hindi stories with moral : सब उस बूढ़ी औरत को मोतियों वाली अम्मा कहकर बुलाते थे। आज अम्मा बरसो बाद इस गांव में आई थी। गांव काफी बदल चुका था और वह उस घर को बड़े गौर से टकटकी लगाकर देख रही थी, जो पहले से ज्यादा सुंदर लग रहा था।
उस आंगन में खेलते बच्चों को देखकर उसकी आंखें भर आई और वह फौरन वापस मुड़ गई। गांव के बाहर बने खंडहर की ओर और पीछे पीछे सैकड़ों औरतें मोतियों वाली अम्मा की जय बोलते हुए आ रही थी।
कल और आज में बस यही समानता थी कि पहले भी कोई उसके आंसू ना देख पाता था और न आज देख पाता है। उस खंडहर में ही अम्मा रह रही थी। वैसे भी कौन सा उसका एक ठिकाना था, आज यहां तो कल वहां।
खंडहर पर पहुंचकर अम्मा जी ने कहा-“अगर कोई मिलना चाहे, तो कल आइए।”इतना कहकर अम्मा खंडहर के अंदर चली गई। औरतें भी अपने अपने घरों को लौट गई।
एकांत पाते ही अम्मा जी का मन उस सुंदर घर के आंगन में जा पहुंचा। उनके कानों में उनका नाम गूंज रहा था। उनकी सासू मां उन्हें पुकार रही थी।
“लक्ष्मी, ओ लक्ष्मी, आजा बेटा, नाश्ता कर ले, कब से घर के कामों में लगी हुई है। समय पर खाया पिया कर, अपना ध्यान रखा कर, तभी तो तू हमें तंदुरुस्त संतान दे पाएगी।”
लक्ष्मी-“(शर्माते हुए) क्या अम्मा जी आप भी!”
सास-“अरे! शरमाती क्यों हो, सच ही तो कह रही हूं।”
सासु मां अपनी बहू लक्ष्मी का बहुत ध्यान रखती थी। लक्ष्मी बहुत सुंदर और समझदार थी। उसका पति जगदीश इकलौती संतान था। जगदीश भी लक्ष्मी को बेहद चाहता था, और अपनी मां से डरता भी बहुत था। इसी प्यार भरे माहौल में 3 वर्ष बीत चुके थे, किंतु लक्ष्मी की गोद अभी तक खाली थी।
दोपहर में खाली समय बिताने के लिए लक्ष्मी रंग-बिरंगे मोतियों की मालाएं बनाती थी। एक दुकानदार ढेर सारे मोती और सुई धागा दे जाता था और बता कर जाता था कि कितनी मालाएं बनानी है। गांव में कुछ दूसरी ओर से भी यह काम करती थी। लक्ष्मी को नीले और लाल रंग के मोती बेहद पसंद थे।
संतान न होने के कारण धीरे-धीरे लक्ष्मी की सास का व्यवहार लक्ष्मी के प्रति बदलने लगा। वह कभी दूसरों के सामने उसे ताने मारती थी, कभी अकेले में।
लक्ष्मी वैद्य जी को दिखा आई थी, पर उनकी दवा ने भी काम ना किया। लक्ष्मी ने एक बार अपनी सास से कहा-“अम्मा जी, मैं और ये दोनों एक बार शहर में बड़े डॉक्टर को दिखा देते हैं।”
सास ने कहा-“करम जली, सारी कमी तेरे अंदर है, बांझ है तू बांझ, मेरे बेटे को डॉक्टर के पास ले जाकर, पूरे गांव में उसका नाम बदनाम करना चाहती है। कोई कमी ना है उसमें। मरद है वो मरद।”
लक्ष्मी ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की पर वह अपनी बात पर अड़ी रही और जगदीश भी कुछ नहीं बोला।
एक दिन जगदीश और उसकी मां पड़ोस के गांव में किसी शादी में गए और सुबह वापस आए।
वापस आने पर एक सुंदर सी लड़की उनकी साथ थी।
लक्ष्मी की सास ने उसका बड़े प्रेम से स्वागत किया और लक्ष्मी को अपने पास बुलाया और कहा-“देख लक्ष्मी, यह तेरी छोटी बहन जैसी है, इसलिए बहन की तरह ही प्यार करना। सौतन मत समझना। जा अब, जगदीश और इसके लिए कमरा तैयार कर दे। मैं भी क्या करती, तू तो मुझे संतान दे ना सकी, मैंने जगदीश का दूसरा ब्याह करवा दिया। क्या करूं मैं भी मजबूर हूं। मरने से पहले वारिस का मुंह तो देख लूं।”
लक्ष्मी के सिर पर तो मानो आसमान गिर पड़ा और जगदीश चुपचाप सिर झुकाए पास में खड़ा था।
लक्ष्मी मरती क्या न करती, रोते-रोते सारे काम कर रही थी।
लेकिन उसकी सौतन लाजो के प्रति उसका व्यवहार सचमुच बहन जैसा ही रहा। लाजो भी उसे दीदी कहती थी और उसका सम्मान करती थी। मन ही मन दोनों एक दूसरे की मजबूरी समझती थी। धीरे-धीरे वक्त बीतता गया। 2 वर्ष बीत गए और लाजो की गोद भी खाली ही थी। सासु मां की की रातों की नींद उड़ चुकी थी। उनके मन में यह विचार उपजने लगा था कि लक्ष्मी के दुर्भाग्य का असर लाजो पर भी होने लगा है। 1 दिन सुबह जैसे ही लक्ष्मी लाजो को नाश्ता देने लगी सासु मां ने नाश्ते की थाली छीन कर, लक्ष्मी का हाथ कस कर पकड़ लिया और उसे घसीटती हुई घर के बाहर ले गई और बाहर धकेल कर दरवाजा बंद कर दिया और कहने लगी-“तेरे साथ रहकर तेरी मनहूसियत का साया लाजो पर पड़ रहा है। तू चली जा यहां से, फिर कभी अपनी सूरत हमें मत दिखाना।”
लक्ष्मी ने रोते-रोते कहा-“अम्मा जी, कहां जाऊंगी मैं ?मेरा तो मायके में भी कोई नहीं है, ना कोई नाते रिश्तेदार है।”
सासू मां-“तो मैं क्या करूं, क्या मैं तेरी वजह से अपने कुल का नाश होने दूं, नाम समाप्त होने दूं, उसे आगे बढ़ने से रोक दूं।
लाजो ने भी अपनी सास को समझाने की कोशिश की। सासु मां ने उसे डांट दिया और कहा-“जा तू भी चली जा उसके साथ, मैं अपने बेटे का एक और ब्याह करवा दूंगी।”
लाजो डर के मारे चुप हो गई।
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मोतियों वाली अम्मा (भाग 2 ) – गीता वाधवानी : hindi stories with moral
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गीता वाधवानी दिल्ली