मोह मोह के धागे – दीपा माथुर

मम्मी जी ,पापा जी को सुबह सुबह चाय की प्याली पकड़ाते हुए छवि बोली ” मम्मी जी आज छोले भटूरे बना लू?”

मम्मी जी ने नाक भो सिकोड़ कर कहा “

अब हमारी उम्र तो चटखारे लेने की है नही।

सिंपल सी घीया की सब्जी और रोटी बना लो।

वैसे भी छोलेभटूरे में तेल बहुत खराब होता है वैसे भी तुम्हारे आने के बाद राशन महीने भर भी नही चलता है”

चुलबुली छवि बिना कुछ कहे वहा से चली गई।

भरी दुपहरी जब सूरज अपनी किरणे सहित पूरी तरह विराजमान रहता

तो छवि मम्मी जी,पापा जी जैसे ही सोते वैसे ही मोहल्ले

के छोटे छोटे बच्चो को बुला लेती।

उनके साथ खेलना हसी मजाक करना उसकी आदत में शुमार था।

मोहल्ले में किसी को भी कोई मदद की जरूरत हो छवि

हमेशा तैयार रहती।

तभी तो सबकी लाडली थी।

एक दिन पापा जी मम्मी जी को मामा जी से मिलने गए हुए थे।

छवि ने उनके जाने के बाद छोले भटूरे बनाए और मोहल्ले में सबको खिलाए।

तीन दिन बाद जब मम्मी जी पापा जी आए तो छवि बोली मम्मी जी आपके जाने के बाद मैने छोले भटूरे बनाए थे ।

मीना आंटी को खिलाए,मंजू आंटी को खिलाए,वो प्रियंका की दादी साहब को खिलाए और जो बच्चे मेरे पास रोज आते है उन सबको खिलाए क्यों आंटी ?

छवि ने मम्मी जी से मिलने आई मंजू आंटी से पूछने लगी।

मंजू आंटी बोली ” वास्तव मै तेरी बहु में के हाथो में तो

जादू है “।

मम्मी जी कुछ नही बोल पाई हल्की सी मुस्कुरा कर रह गई।

छवि की हमेशा की आदत थी ।



कुछ भी काम करने का मन होता मम्मी ,पापाजी से

पूछती और यदि वे मना कर देते तो उनकी अनुपस्थिति में कर लेती पर आने के बाद हंसते हंसते सब बता देती ।

धीरे धीरे मोहल्ले के छोटे छोटे बच्चो को ट्यूशन भी पढ़ाने लगी थी।

छवि के व्यवहार से सभी खुश थे।

एक दिन छवि की मम्मी की तबियत खराब हो गई।

पता चलते ही छवि ने धीरेन (पति) से कहा “मुझे मम्मी को संभालने जाना है प्लीज भेज दीजिए।”

मम्मी जी ,पापा जी को आप ही समझाइए।

धीरेन ने जब अपनी मम्मी के आगे ये बात रखी तो वे बोली ” हमे कोई एतराज़ नहीं है मिल आओ पर देखो

अब मुझसे तो घर नही संभलता और फिर इसकी मम्मी की सेवा इसके भैया भाभी करे।

उनका कर्तव्य है।

ये क्यों?”

पीछे खड़ी छवि बोली ” मम्मी जी दीदी को बुलवा लीजिए जब तक मम्मी सही नही हो जाती मै नही आऊंगी।”

धीरेन ने भी चुप्पी साध कर छवि का ही साथ दिया।

आखिर पापा जी ने हा भर ही दी।

छवि अपने मायके चली गई और ननद रानी ( शिखा)

अपनी बेटी को लेकर अपने मम्मी,पापा के पास आ गई।

पर उसके आने के बाद घर में सारा काम मम्मी को ही करना पड़ता था।

वह तो अपनी बेटी को संभालती या टीवी या मोबाइल में उलझी रहती।

तीन चार दिन उसका रवैया देखने के बाद पापा ने शिखा के पास बैठ कर उसे समझाया ” शिखा बेटा अपनी मम्मी की भी मदद करा दिया करो ऐसे तो वो बीमार हो जाएंगी।”



शिखा ने तपाक से उत्तर दिया ” पापा अब ससुराल से थक कर ही तो आई हु अगर इतना ही था तो आपने भाभी को भेजा क्यों?”

बात सुन पापा बोले ”  वाह बेटा जी बेटी अपने मम्मी ,पापा  की सेवा करना चाहती है वो भी विकट परिस्थिति में तो हम रोकने वाले कोन होते है।

अरे हम तुम तो सौभाग्यशाली है जो तुम्हे ऐसी भाभी और हमे ऐसी बहु मिली है।

देख रही हो जितने भी लोग मम्मी से मिलने आते है वो भाभी की मम्मी की तबियत ही पूछने आते है उसने पूरे घर को तो अपने अकॉर्डिंग सजा लिया मोहल्ले के छोटे बड़े सभी लोगो से प्यार से बोलकर उनके जरूरत पड़ने पर मदद करके सबको अपना बना लिया ये मोह मोह के धागे है।

जो तुम्हारी भाभी छवि ने अपने अपने पन और समर्पण से रंगे है “।

मैं चाहूंगा तुम भी ऐसे ही अपने परिवार को सहेजो।”

तभी मम्मी बोली ” और नही तो क्या ?

वो यहां से गई हे तब  मुझे भी उसके गुणों का एहसास हुआ।

देखा ना मोहल्ले भर के लोग उसे याद करते है।

उसके बिना पूरा घर सुना सुना हो रहा है।

हंसते हंसते काम भी कर देती है जो कहना कह भी देती है।

और फिर सबसे हस बोल लेती है।

अब आने दो उसे मैं अब उसके साथ काम भी करवाऊंगी।

मुझे भी  तो स्वस्थ्य रहना है।”

और उसका भी ध्यान रखना है”

तभी तो मोह बंधन में बंधे धागों में मजबूती आएंगी।”

शिखा बस भाभी के मोह में बंधे अपने मम्मी पापा को ही समझ पाई थी।

और सोचने लगी क्या मैं स्वयं को बदल पाऊंगी?”

दीपा माथुर

 

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