ठाकुर साहब … जल्दी चलिये….. कहीं देर न हो जायें …. इससे अच्छा रिश्ता अगर हाथ से निकल गया तो हाथ मलते रह ज़ायेंगे …..
राम शंकर ठाकुर दयाल जी से बोले….
तो हमारी राखी में कोई कमी है …. ये ना सही तो कोई और लड़का मिल जायेगा उसे…. पढ़ी लिखी, सब कामों में निपुण मोडर्न ज़माने की है मेरी बिटिया ……
दयाल जी अपनी मूँछों पर ताव देते हुए बोले….
आपसे कभी जीत पाया हूँ बहस में मैं …. गुस्ताखी माफ कीजिये …. पर छोटा मुंह बड़ी बात …. ऐसा लड़का चिराग लेकर ढूंढने से भी ना मिलेगा राखी बिटिया को…..बी.ए ही तो किया है हमारी राखी ने…..
इतना पढ़ ली बहुत है….ठीक है ठीक है …. सब ऐसे ही कहते है रिश्ते से पहले …. कह रहे हो तो चले जा रहे….. नहीं तो राखी के लिए तो घर बैठे रिश्ते आ रहे है …..
दयाल जी और राम शंकर लड़के वालों के घर चार पहिया गाड़ी से पहुँच गए…. गाड़ी से उतर अपना कुर्ता ठीक करते हुए दोनों लोग अंदर गए….
घर के बाहर दो मोटर सायकिल खड़ी थी…..
लड़के के पिता स्वामीनाथ जी बाहर आयें…. उन्होने दोनों का अभिवादन स्वीकार कर उन्हे मेहमान वाले कमरे में ना बैठाकर दूसरे कमरे में बैठाया….
दयाल जी ने ड्राईवर से स्वामीनाथ जी को मिठाई के डिब्बे देने को कहा ……
यह बात स्वामीनाथ जी को कतई अच्छी ना लगी कि दयाल जी ने खुद मिठाई ना देकर ड्राईवर से दिलवायी …..
मिठाई लीजिये भाई साहब…..
रमा शंकर जी बोले….
माफ कीजियेगा …. रमा शंकर जी और दयाल जी…. आप थोड़ा सा लेट हो गए…. आपसे पहले राजेश जी जो गेस्ट रूम में बैठे है वो अपनी बिटिया सुहानी का रिश्ता लेकर आ गए है ….
हमें तो बाहर कोई गाड़ी नहीं दिखी भाई साहब ??
दयाल जी सोफे से उठते हुए बोले…
दो मोटर सायकिल देखी आपने….. उसी से आयें है चार लोग…..
स्वामीनाथ जी बोले….
हा हा हा हा….. जो लोग बेटी के लिए लड़का देखने मोटर सायकिल से आयें है वो क्या ही अच्छा ब्याह कर पायेंगे छोरी का…..पहले ही बता देते आप तो आतें ही नहीं हम…..
दयाल जी घमंड से बोले…
जी कोई बात नहीं … मेहमान भगवान होता है … चाय पानी लीजिये ……
स्वामीनाथ जी शालीनता से बोले….
वैसे आपका बेटा अब क्या कर रहा है भाई साहब …. पहले शायद रेलवे में नौकरी कर रहा था…. उतना ही पता है मुझे….
रमा शंकर जी बोले….
आईये मिलवाता हूँ बेटे से…..
स्वामीनाथ जी रमा शंकर और दयाल जी को लेकर गेस्ट रूम में आयें….. जहां पहले से आयें लड़की वाले हाथ जोड़े बैठे थे…..
सामने लड़का भी बैठा हुआ था….
जी ये मेरा बेटा है ….
स्वामीनाथ जी बोले…..
बेटा क्या कर रहे हो आजकल???
रमा शंकर जी पूछते है ……
लड़का सोफे से उठ दोनों के पैर छूता है … उन्हे नमस्ते करता है ……
दयाल जी लड़के के पास आ उसका चेहरा पहचानने की कोशिश करते है …..
फिर कुर्ते की जेब से चस्मा निकालते है …. अपना फ़ोन निकालते है …..
फ़ोन की गैलरी से पिछले दिन अखबार की सेव की हुई फोटो देखते है ….
वो फोटो देख सकपका ज़ाते है ….
बेटा मैं गलत नहीं पहचान रहा तो तुम ये समीर सिंह हो न जो ये फोटो में दिख रहा है …..
जी अंकल मैं ही हूँ…..
समीर का आईएएस में आल इन्डिया रैंक में 6वां स्थान आया था…. उसे डीएम का पद मिला था…..
दयाल जी की यह सुन जैसे बोलती ही बंद हो गयी थी…..
जी आप ज़िन लड़की वालों के बारे में कह रहे थे कि मोटर सायकिल से आयें है क्या दे पायेंगे… तो अखबार के बगल में जिस लड़की की फोटो देख रहे है आप ये इनकी ही लड़की संध्या है … जिसने 7वीं रैंक हासिल की है …. राजेश जी के पास खुद का घर भी नहीं है … किराये पर रहते है बस बच्चों को पढ़ाने में अपने जीवन की सारी पूंजी लगा दी इन्होने….. ये मोटर सायकिल भी इनकी खुद की नहीं है दयाल जी… इनके बड़े भाई साहब की है …… ये तो सायकिल से 20 किलोमीटर का रोज का सफर तय करते है … मामूली से चपरासी है ये….. पर आज इनका सर गर्व से ऊँचा हो गया है …. तो बस इन्हे इंकार न कर पाया दयाल जी…. माफ कीजियेगा……
दयाल जी का हाल ऐसा था की जैसे उन पर किसी ने घड़ो पानी डाल दिया हो…. उनकी मूँछे भी अब कुछ नीचे हो गयी थी….
कभी किसी को खुद से कमतर ना आंके नहीं तो हाल दयाल जी वाला होगा…. शायद दयाल जी कुछ दिन पहले आ ज़ाते जब रमा शंकर जी उनसे कई बार जाने का आग्रह कर रहे थे तो उन्होने रेलवे की छोटी नौकरी सोच नजरंदाज कर दिया…… अभी भी रिश्ता देख रहे है दयाल जी…. पर बात बन ना पा रही…..
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा
प्रारब्ध अगर होता तो ही ऐसा संयोग होता कि संबंध हो जाता ।क्या भरोसा आइ ए एस चयन के पश्चात उस परिवार की अपेक्षाएं क्या होती लड़की के चयन में।….