट्रेन में बिठा कर  बर्थ पर बिस्तर बिछाकर लिटा कर कि अब हो गया बस…अब तो इतनी लंबी यात्रा का इस मुफ्त के आरक्षित एसी कोच का आनंद लिया जाए सो मैंने इयर फोन लगाए लैपटॉप निकाला और बहती गंगा में हाथ धोते हुए शादी वाला नाश्ता का डिब्बा  कॉफी आदि खोल नई मूवी देखने लगा।

जोरो से कंधा झिंझोडे जाने से मैंने इयर फोन हटाए देखा तो पिता जी जोर से कह रहे थे बेटा इसकी आवाज तेज कर दो मुझे सुनाई नही दे रहा …!!आप भी देखेंगे क्या अरे आप तो सो रहे थे..!! आश्चर्य से मैने पूछा तो हंसने लगे बेटा मुझे ट्रेन में नींद ही नहीं आती है तेरा लैपटॉप बढ़िया है मुझे बहुत शौक है लेकिन मेरे लिए पुरानी मीनाकुमारी वाली पिक्चर लगा दे और आवाज तेज कर दे ये कान में ठेंठा (इयर फोन)मुझे नहीं सुहाता …मुझे ऊंचा सुनाई देता है कहते हुए मेरा लैपटॉप अपनी तरफ घुमा लिया उन्होंने…! मैं तो जैसे आसमान से गिरा… मुड़कर पीयूष की तरफ देखा तो वह दूर अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ पूरा आनंद ले रहा था।

खैर… मैंने सोचा अब ये तो मूवी में मगन रहेंगे तो मैं बढ़िया गहरी नींद ही ले लेता हूं कल शादी का पूरा मजा ले लूंगा.. बढ़िया एसी कोच था .. लेकिन यहां भी मैं गलत था …थोड़ी थोड़ी देर में रास्ते भर मैं पिता जी को कभी पानी कभी खाना कभी बाथरूम ले जाता रहा …ना ही सो पाया ना ही मूवी देख पाया ना ही कोई मजा..!!हां पिताजी ने भरपूर मजे लिए शादी के विशेष नाश्ते के डिब्बे खुलते जा रहे थे.. पिक्चर भी देखी गाने भी गाए… तेज आवाज लैपटॉप की मुझे चुभती रही..!!

किसी तरह बारह घंटों का सफर तय हुआ और हम सौरभ के घर पहुंच गए. ।पीयूष ने मेरी व्यवस्था पिताजी के शानदार कमरे में अलग से करवाई थी वह खुद अपने दोस्तों के साथ अलग रुका था मुझे पिता जी के साथ कमरे में पहुंचा कर वह ऐसे गायब हो गया जैसे गधे के सर से सींग..!

ट्रेन के अनुभवों ने मेरे शादी में मजे लेने के काल्पनिक आनंद को खुरचना शुरू कर ही दिया था रही सही कसर तब पूरी हो गई जब बारात के लिए मैं पिताजी को तैयार करने के बाद खुद नए कीमती सूट में सज धज कर इत्र लगाकर तैयार हुआ ही था कि पिता जी के पेट में घुमड़न होने लगी और उन्होंने संभालते संभालते भी मेरे ऊपर मितली कर दी..! सूट की परवाह ना करते हुए मैं पिताजी को संभालने  में लग गया तुरंत पियूष को फोन किया यह सोच कर कि अब तो पीयूष इन्हे संभालेगा और मैं शादी की धूमधाम का आनंद ले सकूंगा।

लेकिन पीयूष ने सुनते ही कहा आलोक मैं तो बताना ही भूल गया था पिता जी की पाचन शक्ति कमजोर है तुझे उन्हें शादी की मिठाई नाश्ता खाने से रोकना चाहिए था तूने ध्यान नहीं दिया बद परहेज से उनका पेट खराब हो गया . ..! मैं अभी डॉक्टर भेजता हूं दवाई दे देंगे … ऐसा कर तू उन्हीं के पास रुके रहना मैं यहां सौरभ के साथ बहुत ज्यादा व्यस्त हूं बिलकुल नहीं आ सकता मैं सौरभ को समझा दूंगा तेरे ना आ पाने की वजह..!!

तो क्या मैं शादी नही देख पाऊंगा पीयूष ..!!मैने अपने गंध मारते सूट को उतारते हुए कुढ़ कर तल्ख लहजे में कहा तो पीयूष ने तुरंत प्रत्युत्तर दिया था क्या कर सकते हैं आलोक भाई मजबूरी है तुझे बताया तो था  इसीलिए तो पापा को मना करता हूं कहीं आने जाने से पर उनकी जिद थी और तू भी साथ आने और उनका ख्याल करने को मान गया इसीलिए तुझे भी ले आया अब तेरी जिम्मेदारी पर हैं.. भाई मैं अभी तेरे लिए शादी की दावत की पूरी थाली भिजवा देता हूं मिठाइयां भी सुन बारात और शादी  का लाइव टेलीकास्ट होगा ऐसा करना तू वहीं रहकर अपने लैपटॉप में पापा को भी अपने साथ सब कुछ दिखाते रहना बताते रहना बिचारे दुखी हो रहे होंगे ..! और फोन कट गया था।

लैपटॉप पर बारात और शादी दिखाता देखता मैं सोच रहा था पीयूष के साथ यहां आकर#बहती गंगा में पीयूष ने हाथ धोए हैं या 

मैंने.!!

लतिका श्रीवास्तव 

#बहती गंगा में हाथ धोना#मुहावरा आधारित लघुकथा

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!