रामनाथ जी शादी करके अपनी धर्म पत्नी के साथ गांव में ही रहते आए हैं।जमीन -जायदाद असीमित थी उनके पास।बड़ी सी हवेली पुरखों की विरासत थी।घर में नौकर -चाकर बहुत थे।रामनाथ जी का गांव में बहुत सम्मान भी था।बस एक ही दुख था उन्हें कि उनकी कोई संतान नहीं थी।पत्नी(प्रभा)ने कोई भी व्रत,उपवास ,पूजा बाकी नहीं रखी।परिणाम निराशाजनक ही रहा।
सरपंच होने के नाते गांव के लोग उन्हें सलाह देने लगे “सरपंच जी अब भगवान का नाम लेकर एक बच्चा गोद ले लीजिए।भाभी का भी मन लग जाएगा,और आपकी संपत्ति का वारिस भी मिल जाएगा”
घर आकर रामनाथ जी ने पत्नी को सारी बातें बताईं,और उनकी राय पूछी।प्रभा जी ने साफ शब्दों में कहा”एक तो मैं बच्चा गोद लेना ही नहीं चाहती।हम दोनों खुश हैं।हमें किसी सहारे की क्या जरूरत है?”
रामनाथ जी ने समझाया”अभी हमारा शरीर चल रहा है तो दोनों दौड़ -भाग कर लें रहें हैं।जब शरीर नहीं चलेगा,तब तो कोई चाहिए ना, संपत्ति की देखभाल के लिए।इसी ्लिए बच्चा गोद लेने की सोची।”
प्रभा जी पति का दुख समझ रही थी।बड़े सरल मन के थे सरपंच जी।प्रभा ने सोचा कि मेरे मायके से कोई बच्चा ले आएंगे।बहन या भाई का।, संपत्ति तो कहीं और नहीं चली जाएगी। अपनी मंशा बताकर प्रभा जी ने सख्ती से कह भी दिया”देखो जी,बच्चा तो मेरे मायके से ही लिया जाएगा।हां।”रामनाथ जी अच्छी तरह जानते थे कि ससुराल में साले -सालियों के बच्चे संपन्न हैं।उनका परिवार बच्चों को अच्छी परवरिश दे सकते हैं।ऐसे बच्चे को गोद लेकर कोई फायदा नहीं है।जिन्हें सहारे की जरूरत है,उन्हें ही देना चाहिए सहारा,क्योंकि ऐसे लोग अच्छी परवरिश पाकर ईमानदार बनते हैं।उन्हें जीवन मेंसिर उठा कर रहने का अवसर मिल सकता है।यही सोचकर रामनाथ जी ने अपने छोटे भाई,जो कि उतने संपन्न नहीं थे के बेटे को गोद लेने के इच्छुक हुए।जैसे ही यह बात प्रभा जी को पता चली, तिलमिलाए हुए बोली”मैं जानवर गोद ले लूंगी,पर तुम्हारे भाई के बच्चे को हरगिज नहीं।”रामनाथ जी समझ गए थे कि प्रभा जायदाद किसी और के हांथ देने से डरती हैं।
अगले ही दिन खेत में घूमते हुए धूलिया पर नजर पड़ी।सूखा चेहरा,पिचका हुआ पेट, पपड़ियां ह़ोंठों को सुखा चुकी थी।उन्हीं के खेत में काम करने वाली रमिया का बेटा था वह।रमिया अभी -अभी परलोक सिधारी थी। उन्होंने तुरंत उसे साथ लिया और घर पहुंचे।प्रभा को साफ-साफ बता दिया,” कि इसे ही गोद लेंगे।इसके आगे पीछे कोई नहीं।हमारा अपना बनकर रहेगा।खूब पढ़ाएंगे इसे। विपत्ति में हमारा सहारा बनेगा।”
पति की बात पसंद तो बिल्कुल नहीं आई प्रभा जी को,पर मजबूरी थी।सो मान गई।
देखते देखते दस साल बीत गए।धूलिया अब बड़ा हो गया था।पढ़ लिखकर शहर में वकालती सीख रहा था।इसी बीच रामनाथ बाबू की छोटे भाई के साथ जमीन को लेकर वाद -विवाद होने लगा।प्रभा ने अपने भाई के बच्चे को गोद ना लेने का बदला लेने का त्वरित उपाय सोचा,और अपने छोटे भाई को बुलवा लिया।प्रभा जी के भाई ने कुमंत्रणा दे-देकर उनका मन विषैला कर दिया।अब वह अपने पति की जमीन उसके नाम ट्रांसफर करवाना चाहती थी।इस उम्र में यह लालच प्रभा का तो हो नहीं सकता। आशंकित होकर ही यह सब कर रही है।ऐसा सोचकर रामनाथ जी ने आधी से भी ज्यादा जमीन उसके नाम कर दी।अब बीवी के भाई ने बहन को सिखा -पढ़ाकर धोखे से वह जमीन अपने नाम करवा ली।
प्रभा को तो कभी अंदेशा भी नहीं था कि सगा भाई यह कर सकता है।
अगले ही दिन रामनाथ बाबू ने धूलिया को शहर से बुलवा लिया।वह तो अनभिज्ञ था इन सब मामलों से।रमानाथ जी ने साफ शब्दों में कह दिया”देख धूलिया ,अब तुझे ही हमारी मदद करनी होगी।सारे कागजात लेकर रमानाथ जी और ,प्रभा जी को शहर के कोर्ट में ले गया।अपनी ताबड़तोड़ जिरह से पूरा मामला हल करवा दिया।ना तो रामनाथ बाबू के छोटे भाई के बेटे को भी कुछ नहीं मिला और न प्रभा के भाई के बेटे को।
रामनाथ जी ने पूरी संपत्ति धूलिया को देनी चाही,पर उसने मना कर दिया यह कहकर कि”बाबूजी, संपत्ति पाकर या पाने की लालच में अपने रिश्तेदारों को बदलते देखा है ना आपने। विपत्ति में कोई नहीं साथ देता,दुख बांटने में।मुझे संपत्ति का लालच लग गया तो मैं भी औरों के जैसा हो जाऊंगा।आपने मेरे लिए जो किया है,किए जा रहें हैं,इसके लिए मैं शपथ खाकर कहता हूं”विपत्ति में सबसे पहले आप मुझे अपने पास पाएंगे। संपत्ति के चक्कर में हमारा रिश्ता टूट जाएगा बाबूजी।मुझे माफ़ कर दीजियेगा।”
रामनाथ जी रिश्ते, विपत्ति और संपत्ति के चक्रव्यूह को देखकर हैरान थे।
शुभ्रा बैनर्जी