कुछ भी करने में असमर्थ,अपने सामने होने वाली संभावित अनहोनी के असहनीय दुःख के अहसास करने को विवश,धर्मेंद्र जी-बस आंखों में पानी लिये घर मे ही निर्मित मंदिर में आंखे बंद किये बैठे रहते।उनकी पत्नी सुधा उन्हें ढाढस बधाने आती और खुद भी वही मंदिर में बैठ सिसकी भरने लगती।
अधिक समय थोड़े ही बीता है,अभी तीन वर्ष पूर्व ही कोविड महामारी पूरी दुनिया के लिये एक त्रासदी बन गयी थी।धर्मेंद्र जी का एकलौता बेटा अवि असहाय अवस्था मे कोरोना से पीड़ित हो होस्पिटल में पड़ा था।शुरुआती लहर में ही अवि कोरोना की चपेट में आ गया था।घर मे उसके पिता धर्मेंद्र जी,माँ सुधा,पत्नी गीता और चार वर्षीय पुत्र अनु को कुछ न हो,
इसलिये अवि खुद ही घर के पास में ही स्थित एक नर्सिंग होम में जाकर दाखिल हो गया।नर्सिंग होम से ही उसने अपने पिता को वहां एडमिट होने और बीमारी की जानकारी दी।हतप्रभ धर्मेंद्र जी बेबसी में भगवान के मंदिर में बैठने के सिवाय क्या करते?उन दिनों धर्मेंद्र जी ही क्या पूरी दुनिया ही बेबस थी।लॉक डाउन लागू था,कोई एक दूसरे की सहायता तो दूर बात तक नही कर रहा था।
अवि छः माह से अमेरिका जाने की तैयारी कर रहा था,उसका वही की कंपनी का ऑफर लेटर मिल गया था।दोनो पति पत्नी अवि व गीता अमेरिका शिफ्टिंग की योजना बना रहे थे,गीता को भी वहां जॉब का ऑफर मिल गया था,उससे दोनो खूब उत्साहित थे।धर्मेंद्र जी जरूर उदास थे,अपनी उदासी को उन्होंने न केवल बेटे को बल्कि अपनी पत्नी सुधा तक को भी जाहिर नही होने दिया।
बस एक बार हल्के से अवि से जरूर कहा,बेटा यहां भारत मे ही तुम्हे क्या कमी है,तुम दोनो को यहां भी खूब अच्छा वेतन मिल तो रहा है।फिर बेटा इस उम्र में हम किसके सहारे जियेंगे, अनु के बिना तो रहने की अब आदत भी नही रही,देख ले बेटा, एक बार फिर सोच ले।
अरे, बाबूजी क्यो चिंता करते हो?आपकी सब व्यवस्था करके जाऊंगा,आपको कोई तकलीफ नही होगी।रोज वीडियो कॉल करेंगे।तीन चार वर्ष में मैं लौट आऊंगा।अच्छा ऑफर मिला है ना।फिर हर छठे माह आप दोनो को वहां बुलाता भी रहूंगा।
इस कहानी को भी पढ़ें:
अवि के उत्साह को देख धर्मेंद्र जी चुप हो गये, उन्हें लगा कि वे कुछ अधिक स्वार्थी तो नही हो गये हैं, जो बेटे की उन्नति में बाधक होने जा रहे हैं, उन्होंने अपने मन को मसोस लिया और सोच लिया कि वे अब अवि से अमेरिका न जाने को नही कहेंगे।प्रतिदिन वह अपनी तैयारी के विषय मे अपनी माँ को बताता,सुधा सुनती,वो धर्मेंद्र जी की ओर देखती
और धर्मेंद्र जी अपनी छलक आती आंखों को छुपाने को दूसरी ओर मुंह कर लेते।अकेले में पत्नी से कहते देख सुधा यह ठीक है हमे अवि और अनु से मोह है,पर हमें उसकी तरक्की में बाधक बनने का भी तो अधिकार नही।हमारी तो हमेशा यही दुआएं रहेगी वह जहां भी रहे,खुश रहे,उन्नति करता रहे,सुधा हमे अब कितना जीना है?ये भी समय कट ही जायेगा।
अवि के अमेरिका जाने से पहले ही कोविड महामारी पूरे विश्व मे फैल गयी।दुनिया थम गई थी,सब कुछ स्थिर हो गया था,सब पत्थर बन गये थे,सब अकेले थे।अवि का अमेरिका जाना भी स्थगित हो गया था।धर्मेंद्र जी को अनजाना सा सुखद अहसास अवश्य हुआ।पर वे अवि को इस रूप में थोड़े ही रोकना चाहते थे।
आज जब अवि नर्सिंग होम में एडमिट था तो उनका धैर्य जवाब दे गया,वे घर के मंदिर में ही भगवान से ही लड़ने पहुंच गये।क्यो मेरे बेटे की खुशियों पर आघात किया है?रात दिन घर के उस छोटे मंदिर में ही धर्मेंद्र जी बैठे रहते,उनकी पत्नी सुधा उन्हें उठाने आती तो वह भी उनकी बातें सुन फफक पड़ती।पूरे 10 दिन बाद अवि घर आया,पर अभी एक सप्ताह उसे घर मे ही अकेले रहना था,किसी के भी संपर्क में नही आना था।
चार साल का अनु भला इस प्रोटोकाल को क्या समझे?वह अपने पापा के पास उसकी गोद मे जाने को जिद करता,भला ऐसी बीमारी में उसे कैसे अपने पापा की गोद मे जाने दिया जाता।अनु रो रहा था,अवि बेबस सा उसे देख तेजी के साथ एकांतवास के लिये कमरे में चला गया,
अनु दरवाजे के पास खड़ा जोर जोर से रो रहा था,अंदर से अवि उसे दिलासा दे रहा था,उसकी दिलासा से अनु और जोर से रोने लगता,सब उसे चुप करा तो रहे थे,पर सच तो ये था पूरा परिवार खुद भी रो रहा था,शायद कमरे के अंदर अवि भी।
एक ही घर मे बराबर के कमरे में एकांत भोग रहे अवि से सबकी वीडियो कॉल से ही बातचीत हो पाती।किसी प्रकार एक सप्ताह भी बीत गया।आखिर अवि ने कोविड पर विजय प्राप्त कर ली।जिस दिन वह कमरे से निकला सबसे पहले उसने अनु को अपने से भींच कर खूब प्यार किया, फिर अपने पिता से चिपट कर रो पड़ा।धर्मेंद्र जी की आंखों से तो आँसू रुक ही नही रहे थे।
इस कहानी को भी पढ़ें:
सिसकते हुए अवि बोला बाबूजी इस महामारी में इन 15-20दिनो के क्वारन्टीन पीरियड ने एक सीख तो दे ही दी है, कि अपनो के बिना कुछ भी नही।अनु के बिना जब मैं तड़फता था तो बाबूजी मेरे कानों मे आपके शब्द गूंजने लगते,बेटा तेरे जाने के बाद हम किसके सहारे जियेंगे? बाबूजी आपकी ही तपस्या से मेरा पुनर्जन्म हुआ है,बाबूजी मैं आपके पास ही रहूंगा, हम अमेरिका नही जायेंगे।हम एक दूसरे को नही खो सकते।
धर्मेंद्र जी फिर मंदिर की ओर चले गये,शायद भगवान से कहने,मेरा कहा सुना माफ कर देना भगवान।अब नही लड़ूंगा तुझसे।उधर अवि सोच रहा था,उसके बाबूजी के तप का ये बल था जो आज वह उनके बीच है।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित
*#माँ बाप की दुआओं में भगवान के आशीर्वाद से भी बड़ी शक्ति है* वाक्य पर आधारित कहानी: