बात लगभग 30 साल पुरानी है। जब प्रीति कक्षा 5 में पढ़ती थी,, उस समय कक्षा में 5 बोर्ड परीक्षा हुआ करता थी
उस समय परीक्षा में लिखित परीक्षा के साथ-साथ आर्ट एंड क्राफ्ट भी हुआ करता था जिसमें सभी बच्चे मिट्टी के खिलौने बनाया करते थे,,,,
कोई तरबूज बनाता कोई खरबूजा बनाता ज्यादातर बच्चे फल बनाकर उस पर कलर करते और स्कूल में जमा कर देते,,,,, इसी तरह प्रीति को भी कुछ मिट्टी का बनाना था लेकिन उसकी रूचि फल बनाने में तो बिल्कुल भी नहीं थी
क्योंकि ड्राइंग उसकी बहुत कमजोर थी फूल पत्तियां उसे बनाना नहीं आता था ना तो वह मिट्टी की बना सकती थी ना हीं फूल पत्तियां बनाने में उसे पेपर पर रुचि थी,,,,, लेकिन वह सबसे हटके कुछ हमेशा ही बनाना चाहती थी जिसे सारे लोग देखें,,,,,
कुछ बिल्कुल अलग सा,,,, प्रीति के दिमाग में मिट्टी का टीवी बनाने का विचार घूम रहा था,,,,,,, और वह यह भी चाहती थी कि वह जो भी कलाकृति बनाए उसे यूं ही स्कूल के स्टोर में पटक ना दिया जाए ,,उसे तो संभाल कर प्रिंसिपल ऑफिस में सजाया जाए,,,,,,
टीवी बनाने का विचार मन में तो आ गया लेकिन उसके लिए बहुत सामग्रियां भी चाहिए होती थी,,,, आज के समय में सारी चीजें स्टेशनरी पर बड़ी आसानी से मिल जाती है। उस समय स्टेशनरी ना इतनी पास हुआ करती थी जो जरूरत का सामान वहां से ले आए तो सारी जुगाड़ घर में ही पड़े हुए सामान से करनी होती थी,,,,,
तो प्रीति ने घर में सामान खोजना चालू किया एक चौकोर शीशा जो पारदर्शी हो जिसे उस मिट्टी की टीवी पर लगाया जा सके,,,, वह मिलना बहुत मुश्किल हो रहा था,,,, दिमाग लगाया अगर कोई चपटी बोतल मिल जाए तो उसे भी काम हो सकता है।
तब उसे घर में पड़े हुए कबाड़ में 1 चपटी बोतल मिल गई जिस बोतल में लगाने के लिए एक सुंदर तस्वीर की भी आवश्यकता थी,,, अब इतना सुंदर चित्र कहां से लाए यह समस्या खड़ी हो गई,,, प्रीति की मम्मी शिल्पा की बिंदी लगाती थी
उस पर बड़ी सुंदर सी तस्वीर पहले भी आती थी वही तस्वीर आज भी आती है। शिल्पा बिंदी के पेपर पर सुंदर महिला की तस्वीर तो मिल गई,,अब समस्या ये थी उस मोटी सी तस्वीर को मोड़ने पर बोटल में जाएगी तो खराब हो सकती है। तस्वीर पर मोड़ने के निशान आ जाएंगे उसको किस प्रकार डाला जाए,,,,
आप सहज अंदाजा लगा सकते कि उसको उस बोतल में किस तरह से इस बच्ची ने फिट किया होगा,,, अब तस्वीर को बोतल में चली गई लेकिन अब वह उस बोतल में सीधी खड़ी नहीं हो रही थी तो उस कक्षा 5 में पढ़ने वाली बच्ची ने उसमें रोई भर दी,,,
जिससे वह चित्र बोतल की सतह से चिपक गया और बैलेंस में हो गया ,,अब उस बोतल का ढक्कन बंद करके उसे मिट्टी में चौकोर फिट किया गया और उसका विधिवत तरीके से बिल्कुल हूबहू टीवी की शक्ल दे दी गई,,,,
प्रीति को तो इस तरह की कलाकृति बनानी थी जिसे फेंका ना जाए उसकी देखभाल की जाए तो उसने उस मिट्टी की टीवी के ऊपरी हिस्से पर नौबजिया नामक बेल लगा दी जो बड़ी आसानी से लग जाती है जिसमें लाल रंग के फूल आते हैं फूल तो सभी को अच्छे लगते हैं तो उसकी बनाई हुई कलाकृति की देखभाल शिक्षकों द्वारा जरूर की जाएगी,,,,, प्रीति जिस तरह की कलाकृति चाह रही थी उस तरह की कलाकृति बनकर तैयार थी,,,
परीक्षा के आखिरी दिन सारे बच्चे बच्चियां अपने बनाए हुए कलाकृतियां जमा कर रहे थे तो प्रीति ने भी अपनी बनाई हुई कलाकृति जमा कर दी कई स्कूलों के बच्चे आए हुए थे
क्योंकि बोर्ड एग्जाम था प्रीति की कलाकृति कुछ विशेष ही थी सभी का ध्यान उसी की तरफ जा रहा था फिर एक शिक्षिका ने वह कलाकृति उठाई सभी शिक्षकों को दिखाते हुए बोली कि किस बच्चे ने बनाई है मैं उस बच्चे को देखना चाहती हूं।
प्रीति को खड़ा किया गया फिर पूरा प्रोसेस पूछा गया यह किस तरह से बनाई है फिर उसके लिए तालियां बजवाई गई सारे शिक्षकों ने तालियां बजाई और प्रिंसिपल मैडम बोली यह बच्ची भविष्य की बहुत बड़ी इंजीनियर जरूर बनेगी बहुत ही होनहार बच्ची है। कबाड़ में पड़ी हुई चीजों से सबसे अलग अनोखी चीज बनाई है।
इसकी भविष्य की मैं मंगल कामना करती हूं। उसी दिन प्रीति को आभास हो गया कि कुछ ना कुछ भगवान ने उसे अलग जरूर दिया है। और उसकी कलाकृति को प्रिंसिपल रूम में सजाया गया ,,, उस पर थोड़ा थोड़ा पानी भी डाला जाता
जिससे मिट्टी भी ना गले और फूल भी खिलते रहे,,,,, लेकिन प्रीति को सही मार्गदर्शन न मिलने की वजह से,,,, जानकारी के अभाव में एक होनहार इंजीनियर कहीं गुम हो गयी,,,, मन जैसा अपने कैरियर को उछाल ना दे पाई,,,,,
इसलिए सभी से मैं यह कहना चाहती हूं बहुत सारे बच्चे ईश्वर प्रदत्त जन्मजात गुण लेकर पैदा होते हैं उनको पहचाने उनसे बात करें क्योंकि बच्चों को कुछ नहीं पता होता है।, बच्चे तो बच्चे हैं। उनका मार्गदर्शन तो उनके माता-पिता ही करते हैं।
उनके हुनर को पहचान कर उनका सही मार्गदर्शन करें,, कि उनका टैलेंट क्या है अगर माता-पिता को सही जानकारी नहीं है तो किसी और से सलाह भी ले सकते हैं ।जो ईश्वर प्रदत्त हुनर होता है । उसको अगर सही दिशा मिल जाए
तो बहुत ऊंचाई को छुआ जा सकता है। अपने बच्चों के हुनर को पहचानिए उन्हें किस काम को करने में आनंद आता है। फिर देखिए आपके बच्चे कहां तक पहुंचते हैं। भूल से भी आप अपने बच्चे की किसी से तुलना ना करें।
नंबरों की अंधी दौड़ मे न दौड़े,,,
आपके बच्चे भी ईश्वर से कुछ विशेष उपहार लेकर दुनिया में जरूर आए होंगे उनको पहचाने,,, और उन्हें आगे बढ़ने में मदद करें,,,,
मंजू तिवारी ,गुड़गांव