आकाश में चांद रजत थाल के समान लटका हुआ है…उज्जवल धवल चांदनी चहुंओर फैली हुई है…मूंगा के आंखों में सुनापन…नींद कोसों दूर…
भविष्य का पता नहीं….बेमुरव्वत वर्तमान… और अतीत में उलझा बावडा़ मन…
बाल-विधवा …मूंगा.. न नैहर में कोई न ससुराल में…आगे नाथ न पीछे पगहा…
दुसरों का सेवा-टहल कर उसने अपनी आधी उम्र व्यतीत कर दी…जो मिला खाया …पहना…असंतोष उसे होता है जिसे कुछ उम्मीद होती है ..यहां तो सबकुछ नसीब के सहारे..
आज मूंगा को याद आ रही है …उसकी प्यारी बिटिया जिसे उसने जन्म भले ही नहीं दिया हो … अपना पेट काट पाल-पोसकर..बडा़ किया था.. दुनिया के झंझावातों से बचाया था..
उसे आज भी याद है…वह आन गांव से काम निपटा कर सांझ ढले वापस आ रही थी…अचानक सरसों के खेत से किसी बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी… उसके पांव ठिठक गये…इधर उधर देखा…ग्रामीण परिवेश…भूत-प्रेत…किचीन…जिन्न …की अनेक झूठी-सच्ची कहानियां सुन रखी थी.. दूर-दूर तक किसी का नामोनिशान नहीं… वह भागना चाह रही थी.. फिर वही धीमी-धीमी सिसकियां..
पैर जैसे जम गये…मूंगा ने जी कडा़ किया.. आहिस्ता-आहिस्ता सरसों के खेत में आगे बढी़..जय हनुमान ज्ञान गुण सागर…बुदबुदाते हुए…
चिथडों में लिपटी नवजात कन्या … उसका दिल धक् कर गया.. फिर उसे होश नहीं…. कैसे बच्ची को गोद में उठाया …थर-थर कांपते…दौड़ते हुए सरपंच के सामने जा खडी़ हुई..”यह..यह…” बोली नहीं निकल रही थी….जिला-जवार उमड़ पडा़ …आजतक ऐसा देखा न सुना.. !
“यह किसका कलंक उठाकर ले आई… मूंगा ” बुढिया काकी ने दुनियादारी का हवाला दिया।
” अब यह किसकी औलाद है मैं नहीं जानती… लेकिन यह प्रभु का उपहार समझ मैं स्वीकारती हूं! ” मूंगा के स्नेह और दृढता का प्रभाव
लोगों पर पड़ा और सर्वसम्मति से बच्ची मूंगा को सौंप दी गयी…
उसके कलेजे का टुकडा़ लाली दिन दूनी ..रात चौगुनी बढ़ने लगी ..मूंगा लाली को निर्धन की पोटली के समान संभाल कर रखती… एक अज्ञात भय हृदय में रहता…”कोई मेरे लाली को मुझसे छीन न ले…”
“मां…मां “…कह लाली उससे ढेरो बातें करती..
“मैं मीठी रोटी खाऊंगी…”
वह गांव के स्कूल जाने लगी..कुशाग्र बुद्धि …आज्ञाकारिणी …लाली ..सबकी चहेती…शिक्षक आश्चर्य करते…”आपकी बेटी बहुत प्रतिभाशाली है…एकदिन बडा़ नाम करेगी. “
मूंगा गद गद हो जाती.. “हे सुरुज देव मेरी बिटिया की रक्षा करना….”
समय बीतते देर लगती है..
“मां..मां मेरा चयन विदेशी छात्रवृति की प्रतियोगी परीक्षा में पास होने के कारण हुआ है..”खुशी से हांफते कांपते लाली मूंगा के गले जा लगी.. “
“मतलब…”मूंगा के लिये काला अक्षर भैंस बराबर..
बधाई देने वालों की तांता लग गयी …”बहुत किस्मतवाली हो लाली की मां…इस परीक्षा में गिनती के बच्चों का चयन हुआ है…उसमें तुम्हारी बिटिया भी है..””
“विदेश पढने जायेगी लाली…”
भावी प्रबल है…उसे कोई बदल नहीं सकता…
जिस बच्ची को माता-पिता ने गले का फंदा समझकर फेंक दिया था …वह आज विमान पर सात समंदर पार उड़ चली …पढाई..रहन-सहन सबका खर्चा सरकारी…
अभी तक यन्त्रवत सबकुछ होता गया…लाली का पासपोर्ट जरुरी कागजात… उसका विदेश गमन… चार वर्षों का विछोह कैसे सहेगी मूंगा…
” पत्ते के ओट में मनुष्य का भाग्य छिपा रहता है…”
“मैं इंतजार करुंगी …अपनी बिटिया का.. “
मूंगा अपनेआप को दिलासा देती…लाली वहां की बातें फोन पर बताती..”मां ,यहां सबकुछ वहां से अलग है..सुंदर …रोमांचक..तुम अच्छी तरह रहना .. पढाई पूरी कर तुम्हें लेने आउंगी…”
आज लाली को विदेश गये कई वर्ष बीत गये…न खत..न पैसा..न कोई समाचार…मूंगा भी बूढी लाचार हो चली है …
बगल गांव वाले बता रहे थे…”लाली ने वहीं विवाह कर लिया है ..एक बेटा भी है..”
मूंगा का दिल टूट गया…जीने की चाहत नहीं…किंतु हाय रे ममता ..”कहीं आने पर मां को खोजा तो…”
कभी-कभी आहत दिल से आह निकलती है..”काश हम कभी मिले ही न होते..”
अचानक लाली पति और बेटे के साथ आ पहुंची ,”अम्मा, अम्भा… मुझे आने में देर हो गई… कुछ कारणवश मैं तुम्हें अपने विवाह और बेटे के जन्म की सूचना नहीं दे पाई। “
लाली की आवाज़ सुन …दामाद और नाती को एक साथ देख… लाली की टूटती सांसे लौट आई …आंखे सावन भादो बन गई।
“माफ करना अम्मा, मैने तुम्हें बहुत दुख दिये अब और नहीं… मैं तुम्हें अपने साथ ले जाऊंगी! “
पास-पड़ोस इकट्ठे हो आये और मूंगा की निःस्वार्थ वात्सल्य का सुपरिणाम देख… ईश्वर का धन्यवाद करने लगे। लाली ने साबित कर दिया वह अपनी पालिता मां मूंगा का अभिमान है कलंक नहीं।
आज फिर चाँद निकला है मूंगा और लाली के जीवन में खुशियां लेकर ।
सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना-डाॅ उर्मिला सिन्हा।।©®