मोहताज… – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi

…निम्मी ने रोज की तरह… बाहर से ही आवाज लगाया… “रिया हो गया… जल्दी चलो…!”

 रिया के घर का दरवाजा खुला ही था… अंदर उसके भैया बैठे हुए थे… बिल्कुल दरवाजे के सामने… उनकी नज़रें निम्मी पर थी…

 निम्मी थोड़ा बगल हट गई… रोज का हो गया था… वह जब भी रिया को बुलाने आती… उसके भैया रमेश बिल्कुल दरवाजे के पास बैठे… उसे घूरते रहते…

 उनके देखने का तरीका अच्छा नहीं था… निम्मी की आंखें झेंप जाती…थोड़ी देर में रिया आ गई… उसने स्कूटी स्टार्ट की… दोनों बैठकर कॉलेज के लिए निकल गईं…

 करीब महीना भर हुआ था… निम्मी को कॉलेज जाते… जब तक स्कूल में थी तब तक तो सब ठीक था… घर के पास ही पैदल रास्ते पर स्कूल पड़ता था… लेकिन आगे की पढ़ाई बहुत मुश्किल हो चुकी थी… कॉलेज जाने में काफी दूरी तय करनी पड़ती थी…

 रिया स्कूल से ही निम्मी के साथ ही थी… दोनों में कभी अधिक दोस्ती नहीं थी… लेकिन अब एक ही कॉलेज में… एक ही विषय लेने के कारण… दोनों साथ ही आती जाती थीं…

 निम्मी को रिया की गाड़ी पर लिफ्ट मिल जाता था… और रिया को बिना मेहनत किए नोट्स… निम्मी पढ़ाई में बढ़िया थी… दोनों का अपना-अपना स्वार्थ था…

 निम्मी को उसके घर आना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था… पहले कुछ दिन तो उसने ध्यान ही नहीं दिया… पर जब रोज की बात हो गई तो अब उसके लिए यह अत्यंत असहज हो गया…

उसने अपनी मां से इस बारे में… कई बार बात करने की कोशिश की…” मां मुझे रिया के घर… रोज जाना अच्छा नहीं लगता… उसे कहती हूं कि तुम ही मुझे कभी लेने आ जाओ… या कम से कम बाहर तो रहो तैयार होकर… मगर वह… जब तक मैं आवाज ना लगाऊं… घर से ही नहीं निकलती…!”

” अच्छा तो छोड़ दो ना जाना… घर में कितने काम हैं… जरूरी है क्या कॉलेज जाना… घर में बैठकर पढ़ो… एक ही बार जाकर परीक्षा दे आना…!”

 निम्मी की मां मजदूरी का काम करती थी… और पापा गैराज में मैकेनिक थे… 

घर की हालत ठीक नहीं थी… इसलिए निम्मी कॉलेज जाने के लिए… रिया की मोहताज हो गई थी…

 आज निम्मी गई तो रमेश भैया दरवाजे पर ही कुर्सी लगाकर बैठे थे… आज तो निम्मी के लिए कहीं ओट होना भी मुमकिन नहीं था…

 एक बार तो उसने सोचा की जाए ही नहीं… वापस हो जाए… मगर यहां तक आकर वापस जाना सही नहीं होता… इसलिए उसने रिया को आवाज लगा दी…

 अपनी नज़रें यहां वहां पेड़ पौधों पर लगाते हुए भी वह जान रही थी… कि दो आंखें लगातार उसकी एक्स-रे करने में जुटी हुई हैं… उसका मन छलनी हो रहा था…

 मन तो यह कर रहा था कि जाकर एक तमाचा जड़ दे उन्हें… या फिर अपनी हद में रहने को बोल दे…या नहीं तो एक पत्थर फेंक कर… उनकी आंखें ही फोड़ दे… मगर वह मजबूर थी… उसे रिया को नाराज नहीं करना था…

 दूसरे दिन निम्मी कॉलेज नहीं गई… दो दिन लगातार… रिया को उससे कोई खास गरज भी नहीं थी… उसने फोन भी नहीं किया…

 निम्मी के पापा गैराज जाने को तैयार हो रहे थे… मां तो सुबह ही निकल गई थी… दोनों भाई-बहन भी स्कूल जा चुके थे…

 पापा ने निम्मी से प्यार से पूछा… “क्या हुआ बिटिया रानी… कॉलेज क्यों नहीं जा रही… पढ़ाई में आजकल मन नहीं लग रहा क्या…!”

 निम्मी रुआंसी हो गई…” नहीं पापा… मुझे रिया के साथ नहीं जाना… मैं घर में ही रहूंगी…!”

” अरे बेटा कॉलेज नहीं जाओगी तो घर में बैठकर पढ़ोगी कैसे… क्या हुआ…!”

” नहीं पापा… नहीं जाना…!” निम्मी चुप हो गई… घर के कामों में लग गई…

 पूरा एक हफ्ता बीत चुका था… रिया ने बीच में एक बार फोन कर पूछा… मगर कोई कारण जानने की खास कोशिश नहीं की…

 निम्मी बहुत दुखी थी… उसे लगता था उसका दुख देखने वाला कोई नहीं… मां के लिए तो बढ़िया हो गया था… निम्मी सुबह से ही कामों में लगी उसका हाथ बंटाती रहती… वह चली जाती तो घर में खाना बनाती… घर संभालती…

निम्मी को लगता था… यही उसकी जिंदगी हो गई है…

 अचानक एक दिन निम्मी अनमनी सी खाना चढ़ाकर… कुछ किताबें खोलकर बैठी ही थी… कि बाहर दरवाजे पर खटखटाहट हुई…

” इस समय कौन है…!” सोचकर निम्मी ने दरवाजा खोला… तो सामने पापा थे…

” पापा आप इतनी जल्दी कैसे आ गए…!”

” देखो तो तुम्हारे लिए कुछ लाया हूं…!”

 निम्मी उत्सुकता से बाहर निकली… बाहर एक नए अंदाज की मोपेड खड़ी थी…” वाह पापा… यह क्या है…!”

” बेटा इसे मैंने बनाया है… गैराज में बचे हुए मोटर पार्ट्स की सहायता से… तुम्हारे लिए.…!”

” मेरे लिए…!”

” हां निम्मो तुम्हारे लिए… इसे चला कर तो देखो…!”

 निम्मी ने तुरंत उसे चलाना शुरु किया… दो दिन में तो उसकी मोपेड फर्राटा भरने लगी…

 वह आज बहुत खुश थी… सुबह-सुबह उठकर कॉलेज के लिए तैयार हुई… पापा के गले लग कर चहक कर मोपेड की चाबी उठाई… और कॉलेज के लिए निकल पड़ी…

 उसे अब किसी की गंदी नजरों का सामना नहीं करना था… कॉलेज जाने के लिए.… अब वह किसी की मोहताज नहीं थी…

रश्मि झा मिश्रा

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