मां ने बड़े प्यार से मोहना नाम रखा था , वास्तव में उसे देखकर लोग मोहित हो जाते थे , गोल — गोल आँखें,घुंघराले बालों से छुपा सांवला चेहरा ,बड़ा मनमोहक लगता था , माँ खाना बनाने आती तो शीतल के घर उसे भी ले आती , मालकिन थी भी बड़ी अच्छी ,मोहना को बड़ा प्यार करतीं,कभी बिस्किट कभी खिलौने देती रहतीं।
सुक्कू भी जी जान से सबकी मदद करती , न छुट्टी लेती , न कभी आने में देर करती ,किंतु अमित को लगता शीतल इसे ज्यादा ही सिर चढ़ाई है। अमित और शीतल दोनों काम करते थे,समय के अभाव से खाना बनाने वाली वे रखे थे।
गर्मियों के दिन थे , साहब का कार्यालय मॉर्निग था और शीतल जी भी अपने किसी प्रोजेक्ट से बाहर जानेवाली थीं, सो उन्होंने उस दिन जल्दी बुला लिया था । मोहना की तबियत तनिक ठीक नहीं थी , इसलिए सुबह से रोए जा रहा था। शीतल जी जाने की तैयारी करती हुई बोली, अरे सुक्कू देर हो गई , लंच बॉक्स में दे दो।
साहब को देर हो रही है । उनकी बात खत्म भी नहीं हुई कि कॉल बेल बजी, सुक्कु भाग कर देखने गई तो मोहना की नानी दरवाजे पर खड़ी थी। उसे देखते ही सुक्कु सारे गम भूलकर बोली मां।तुम आ गई । पैर छूकर प्रणाम की । दरअसल उसकी मां बगल वाली बस्ती में अपने बेटे बहु के साथ रहती थी।
सुक्कु हड़बड़ाती हुई मां को बैठने का इशारा की ,और भाग कर लंच पैक करने लगी । तभी साहब नहाकर ड्रॉइंगरूम में आए , वे मोहना की नानी को सोफे पर बैठे देखकर जोर से चिल्लाए ,अरे ! शीतल ये क्या तमाशा है भाई!!.
सिर चढ़ा दी हो सबको , ये देखो सोफे पर महारानी बनी नाती को लिए बैठी है…. शीतल बोली ये मां है , सुक्कू की ।
धीरे बोलिए वो सुनेगी तो बुरा मान जायेगी ।
तभी सुक्कु किचन से हाथ पोंछती हुई आई और बोली नहीं मेमसाब मैं क्यों बुरा मानूं ,मेरी मां सोफे पर बैठकर गुनाह की है ,वो भोली क्या जाने आप बड़े लोग हैं ,किंतु बता दूं उसका बेटा अमेजोन में काम करता है , है तो डिलिवरी ब्वॉय,किंतु घर में सोफा ,पलंग सब है , मां समझ न पाई , खैर, एक बात खरी —खरी बोल देती हूं,जहां मेरी मां का अपमान होता हो, मैं काम नहीं कर सकती।
पैसों से कुछ नहीं होता मेमसाब सोंच छोटी हो तो …
वो मोहना को लेकर अपनी मां के साथ चली गई, शीतल
रोक भी न पाई ,आखिर क्या बोलती बिचारी।
सिम्मी नाथ