मोह का बंधन – तृप्ति शर्मा

एक टेबल से दूसरी टेबल पर बैग और गाड़ी की चाबी हिलाता वंश ऐसे बात कर रहा था जैसे वाकई मे उसकी बिजनेस मीटिंग चल रही हो।

     रसोई में खड़ी साक्षी वंश का यह खेल रोज़ देखती थी।अभी पांच साल का था वंश और अपने पापा की पूरी नकल करता था।

     ” अपने पापा” यह शब्द सोच मे डाल गया साक्षी को,कैसे वंश में रोहित की हुबहू आदतें आ गई थी,उसकी रगो मे तो….अंश तो वैभव का है वो पर सबकुछ रोहित जैसा। समझ नहीं पाती थी साक्षी वैभव जैसा कुछ भी नहीं था वंश में,वो वैभव जो मातृत्व के पहले ही पड़ाव पर उसे छोड़ कर चला गया था। बहुत रोई ,तड़पी वो, पर वैभव तो चला गया था मुड़ के कभी न देखने के लिए।   

      टुकड़ों मे बिखर गई साक्षी जब उसे पता चला कि वैभव ने दूसरी शादी कर ली । एक ओर जहां वैभव का अंश उसके अंदर अपनी जगह बना रहा था वही एक सूनापन ,अकेलापन उसकी जिंदगी में बन रहा था।   

    भगवान ने किसका बंधन किससे बांधा है उसी को पता है,शायद साक्षी के अंदर पनपती जान का बंधन रोहित से बंधा था।रोहित ने उसका हाथ जब थामा था जब सास के तानों से परेशान वो सब खत्म करने पर तुली थी। सब कुछ जानते हुए साक्षी का हाथ थामा था रोहित ने।

      वंश तो जैसे उसकी जान ही था इतना मोह एक दूसरे से कि साक्षी देखती रह जाती।एक अनोखा बंधन था दोनो के बीच। रोहित का ही अक्स नजर आता था वंश में,दोनो साथ खाते ,साथ खेलते सबकुछ साथ साथ करते। बहुत अच्छे से संभाला था रोहित ने उसे और अपने बेटे को, हां रोहित का ही तो था वो।

     वंश की पांचवी दिवाली थी,रोहित ने सामान पैक किया और कहा ” चलो” ।  साक्षी ने पूछा पर रोहित कुछ नहीं बोला।जाना पहचाना रास्ता देख साक्षी ने फिर सवालिया नजरो से रोहित को देखा जो एक संतोष भरी मुस्कुराहट दे रहा था,थोड़ी देर मे उनकी गाड़ी वैभव के घर के बाहर खड़ी थी ।उसकी सास नम आंखों से उसका स्वागत कर रही थी,उनकी आंखों मे पश्चाताप झलक रहा था।

     

 साक्षी ने रोहित की तरफ़ देखा ,उसका मन रोहित के प्रति श्रद्धा से भर गया।

       

“अरे मेरे वंश को उसके दादा दादी का प्यार भी तो चाहिए ” 

 

कहकर रोहित ने उसकी सास के पांव छू लिए।

 

साक्षी की सास रोहित के गले लग,अपने बेटे को उसमे खोजने लगी, जो एक बार गया तो मां बाप की सुध लेना भी भूल गया था । वैभव की वजह से जो बंधन टूट चुके थे रोहित ने उन्हें दोबारा बांध दिया था।

#बंधन 

~तृप्ति शर्मा

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