देखिए मम्मी जी…! नंदनी के मुन्ने के लिए क्या खरीदारी की है..? मैंने और रौशन ने…
यह कहकर संगीता ने सारे सामान बिखेर दिए…
सरला जी: अरे वाह..! इतना सामान…! सच में नंदिनी बहुत भाग्यशाली है जो, उसे इतने अच्छे भैया भाभी मिले… जिसकी वजह से उसका अपने ससुराल में रौब जमेगा… वरना जो उसके बड़े भैया भाभी पर जो जिम्मेदारी रहती, फिर तो बेचारी हमेशा दबी ही रहती…
सरला जी ने यह कटाक्ष अपनी बड़ी बहू अनामिका की ओर देखकर किया…
सरला जी के दो बेटे और एक बेटी थी… बड़ा बेटा कौशिक जो एक छोटी सी कंपनी में काम करता था और छोटा बेटा रौशन जो की एक बड़ी कंपनी में काम करता था… बेटी नंदिनी जिसकी शादी हो चुकी थी…
सरला जी के पति की आकस्मिक मृत्यु से कौशिक को कम उम्र में ही अपनी पढ़ाई छोड़, गृहस्थी का भार उठाना पड़ा… पर उसने अपने भाई बहन के परवरिस में कोई भी कमी नहीं छोड़ी… खुद तो पढ़ नहीं पाया, पर रौशन को इस काबिल बनाया के, आज वह जहां पर है, वहां तक पहुंच सके… नंदिनी की शादी भी कौशिक ने ही करवाई थी… उसके पास ज्यादा कमाई तो थी नहीं और रौशन भी उस वक्त नौकरी ढूंढ रहा था… इसलिए उसने कर्ज लेकर अपनी बहन की शादी को अच्छे से निपटाया…. आज कौशिक तो वहीं था, पर रौशन के बड़े ही ठांट थे… समय के साथ रौशन की तनख्वाह और घमंड दोनों बढ़ गए थे…
समय बितता गया, और दोनों भाइयों की भी शादी हो गई..
कौशिक की पत्नी अपने पति की हालत को देखते हुए, बड़े हिसाब से चलती थी… और रौशन की पत्नी रोशन की कमाई पर खूब इतराती…
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सरला जी भी अपने छोटे बेटे और बहू की ज्यादा तरफदारी करती थी… हालांकि उनसे कुछ भी छुपा ना था… पर पैसे ने उनकी आंख पर पट्टी बांध रखा था…
सरला जी की बेटी नंदिनी के बेटे का मुंडन समारोह था और आज उसी की खरीदारी कर लाए थे संगीता और रौशन…
सरला जी के ताने के बाद अनामिका कहती है… मां जी..! आपसे हमारी हालत छुपी नहीं है… पर फिर भी बात बात पर आप हमें ताने देती हैं…
सरला जी: हां… ताना ना दूं तो और क्या करूं…? जब भी तुझे और कौशिक को कुछ कहूं, तभी तुम लोगों नहीं है करके टाल देते हो…. समाज बिरादरी में रिश्ते निभाने के लिए, लेन देन भी बहुत जरूरी होता है… वह तो शुक्र मनाओ के तुम लोग का यहां हमारे बीच रहकर सब कुछ चल जाता है… वरना अकेले रहते तो पता चलता आटे दाल का भाव..!
अनामिका बेचारी और क्या कहती..? यह तो आज नया नहीं हुआ था…
पति अपनी कमाई से थोड़ा खर्चा ही दे पाता था… बाकी अनामिका सबके हिस्से का काम कर चुकाती थी… ऊपर से ताना मुफ्त…
बड़े ही दुखी मन से वह कौशिक से कहती है… सुनिए जी..! हर रोज़ अपमान के घूंट अब नहीं पिया जाता… यहां रोज़-रोज़ अपमान की बिरयानी से अच्छा है, दो सूखी रोटी इज्जत के खाएं…
कौशिक: हां… मैं समझता हूं अनामिका… पर मेरी जितनी कमाई है… उसमें दो बच्चों की पढ़ाई, घर खर्चा ही मुश्किल से हो पाता है… फिर किराए के घर का किराया कहां से देंगे..?
अनामिका: हमें एक छोटा का कमरा भी चलेगा… फिर मैं भी बच्चों को ट्यूशन पढ़ाऊंगी… यहां तो पूरा दिन काम में ही निकल जाता है… फिर भी नाम तो छोड़िए, सिर्फ ताना ही मिलता है… मुझे इस घर में घुटन सी होती है… कभी-कभी तो लगता है, मैं इस घर में एक गुलाम मात्र हूं…
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कौशिक: ठीक है…! मैं देखता हूं….
कुछ दिनों बाद…
कौशिक: मां..! मैं अपने परिवार के साथ अलग रहने जा रहा हूं…
सरला जी: देर से ही सही, पर तुझे अक्ल तो आई और अब तुझे पता चलेगा असल में घर चलाना किसे कहते हैं..? यहां तो छोटे भाई ने सब संभाल रखा था…
कौशिक: मां..! किसको किसने संभाला..? यह तो आप भी जानती है… पर सिर्फ कमाई को नज़र में रखकर भेदभाव करके, अापने आज मेरे सारे कर्तव्य को बेमायने कर दिया… बस इसी बात का अफसोस रहेगा… पर आप यह मत समझिएगा, मैं आपसे नाराज हूं… मेरे घर के दरवाजे आपके लिए हमेशा ही खुले रहेंगे…
इतने में रौशन और संगीता आकर कहते हैं… मां क्यों जाएगी आपके पास..? उल्टे आप लोग ही 2 दिन में उल्टे पांव वापस आएंगे…
कौशिक और अनामिका किसी के कोई बात का जवाब दिए बिना, बच्चों के साथ वहां से चले जाते हैं…
एक तरफ अनामिका और कौशिक अपने छोटे से संसार को संभालने में व्यस्त हो गए और दूसरी तरफ अनामिका के घर से निकलते ही, घर के ज्यादातर काम सरला जी को मिल गए…. जो ताना सरला जी कभी अनामिका को देती थी, आज उन्हें मिलती थी… अनामिका और कौशिक को आटे दाल के भाव का पता चले या ना चले..! पर सरला जी को उनकी अहमियत का पता चल चुका था…
फिर 1 दिन सुबह-सुबह दरवाजे की घंटी बजी…
संगीता: मम्मी..! मम्मी..! देखिए दरवाजे पर कौन है..?
ओहो..! पता नहीं यह मम्मी का क्या करूं..? किसी भी काम में फुर्ती नहीं… यह कहते हुए वह दरवाजा खोलती है…
दरवाजा खुलते ही वह अवाक हो जाती है… क्योंकि दरवाजे पर कौशिक सामान और परिवार के साथ खड़ा था…
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संगीता रौशन को आवाज़ लगाती है…
रौशन: क्यों भैया..? सुबह-सुबह..? बड़े रोब से गए थे…. सब रोब खत्म हो गया या पैसे खत्म हो गए..? अब आपने यहां रहने का हक खो दिया है…
पीछे से सरला जी कहती है… और किसने छीना वह हक..? जब मैंने दिया है..
रौशन: मां..! क्या कह रही है आप..? आप भूल गई, यह आपको छोड़ कर गए थे..?
सरला जी: हां..! यह गया था, क्योंकि एक मां ने अपने बेटो में भेदभाव किया था.. सच ही तो है जब बच्चे मां बाप को ना पूछे, तो बच्चे को सभी भला-बुरा कहते हैं… पर हर वक्त गलत बच्चे ही नहीं होते…कभी-कभी गलत मेरी जैसी मां भी होती है… जो सिर्फ ऊपरी चमक को देखकर, उसी को अपनी दुनिया समझ लेती है और प्यार और सम्मान खो बैठती है… माफ कर दे बेटा..! अब तू अपने परिवार के साथ यही रहेगा और जिसे साथ नहीं रहना… वह इस घर के दो हिस्से कर लें और एक हिस्से में रहे…. पर मैं अपने बड़े बेटे के हिस्से में ही रहूंगी…
चाहती तो यह घर सिर्फ कौशिक के नाम कर सकती थी… पर मेरे बड़े बेटे ने ही मुझे सिखाया है कि मां कभी भेदभाव नहीं करती…
फिर सरला जी रो पड़ती है…
कितना सच है ना..! बच्चे मां बाप को प्रताड़ित करते हैं, यह सभी को दिख जाता है… पर कभी-कभी बच्चे भी प्रताड़ित होते हैं… यह ना तो कोई देखता है और ना ही देखना चाहता है… तेजी से बदलते ज़माने में ना बच्चे की, ना माता-पिता की चलती है… क्योंकि अब के ज़माने सिर्फ और सिर्फ पैसों की चलती है…
धन्यवाद
स्वरचित/मौलिक/अप्रकाशित
#भेदभाव
रोनिता कुंडू