रात के 11:30 बज चुके थे..सिलेबस से कल की ऑनलाइन क्लासेस का मटेरियल निकाल ही रही थी कि पास रखे मोबाइल में व्हाट्सएप पर तन्मय का मैसेज चमका।
★ ” सरप्राइईईईज…मैं आपके शहर में आ गया..”
पढ़कर मेरी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा..
तुरंत मैंने भी रिप्लाई किया..
- ” इतना खतरनाक सरप्राइज..?? आश्चर्य से.
लेकिन आप तो अगले महीने आने वाले थे ना..??”
★ अरे आपसे मिलने के लिए तो मैं कभी भी कहीं भी जा सकता हूँ..
अच्छा..अब रखता हूँ..कल हमारे मिलने के प्रोग्राम के लिए सुबह 10:00 बजे कॉल करता हूँ…शुभरात्रि..
- शुभरात्रि जी..😊
रिप्लाई कर सारी कॉपी क़िताबों को बन्द किया और सुबह के इंतज़ार के लिए खुशी से झूमती घूमती अपने बिस्तर पर जाकर निढाल सी लेट गई..
कल तन्मय से मिलने की जो खुशी थी..अब तक सिर्फ फोन पर ही तो बातें हुईं थी उससे..और सोशल मीडिया पर फोटो में ही उसे देखा था..कल उसे साक्षात देखूंगी..
बहुत सम्मान देता है वो मुझे..उम्र में भले ही मुझसे छोटा लेकिन शायद अनुभव बहुत ज्यादा..
ज़िन्दगी को कैसे जीना चाहिए शायद कुछ हद तक मैं भी सीख चुकी थी उससे..
सच कहूँ तो शायद इश्क़ हो गया था मुझे उससे..
यही सोचते विचारते कब सुबह हो गई पता ही नहीं चला. सारी रात उसके ख्यालों में ही गुज़र गई।
ठीक सुबह 10:10 बजे मोबाइल की रिंग बजी.. देखा तो उसी का कॉल था..
- हेलो तनु..बताओ..क्या प्रोग्राम है आज का..
कहाँ ले चल रहे हो मुझे आज..??
प्यार से मैं उसे तनु ही कहती हूँ..
★ प्रोग्राम क्या कामायिनी जी..
आ जाइये ना.. हॉटल ब्लू शाइन के रूम नम्बर 512 में..
- वो तो मैं आ जाती हूँ..फिर उसके बाद कहाँ ले चलोगे अपनी काम्या को..!!
★ अरे काम्याजी..आप आइये तो सही..
फिर देखते हैं ना.. कुछ आप हमें और कुछ हम आपको.!!
- अच्छा..?? समझ रही हूँ आपको..
★ मुझे तो पता ही था..
हमारी काम्या इतनी भी नासमझ…..??
- बन्द करो अपनी बकवास..वो अपनी बात पूरी कर पाता उसके पहले ही मैंने उसे चुप कर दिया।
★ क्या हुआ काम्या जी..क्या बस यही चाहत है आपकी..??
यह सुनकर मुझे मन ही मन हँसी आई और खुद पर गुस्सा भी..
फिर भी खुद को सामान्य करते हुए मैंने उसे कहा।
- आखिर तुम भी उस भीड़ का ही हिस्सा निकले तनु.. जिनकी मित्रता और चाहत जिस्मों पर जाकर अपना दम तोड़ देती है..
लेकिन मेरी एक बात याद रखना…
किसी भी स्त्री को कभी भी जिस्म की कोई कमी नहीं होती… लेकिन यदि वो चाहे तो..!!
वो तो एक पुरुष में चाहती है वो आत्मा.. जो स्त्री और पुरुष दोनों से परे हो.. कोई भी स्त्री किसी पुरुष को अपना मित्र बनाती है तो सिर्फ इसलिए.. क्योंकि वो जीना चाहती है उन लम्हों को जो जिम्मेदारियों के बोझ तले दब जाते हैं, वो खुल कर हँसना चाहती है.. वो उसके साथ बिना सिर पैर की बातें कर खिलखिलाना चाहती है..
वो चाहती है कि कोई पुरुष ऐसा हो जो सिर्फ उसको सुने.. कोई तो हो जो सिर्फ उसकी परवाह करे..
कोई तो हो जो उसके साथ कहकहे लगाए..
टूटते बिखरते लम्हों में कोई उसे हिम्मत बँधाए..
- ना कि तुम्हारी तरह.. छी: ..!!
शर्म आ रही है मुझे आज खुद पर की..
क्यों ना मैं तुम्हें पहचान सकी..??
क्यों मैं तुम जैसे घटिया व्यक्ति के प्रेमजाल में पड़ गई..
- काश..तन्मय जी..
आप बस इतना समझ पाते कि..
” प्रेम में पड़ी स्त्री को
तुम्हारे साथ सोने से ज्यादा अच्छा लगता है..
तुम्हारे साथ जागना..!! “
©विनोद सांखला
#कलमदार