hindi stories with moral :
अब तक आपने पढ़ा। लक्ष्मी की सासू मां संतान न होने के कारण लक्ष्मी को घर से निकाल देती है और अपने पुत्र जगदीश का दूसरा विवाह लाजो से करवा देती है।
अब आगे –
सासु मां ने लक्ष्मी के कपड़ों की गठरी, उसकी रंग बिरंगी मालाएं सब कुछ लक्ष्मी के मुंह पर दे मारा। उस समय जगदीश घर पर नहीं था, होता तो शायद वह ऐसा करने से अम्मा जी को रोक पाता। लक्ष्मी वहां से रोती हुई चली गई। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं कहां जाऊं? वह गांव के बाहर उसी खंडहर में जा पहुंची। उसे उम्मीद थी कि शायद जगदीश उससे मिलने आए और सचमुच वह सांझ ढले आया।
जगदीश-“लक्ष्मी, अम्मा ने तुझे घर से निकाल दिया, मैं अम्मा जी से तो कुछ कह नहीं सकता, मुझे माफ कर दे, लेकिन मैं अम्मा जी को बिना बताए तेरे साथ चल सकता हूं।”
लक्ष्मी-“आप मेरे साथ चलोगे तो, लाजो और अम्मा जी का सहारा कौन होगा? आपके बापू जी के गुजर जाने के बाद अम्मा ने ही आपको अकेले हिम्मत से पाल पोस कर बड़ा किया है। आप घर जाओ। मेरी चिंता मत करो, मैं कहीं किसी भी गांव में रह लूंगी।”
जगदीश-“मैं सुबह पैसे लेकर आता हूं और कुछ कपड़े भी, तू चिंता मत कर, छुपते छुपाते आऊंगा और हम दोनों कहीं दूर चले जाएंगे।”
लक्ष्मी को ये गवारा ना था। जगदीश के वहां से निकलते ही, वह भी अपनी गठरी उठा कर खंडहर से निकल गई। लगातार पैदल चलते-चलते बहुत दूर निकल गई। जब उसे ध्यान आया कि वह अकेली रास्ते पर चल रही है और वह भी इतनी रात में तो घबरा कर चुपचाप एक काली चुनरी ओढ़ कर घने पेड़ के नीचे बैठ गई और सूरज की पहली किरण फूटते ही आगे चल पड़ी। उसे कहां जाना है कुछ नहीं पता।
सुबह जगदीश आया और खंडहर में लक्ष्मी को न पाकर समझ गया कि वह चली गई है और वह वापस घर लौट गया।
इधर लक्ष्मी चलते-चलते बेहाल हो चुकी थी। उसे लग रहा था कि वह बहुत दूर आ चुकी है। दोपहर हो चुकी थी। सूरज सिर पर चमक रहा था। पसीने से बेहाल लक्ष्मी को भूख और प्यास सता रही थी। खाने को तो कुछ नहीं मिला लेकिन उस सुनसान रास्ते पर एक पेड़ के नीचे एक घड़े में थोड़ा पानी मिल गया।
पानी पीकर वह पेड़ के नीचे बैठ गई, थोड़ी देर बाद फिर चल पड़ी।
चलते-चलते कुछ खेत और झोपड़ियां दिखने लगे थे। वह एक गांव की सीमा पर पहुंच चुकी थी। गांव देखकर उसने राहत की सांस ली और एक पेड़ के नीचे रात को आराम किया। सुबह-सुबह जंगल से लकड़ी, टाट के टुकड़े, बड़े-बड़े पत्ते और कुछ सूतलिया चुनकर लाई और एक झोपड़ी नुमा कमरा बांधकर तैयार कर लिया।
अब वह जंगल से फूल लाकर मालाएं बनाती थी और गांव में जाकर बेचती थी। एक दिन शाम को उसी झोपड़ी के बाहर बैठी, भगवान का भजन गुनगुना रही थी। गांव की दो औरतें हाट से सब्जियां खरीद कर घर लौट रही थी। लक्ष्मी को वहां अकेला बैठे देख कर, वे दोनों भी उसके पास आकर बैठ गई और उसका भजन सुनने लगी। लक्ष्मी ने उन्हें दो-तीन भजन सुनाए और बातों बातों में वह लक्ष्मी के बारे में पूछने लगी। लक्ष्मी ने उन्हें टाल दिया। बातें करते-करते उनमें से एक औरत ने बताया कि “उसकी बहू गर्भवती है। उसने यह भी बताया कि उसकी बहू के बच्चे, जीवित नहीं रह पाते हैं, जन्म लेते ही उनकी मृत्यु हो जाती है।”
लक्ष्मी ने कहा-“तुम चिंता मत करो बहन, तुम्हारे घर स्वस्थ सुंदर कन्या का जन्म होगा।” और फिर उसे न जाने क्या सूझा, उठकर अंदर गई और एक सुंदर सा लाल रंग का मोती उस औरत के हाथ में देते हुए बोली,”यह लाल मोती काले धागे में डालकर अपनी बहू को पहना देना, इस बार कोई गड़बड़ नहीं होगी। ईश्वर के आशीर्वाद से बहू और बच्ची दोनों स्वस्थ रहेंगे।”
उस औरत ने अपनी बहू को मोती पहना दिया और जैसा लक्ष्मी ने कहा था वैसा ही हुआ। उस औरत का लक्ष्मी पर विश्वास बन गया। वह अपनी पहचान वाली एक औरत को, उसकी बहू को संतान होने का आशीर्वाद दिलवाने लक्ष्मी के पास ले आई और लक्ष्मी को मिठाई के साथ साथ खाने-पीने का सामान भी दे गई। लक्ष्मी ने उसे ईश्वर के आशीर्वाद के साथ नीला मोती दिया, उसके यहां पुत्र ने जन्म लिया।
बस तबसे लक्ष्मी को फूलों की माला बनाकर भेजने की जरूरत नहीं रही। गांव वाले अपने प्रेम और श्रद्धा से कुछ ना कुछ दे जाते थे। लक्ष्मी कभी किसी से कुछ नहीं मांगती थी। धीरे-धीरे उसे अलग-अलग गांवों के लोग निमंत्रण देने लगे और वह”मोतियों वाली अम्मा”के नाम से प्रसिद्ध हो गई।
एकांत में वह बहुत रोती थी और कहती थी”हे ईश्वर तूने मुझे संतान नहीं दी, तो तूने मुझे ही क्यों चुना दूसरों को संतान का आशीर्वाद देने के लिए, मैं खुश हूं कि सबके घरों में खुशियां आए ,लेकिन मेरी गोद तूने क्यों खाली रखी?”
उसके ह्रदय की पीड़ा और आंसू देखने वाला कोई नहीं था।
अगला भाग
मोतियों वाली अम्मा (भाग 3 ) – गीता वाधवानी : hindi stories with moral
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
गीता वाधवानी दिल्ली
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