“मोगरे के फूल” – ऋतु अग्रवाल

 

     नीलिमा आज बहुत खुश थी। रसोई में तरह-तरह के व्यंजन बनाए जा रहे थे। अम्मा बाबूजी की तो खुशी का ठिकाना ही नहीं था। अम्मा अपने खानदानी गहने निकाल निकाल कर नीलिमा को पहना कर देख रही थी।आखिर एक जड़ाऊ रानी हार, बाजूबंद और छोटी सी हीरे की नथ नीलिमा को देकर अम्मा बोली,”नीलू,

मेरी बच्ची! आज जब रघुवेंद्र आएगा तो तुम लाल सिल्क की साड़ी और गहने पहनकर सजना संवरना। मेरा बेटा भी तो देखे कि उसकी प्रतीक्षा में उसकी बिरहन ने क्या खोया है? बस आज रघुवेंद्र की नजर हटनी नहीं चाहिए।”

         अम्मा की बातें सुनकर नीलिमा शरमा गई। लालिमा उसके चेहरे पर दौड़ गई। इस दिन की प्रतीक्षा में पूरे सात महीने ग्यारह दिन नीलिमा ने जोगन की तरह काटे थे। तकरीबन आठ महीने पहले नीलिमा की शादी हुई थी। शादी के पंद्रह दिन बाद रघुवेंद्र ड्यूटी पर लौट गए थे। बर्फ से लदी माइनस डिग्री टेंपरेचर वाली चौकी में मेजर साहब की तैनाती थी।

     नीलिमा के तो आँसू ही नहीं रुक रहे थे पर मेजर साहब के सामने वह कमजोर नहीं पड़ना चाहती थी इसलिए दुपट्टे से आँखों को पोंछ लेती थी। दिल को कड़ा करके मेजर साहब का सामान पैक कर रही थी। अम्मा घर के बने मठरी,चकली इत्यादि पैक करवा रही थी। बाबूजी इधर से उधर चहल कदमी कर रहे थे। सब अंदर से बहुत गमगीन थे पर रघुवेंद्र के सामने सब शांत होने का दिखावा कर रहे थे।

        आखिर जाने का समय आ गया। फौज की गाड़ी घर के बाहर खड़ी थी।अनायास ही मेजर साहब कमरे में आए और नीलिमा के हाथों में एक पौधा देकर बोले,”नीलू, यह मोगरे का पौधा है। मेरे जाने के बाद यह मेरे प्रेम के प्रतीक के रूप में तुम्हारे पास रहेगा। इसकी देखभाल करना। इसके महकते हुए फूल मेरी प्रेम की खुशबू होंगे।”



         यह कहकर मेजर साहब चले गए। बस इसके बाद तो जैसे मोगरे का वह पौधा नीलिमा की जान ही बन गया। एक बच्चे की तरह उस पौधे की देखभाल करती। जब पहला मोगरे का फूल खिला तो उसने एक खत में उस फूल को रखकर मेजर साहब को भेजा।उसके बाद हर फूल को वह सहेज कर एक काठ के बक्से में एकत्र करती रही और अब तो मोगरे का पेड़ फूलों से लदा खड़ा है।

      “रघुवेंद्र आ गया, मेजर साहब आ गए।” के शोर ने नीलिमा की तंद्रा भंग की। वह तैयार हो नीचे आई तो निगाहें मेजर साहब को ही खोजती रहीं पर वह तो अपने माता-पिता, दोस्तों और परिचितों से घिरे बैठे थे। बहुत कुम्हला गए थे।आखिर सियाचिन की विषम परिस्थितियों का कुछ तो असर दिखना ही था। नीलिमा रसोई में सबके लिए चाय नाश्ते का प्रबंध करने लगी।

          धीरे-धीरे सब लोग रुखसत हो गए। रात के खाने की मेज पर ही नीलिमा और मेजर साहब का आमना-सामना हो पाया था। मेजर साहब नीलिमा को एकटक देखते जा रहे थे और नीलिमा शर्म से गड़ी जा रही थी। आखिरकार बीती रात नीलिमा और रघुवेंद्र को बातचीत का मौका मिला। रघुवेंद्र के सामने काठ का बक्सा खोलते हुए नीलिमा ने कहा,”आपके प्यार और इंतजार के प्रत्येक पल को मैंने इन मोगरे के सूखे फूलों के रूप में सहेज कर रखा है।”

       तभी मेजर साहब ने मोगरे के ताजा फूलों से बना गजरा नीलिमा के बालों में लगाते हुए कहा,”और मैंने अपने प्यार को इन ताजा फूलों के गजरे के रूप में पिरो कर तुम्हारे समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया है। यह सूखे और ताजा फूल हमारे प्रेम को सदा महकाते रहेंगे।” नीलिमा विस्मित थी

कि मेजर साहब ने मोगरे के फूलों का गजरा कब बनाया? उसके सामने नीलिमा को अपने बदन के सोने के आभूषण तुच्छ लगे। मेजर साहब ने मोगरे के सूखे फूलों को बिस्तर पर बिखेर दिया। मोगरे के ताजा और सूखे फूल एकाकार होकर नीलिमा की बगिया महका गए। 

 

@सर्वाधिकार सुरक्षित 

स्वरचित 

ऋतु अग्रवाल 

मेरठ

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