मालती की बोर्ड परीक्षाएं बस शुरु होने की थीं. सुजाता दिन रात उसका ख्याल रख रही थी. अनिल भी
ऑफिस से आते जाते मालती को उसकी तैयारियों के बारे में पूछ लेते थे. मालती कोचिंग सेंटर भी
जाती थी. हालांकि कोचिंग संस्थान दूर था और बच्चे भी क्षमता से ज्यादा थे पर अनिल और सुजाता
दोनों को ही लगता था कि बोर्ड परीक्षाओं में खास करके कि बारहवीं कक्षा में तो बहुत ही आवश्यकता
होती है कोचिंग की. कुल मिलाकर पूरा परिवार परीक्षाओं में खुद को खपा रहा था.
ऐसे में अनिल की मां कमला देवी का अनिल के घर आना हुआ.
लो, मम्मी जी को भी अभी आना था. केवल डेढ़ महीना बचा है परीक्षाओं में और ये भी आ गईं. अब
मालती पर ध्यान दूं या इनकी सेवा करूं..?; सुजाता अपनी खास सहेली किरण से मोबाईल पर बात
करते हुए बोली.
;अरे, इसमें चिंता की क्या बात है, मालती समझदार बच्ची है. अपना ध्यान नहीं भटगाएगी. तू बेकार
अपना दिमाग़ ना चला.
मोबाईल पर तो बात खत्म हो गई पर सुजाता अपनी सास का व्यवहार अच्छी तरह जानती समझती
थी. हरेक बात पर टोका टाकी उनकी पसंदीदा आदतों में शुमार था.
सुजाता के देवर सुनील के घर ज्यादा उनकी सुनी नहीं जाती थी. उसकी बीवी आरती प्राइवेट सेक्टर
में नौकरी करती थी और अच्छा कमाती थी. सुनील इस बात को अच्छी तरह समझता था कि दोनों
पति पत्नी की कमाई से ही घर सुचारू रूप से चल सकता है इसीलिए वो कमला को घर के
मामलों में कम ही दखलंदाजी करने देता था और अपने दोनों बच्चों अदिति और अपूर्व की
बातों से तो उन्हें कोसों दूर रखता था.
अदिति की भी दसवीं की परीक्षाएं थीं और अपूर्व की आठवीं कक्षा की.ना जाने कौन सा पाठ
पढ़ाया था सुनील और आरती ने कमला देवी को कि वो ठीक परीक्षाओं के वक्त ही यहां आ
पहुंचीं थीं.
अच्छी तरह समझ रही थी सुजाता कि खुद के बच्चों की परीक्षाओं में कोई खलल ना पड़े
इसलिए कमला को यहां रवाना कर दिया गया है.
“आप कुछ कहते करते क्यूं नहीं?” रात को सुजाता ने अनिल से कहा.
“कहते करते क्यूं नहीं..!… ये क्या बात हुई, क्या कहूं उनसे कि अपने बेटे के घर क्यूं आई
हो..?”
“ओफ्फो,बात को समझो,सुनील और आरती ने जानबूझ कर मम्मी जी को इसी वक्त यहां
भेजा है ताकि उनकी खुद के बच्चों की परीक्षाएं शांति से निपट जाएं और यहां रोज़ किसी ना
किसी बात पर कलह होती रहे और मालती की पढ़ाई डिस्टर्ब हो.”
“देखो,सुजाता,इन घरेलू कलेशों से मुझे दूर ही रखो,पूरा दिन ऑफिस में सर खपाई के बाद
घर आओ और फिर उस पर घर की राजनीति में हिस्सा लो. मुझमें इतनी ताकत नहीं है,
अब ख़ुद भी सोयो और मुझे भी सोने दो.” कहने के साथ ही अनिल मुंह घुमा कर सो गए
और कुछ ही क्षणों में कमरे में उनके खर्राटे गूंजने लगे.
सुजाता ने अपने माथे पर हाथ मार लिया.अनिल का यही हाल था शादी के फौरन बाद भी.
उन्हें घर के किसी मामलात में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी. पता नहीं कैसे एक महफ़िल में
सुजाता को देखकर पसंद कर लिया था अनिल ने सुजाता को और बीच के रिश्तेदार को
बिचौलिया बना कर कमला देवी तक बात पहुंचवाई और शादी तय करवाई.
कमला देवी तो बिल्कुल इच्छुक नहीं थीं इस शादी के.मध्यम वर्गीय परिवार की सबसे बड़ी
लड़की थी सुजाता. पीछे उसके दो बहनें और थीं. अब ऐसे में सुजाता का बाप क्या ही दे
पाएगा उन्हें, ये ही सोच पाले बैठी थीं वो पर अनिल ने पूरे जीवन में शायद इसी बात पर
मां का साथ देने से इंकार किया था.
कमला देवी ने हथियार डाल दिए और सुजाता बड़ी बहू बन कर घर पर आ गई पर कमला
देवी ने उसे बड़े होने का अहसास होने ना दिया. अंजू और सीमा उसी हद तक बड़ी भाभी को
बड़ा समझती जहां तक कि उनकी मां ने उन्हें समझाया था.
देवर सुनील ने तो अपनी शादी का बोझ कमला देवी के कंधो पर ही डाल रक्खा था. वो
समझ चुका था कि अबकी बार मां उसकी शादी में उसे अच्छी तरह से कैश करवाएगी और
ऐसा हुआ भी.आरती का परिवार भरा पूरा था. देने लेने का रिवाज अच्छा था सो सुनील की
शादी में कमला देवी ने जी भर कर अपनी इच्छाएं पूरी की.
कमला देवी ने सोचा था कि अब आई उनकी पसंद की बहू. अब अपने सारे चाव उससे पूरे
करवाएंगी. ऐसा नहीं था कि सुजाता उनकी सेवा में कोई कोर कसर छोड़ती थी बस वो
कमला देवी को आरंभ से ही अप्रिय लगती थी पर यहां तो आरती से भी उनके अरमान पूरे
ना हुए.
पहले तो आरती और उसके घरवालों ने सुनील को घर दामाद बनाना चाहा पर ये खवाहिश
पूरी ना होने पर अलग घर लेकर अकेले रहने के निर्णय पर तो आरती अड़ गई थी.
“अरे,ऐसी क्या बात है आरती बेटा,यहां भला तुम्हें किस बात की कमी है.तुम पर तो काम का
बोझ भी नहीं है.सारा काम तो वो सुजाता ही करती है.”
“मम्मी जी,मैं शुरु से ही एकल परिवार में पली बढ़ी हूं, मुझे ज्वाइंट फैमिली में घुटन महसूस
होती है और रही बात घर के कामों की तो वो तो मैं यूं भी नहीं करने वाली. जॉब भी करूं
और घर के काम भी,ये तो मुझसे होगा भी नहीं, वैसे मम्मी जी,खुशी खुशी विदा कीजिए
हमें,आपके भी दो घर हो जाएंगे.”
सुनील को चुप देखकर एकबारगी तो झटका लगा कमला देवी को पर जब अपना ही सिक्का
खोटा हो तो कोई क्या करें.सुनील अलग हो गया और वो चुपचाप देखती रहीं.ननदें आरती
भाभी से ज़ुबान लड़ाने का हौसला नहीं रखतीं थीं.
पूछ तो कुछ खास ना थी कमला देवी की सुनील के घर पर जब भी वहां रहकर आती तो
वहां पर मिलने वाली सुख सुविधाओं का ऐसा झूठा बखान करतीं कि सुजाता कई बार
चिढ़चिढ़ाती हुई हालत में भी मुंह दबा कर हंसने को मजबूर हो जाती थी.
समय गुजरता गया.मालती,अदिति और अपूर्व का जन्म हो गया.अनिल सीधा सादा सा प्राणी
था.ऑफिस में प्रमोशन के लिए जिन चालाकियों की ज़रूरत होती है,वो उनसे कोसों दूर था
इसलिए अपने पद पर ही संतुष्ट था सो एक ही संतान मालती के बाद और औलादों के
आगमन पर फुल स्टॉप लगा दिया था दोनों ने.
उधर अपूर्व का जन्म हुआ तो कमला देवी जैसे बौरा सी गईं.पोते और बहू पर खूब पैसा
लुटाया.आरती इन सबसे थोड़ा पिघल सी गई थी सो कमला देवी को काफ़ी वक्त अपने पास
रख लिया उसने और फिर बच्चों की तरफ़ से भी निश्चिंत होकर ऑफिस जाने लगी.
सुजाता भी इसमें खुश थी.अब कम से कम घर में शांति तो रहती थी.पर ये क्या,जैसे जैसे
सुनील के बच्चें बड़े होते गए,कमला देवी के उस घर में रहने के दिन घटते गए.अब कमला
देवी इधर उधर होती रहतीं थीं पर अपने झूठे रुतबे,शान और सुजाता की वजह से हमेशा घर
परिवार और बाहर की दुनिया में सुनील और आरती का गुणगान करती रहतीं थीं.
तभी अलार्म बज उठा.सुजाता तो रात भर भूतकाल में ही भटक रही थी इसीलिए जगी ही हुई
थी. उसने जल्दी से अलार्म बंद किया और मालती के किए कॉफी बनाने के लिए उठ गई पर
ये क्या,रसोई में कमला देवी गैस पर अपने दिन भर के भोजन की तैयारियों में लगी पड़ी हैं.
“मम्मी जी, ये इतनी सुबह आप क्या कर रहीं हैं?” सुजाता ने हैरान परेशान सा होते हुए
पूछा.
“आज एकादशी का व्रत है,अपने फलाहार का भी प्रबंध नहीं करें क्या हम?”
“फलाहार… तो ये सब क्या…”सुजाता के मुंह से निकलता निकलता बचा.
तीन देसी घी से लबालब व्यंजन देख कर सुजाता मन ही मन बल खाकर रह गई.
तभी मालती भी रसोई में चली आई.
“मम्मी,प्लीज़ ज़रा एक कप कॉफी बना दो जल्दी से,बस रिवीजन करने बैठ ही रही हूं.आज
कोचिंग में टेस्ट है.”
“हां बेटा,मैं बस ला ही रही थी.”
“मम्मी जी,एक चूल्हा खाली कर दीजिए,मुझे कॉफी बनानी है.”
“अरे,हम तो रसोई से ही बाहर जा रहें हैं,पर कह रहे हैं कि ये कोचिंग वोचिंग से कुछ ना
होता,देखो,आरती ने कैसे दोनों बच्चों के लिए घर में मास्टर लगवा रखें हैं.” सुजाता को
सुनाती हुईं कमला देवी व्यंजनों के डोंगे लेकर बाहर चलती चली गईं.
“वहां तो पैसे की खनक है और यहां मजबूरियों का सन्नाटा” कहना तो चाहती थी सुजाता पर
सिर्फ़ सर झटक कर रह गई और जल्दी जल्दी रसोई के कामों में उलझती गई.
अगले दिन जैसे मुसीबतों का पहाड़ टूटा हो सुजाता की जिंदगी में.मालती जिस कोचिंग
संस्थान में पढ़ती थी,वहां आग लग गई थी.ना जाने सारे छात्र कैसे अपनी जान पर खेल कर
वहां से भागने में सफल हुए.ऐसी जानलेवा भागादौड़ी में मालती की टांग की / टूट गई.
मालती हॉस्पिटल में भर्ती थी और सुजाता घर और हॉस्पिटल दोनों जगह नाच रही थी. घर
आती तो कमला देवी की बातें सुन कर उल्टे पांव वापिस हॉस्पिटल भाग जाती.
“हमनें आपlतो पहले ही कहा था कि ये कोचिंग वोचिंग सब बेकार का बखेड़ा है,अब भुगतो”
“मम्मी जी,मेरी बच्ची की हालत देखी है आपने जो इस तरह की बातें कर रहीं हैं आप,आने
वाली अनहोनी क्या खबर करके आती है.”सुजाता बिफर उठती.
कुछ दिन तो सभी जगह यही हेडलाइन रही कि अब ऐसे संस्थानो को हर कीमत पर बंद
करवाना चाहिए.जल्दी ही गाइडलाइंस भी तैयार कर दी गईं पर सभी कोचिंग वालों ने धरना
प्रदर्शन शुरु कर दिए तो टी वी चैनलों पर इस खबर का भी ज़ोर रहा पर वही ढाक के तीन
पात.हुआ कुछ भी नहीं और सब पहले जैसा चलने लगा बस मालती का ही सेंटर अस्थाई रूप
से बंद हो गया.
अब तो परीक्षाओं में बस दस दिन रह गए हैं.अब क्या होगा,सोच सोच कर सुजाता की हालत
खराब हो रही थी कि किरण उसे उन मुसीबतों के अंधेरे में सच में उजाले की किरण जैसी
लगी.किरण की मौसेरी बहन गीता जो सुजाता के घर के करीब ही रहती थी,उसने किरण के
कहने पर मालती की परीक्षाओं के दौरान भरपूर सहायता की.
“अरे,किसी बाबा जी को दिखाओ,सत्संग जाओ,उनके प्रवचन सुनो ताकि आने वाली मुसीबतें
खत्म हो पर तुम तो ठहरे नए ज़माने के,हमारी बातें तुम्हारे खोपड़े में थोड़ी ना घुसेंगी.”
कमला देवी यदा कदा अपना बिन मांगे ज्ञान देती रहतीं थीं.
“मम्मी जी,अगर ये बाबा,तांत्रिक ही आने वाली मुसीबतों का पता लगा लेते तो ये कोरोना की
बीमारी कोरोना काल का ग्रास बनकर लाखों जिंदगीयां ना लील लेता.”
“विश्वास करना सीखो सुजाता,तुम कभी हमारे सत्संगों में नहीं जाती वरना जान पाती कि
कितनी ताकत होती हैं बाबाओं के वचनों में.”
“विश्वास है मम्मी जी अपनी सहनशक्ति पर और ताकत भी है कि जीवन में आने वाली हर
मुसीबत का ख़ुद से मुक़ाबला कर सकूं ना कि हर अच्छे बुरे का दोष अपने ग्रहों को दूं और
यही सीख आप सुनील और आरती को भी देती हैं क्या वहां जाकर?” सुजाता ने दो टूक
होकर कहा.
“वो लोग तेरी तरह हमें अनदेखा और अनसुना नहीं करते, पूरा सत्कार करते हैं.कल जा भी
रहें हैं हम वहीं.”
ये सुन कर व्यंगात्माक मुस्कान फैल गई सुजाता के होंठों पर.परीक्षाएं खत्म हो चुकी थीं तो
अब वहां से कमला देवी का बुलावा आ गया होगा.
समय बीत गया और परीक्षाओं के परिणाम आ गए.मालती सेकंड डिवीजन में उत्तीर्ण हुई थी.
पर अदिति की कंपार्टमेंट आई थी.
“अरे,इसमें रोने वाली क्या बात है? हम अब से तुम्हारे लिए गुरुवार के व्रत रखा करेंगें ताकि
शिक्षा अच्छे से तुझमें समा जाए.”कमला देवी अदिति को अपनी तरफ़ से दिलासा देती हुईं
बोली.
“मम्मी,कैसी बातें करती रहतीं हैं आप,ये व्रत रखने से क्या संबंध है किसी के रिजल्ट आने
का,आप ऐसी बातें करके कहां हवा में महल बनाती रहतीं हैं.”सुनील बोला तो आरती भी
अदिति के साथ वहां से उठ गई.
कुछ दिनों बाद सुजाता ने गीता को घर बुलाया और उसका एक बार फिर से शुक्रिया अदा
किया.
गीता मुस्कुरा दी और मालती से आगे की पढ़ाई के बारे में चर्चा करने लगी.
तभी अनिल आए और अभिवादन के पश्चात् उन्होंने अदिति को भी पढ़ाने का ज़िक्र किया.
गीता ने तुरंत ही कोई जवाब नहीं दिया पर उसके जाने के बाद सुजाता अनिल के पीछे पड़
गई.
“ये अदिति के लिए इतना प्रेम कहां से जग उठा और उन लोगों को क्या ज़रूरत है किसी
और ट्यूटर की,उनके पास तो पहले से प्राइवेट मास्टर जी हैं…!” सुजाता ने ताना मारते हुए
कहा.
“सुजाता,ये तुम किस तरह की बातें कर रही हो,ये लोग,वो लोग, कौन हैं ये वो लोग, मेरा
अपना भाई,उसका परिवार,क्या ये पराए हैं?” अनिल ने गम्भीर स्वर में कहा.
“ये आज कैसी बातें कर रहे हो तुम? मम्मी जी खूब घुट्टी पिला कर गईं हैं क्या?”
“सही बातें कर रहा हूं,मालती घर आ गई,ये दिखा तुम्हें पर उस सरकारी अस्पताल में भी
जिस दिन स्पेशलाइज्ड डॉक्टर उसका मुयाएना करने पहुंचा था उस पर तुम्हारी नज़र नहीं
पड़ी क्या? सभी दवाईयां महंगी हैं,जल्दी जल्दी टेस्ट हो रहें हैं उसके,सारे एग्जाम्स के लिए
कैब बुक हो रही थी,कहां से ये सब खर्चा हो रहा है, इन सब बातों पर तुम्हारा ध्यान नहीं जा
रहा.”
सुजाता खामोशी से अनिल को सुनती रही.
“जिस दिन मालती के साथ वो जानलेवा हादसा हुआ था और मालती को हॉस्पिटल में
एडमिट कराया गया था, उसी दिन सुनील हॉस्पिटल आया था.”
“भईया,गोद खिलाया है मालती को मैंने, अब अगर उसके इलाज़ में ज़रा सी भी कोताही
बरती आपने तो सच में बहुत बुरा होगा” कहने के साथ ही सुनील ने एक बड़ी रकम अनिल
के हाथ में रख दी.
और इसके बाद भी रोज फोन पर मुझसे हाल चाल पूछता रहता था.
“भईया,एग्जामिनेशन सेंटर पहुंचने की चिंता ना करें,सही समय पर कैब लाने लिजाने के लिए
पहुंच जाया करेगी.”
जिस दिन रिजल्ट घोषित हुआ,उस दिन सुनील मुझसे मिलने ऑफिस आया था.
“सुनील,जिस तरह से इस समय तुमने मेरा साथ दिया है…!”
“ऐसा कोई अपना ही कर सकता है” आगे का वाक्य सुनील ने हंसते हुए पूरा किया तो
अनिल भी हंस दिया.
“मैं जल्दी ही वो सारी रकम लौटाने का इंतजाम करूंगा.” अनिल कृतज्ञतापूर्ण स्वर में बोले
थे.
“अरे,ये किस गलत घड़ी में आ गया मैं,यहां तो अनिल कुमार की जगह ”द ग्रेट अनिल” से
मुलाकत हो गई.”
“अच्छा भई,चल आ,कैंटीन में चलें.”अनिल ने सुनील के कंधे पर हाथ रख कर कहा.
दोनों भाई ना जाने कितने अरसे बाद साथ में चाय पी रहे थे.
“अच्छा भईया,अदिति और अपूर्व के ट्यूटर को किसी वजह से अभी उनकी ट्यूशन छोड़नी
पड़ रही है,आप कह रहे थे कि मालती के लिए आपको बहुत अच्छी टीचर मिल गई थी तो
अगर वो दोनों बच्चों को भी ट्यूशन शुरु कर ले तो बहुत अछा रहेगा, ना हो तो अभी अदिति
को ही पढ़ा दिया करे,उसके लिए बहुत ज़रूरी है.”
“हां,हां,क्यूं नहीं,मैं जल्दी ही बात करके बताता हूं,तू बेफिक्र रह.”
“अब बताओ,गीता से उनकी ट्यूशन के बारे में पूछना क्या गलत था?”
सुजाता रो पड़ी थी.
“सुजाता,ये रिश्ते हैं,करीब और दूर हो सकते हैं,टूट नहीं सकते.मम्मी का स्वभाव बदलने का
वक्त नहीं है अब,तुम्हारा और आरती का रिश्ता तुम दोनों की आपसी समझ पर निर्भर
करता है.चाहो तो नई शुरुआत करके देख लो और चाहो तो बेवकूफी भरी रंजिशो को रबड़ की
तरह खींचतीं रहो.पसंद तुम्हारी,मर्ज़ी तुम्हारी.”
अनिल तो ये कह कर वहां से चले गए और पीछे छोड़ गए सुजाता को रिश्तों के सी सॉ
में.जो एक तरफ़ से ऊपर उठता और तो दूसरी तरफ़ से नीचे जाता पर सुजाता को अब बैलेंस
बनाना था.केवल पति पत्नि का रिश्ता ही नहीं बल्कि सभी रिश्ते साईकिल के पहिए समान
होने चाहिए जो साथ ही चलें. जिनमें समान व्यवहार की उम्मीदें पूर्ण होती थी.
कुछ दिनों बाद सुजाता ने आरती को फ़ोन लगाया.
“हां, हैलो आरती,कैसी हो,अदिति का रिजल्ट आ गया?”
“पास हो गई,चलो,ये तो बहुत ही अच्छा हुआ और इसमें थैंक यू की क्या बात है.अदिति
हमारी कुछ नहीं लगती क्या. हां,गीता है तो बहुत अच्छी टीचर.अच्छा, इस संडे आ जाओ ना
तुम सब दोपहर के खाने पर.”
सुजाता ने फोन काटा तो सहज ही निर्मल मुस्कान आ गई उसके चेहरे पर. अनिल की
समझदारी से देर से ही सही पर रिश्तों को सुचारू रूप से चलाने के लिए वर्तमान और
भविष्य में मिलने वाले कई अवसर अब वो खोना नहीं चाहती थी.दूरियों को खत्म करने के
लिए अब इस परिवार की बड़ी बहू ने कदम बढ़ा दिया था.
साहिबा टंडन
( प्रस्तुत रचना पूर्ण रूप से मौलिक है, अप्रकाशित और अप्रसारित है )
#बड़ी बहू