मिस्सल ताई – अनुराधा श्रीवास्तव “अंतरा” : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi:   आज जब अम्मा को फोन मिलाया तो अम्मा के फोन उठाते ही मेरे कानों में फिल्मी गानों और शहनाई की तेज आवाज गूॅंज गयी। दोनों तरफ से हेलो हेलो की आवाज में यह बात समझ में आयी कि पड़ोस की मिस्सल ताई की बेटी शादी है। ’’बाद में बात करता हूॅं’’ बोलकर मैने भी फोन काट दिया। फोन तो कट गया लेकिन ऐसा लगा मैं वहीं कहीं अपने घर में रह गया हूॅं। अचानक मिस्सल ताई का चेहरा मेरी आंखों के सामने घूमने लगा। मिस्सल ताई, जाने इस नाम का क्या अर्थ है लेकिन मेरा पूरा बचपन इन्ही के साये में बीता था। अब तो पूरा गांव इन्हे मिस्सल ताई के नाम से ही जानता है। 

               अम्मा बताती है कि जब वो ब्याह कर अपने ससुराल आयी थी तो डोली से उतरते ही सबसे पहले मिस्सल ताई पर ही उनकी नजर पड़ी थी। दीवार की ओट से सबसे अलग थलग छिपकर डोली से उतरती दुल्हन को देखती मिस्सल ताई खुद किसी नई दुल्हन की तरह खूबसूरत थी। चेहरे पर इतना तेज, माथे पर चमकती बड़ी बिन्दी और बिन्दी से भी बड़ी बड़ी दो आंखों में खुद अम्मा अटक कर रह गयी थी। अमूमन कोई औरत किसी दूसरी औरत की खूबसूरती की इतनी तारीफ नहीं करती है लेकिन मिस्सल ताई की खूबसूरती के चर्चे पूरे गांव में थे। 

               कुछ दिनों में अम्मा को भी पता चल गया कि मिस्सल ताई बारात को चोरी छिपे क्यों देख रही थी, मिस्सल ताई की शादी को पूरे दस साल हो गये थे लेकिन भगवान ने अभी तक उनकी गोद नहीं भरी थी। आज से चालीस पचास साल पहले किसी औरत के बच्चा न होना समाज के लिये बहस का एक गम्भीर मुद्दा था और इसमें सारी गलती बेचारी औरत की ही होती थी और उसी गलती की सजा मिस्सल ताई भुगत रहीं थीं। किसी अच्छे कामकाज में उन्हे शामिल नहीं किया जाता था, यहाॅं तक कि किसी छोटे बच्चे को

इस कहानी को भी पढ़ें: 

सफर (लिहाज से तल्ख लहजे तक का) – रचना कंडवाल   : hindi stories with moral

अगर मिस्सल ताई ममता भरी निगाहों से देख लेती थी तो उन पर डायन होने का भी लांछन लग जाता था। बांझ और डायन अब उनके लिये आम उपनाम हो गये थे। वैसे तो उनकी सास को भी बच्चे की बड़ी चाहत थी और वह अपने बेटे का दूसरा विवाह भी कराना चाहती थी लेकिन मिस्सल ताई के पति उनसे बहुत प्यार करते थे और वह अपने पूरे परिवार और आस पड़ोस के लोगों की तानाकसी और उलाहनाओं के बावजूद भी कभी दूसरी शादी के लिये नहीं माने।

              अम्मा बताती हैं कि उनकी सास यानी मेरी दादी को भी मिस्सल ताई से बातचीत करना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था और उनका कहना था कि मिस्सल ताई के खुद कोई औलाद न होने की वजह से वह अम्मा पर भी कोई जादू टोना कर देंगी और अम्मा के भी कभी कोई औलाद नहीं होगी लेकिन अम्मा को मिस्सल ताई से सहानुभूति के साथ साथ लगाव भी हो चला था। दोनों घरों की अंागन की दीवारे ज्यादा उॅंची नहीं थी इसलिये कभी कभी दोनांे चोरी छिपे आपस में बातें कर लिया करती थी और इसी तरह दोनो घनिष्ठ मित्र भी बन गयी थी। 

            एक दिन हरछठ के त्योहार पर अम्मा को पता चला कि मिस्सल ताई भी हरछठ का व्रत रहती हैं। हालांकि इसके लिये उन्हे अपनी सास से काफी बातें सुननी पड़ी थी क्योंकि हरछठ का व्रत औरतें अपनी संतान की लम्बी उम्र के लिये रखती हैं लेकिन मिस्सल ताई समाज के तानों और कटाक्षांे से इतना आहत हो चुकी थी कि उन्होने इस रिवाज को ताख पर रखकर भगवान से भी संतान की जिद कर ली थी।

मिस्सल ताई को हरछठ की पूजा करते देख औरतें खुसुर फुसुर करने लगती, नाक भौं सिकोड़ कर उनकी विवशता पर तंज कर देती या हंसी उड़ा देती। मिस्सल ताई आहत तो होती लेकिन उन्हे भगवान पर पूरा भरोसा था। अम्मा बताती हैं कि उसके दो दिन बाद गांव से सटी रेलवे लाइन पर एक ट््रेन हादसे में कई लोग घायल हुये और कई लोगों की मौत हो गयी। उसी हादसे में एक पूरे परिवार की जान चली गयी लेकिन दुधमुहा बच्चा ना जाने कैसे बच गया।

पूरा गांव वहाॅं इकट्ठा हो गया था। मिस्सल ताई भी दूर खड़ी सब देख रही थी। मिस्सल ताई से उस बच्चे का रोना बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होने उस बच्चे को उठाकर सीने से लगा लिया, ऐसा लगा बरसों से बिछड़ी देवकी को उसके कान्हा मिल गये हों। मिस्सल ताई की आंखों से आंसू झरझर बहने लगे। मिस्सल ताई उस बच्चे को लेकर घर आ गयी, दिन भर उसे सीने से चिपकाये छठ महारानी को धन्यवाद देती रहीं। आज कृष्ण जन्माष्टमी के दिन स्वयं कान्हा उनके घर पधारे थे।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

मना करना सीख!! – लतिका श्रीवास्तव   : hindi stories with moral

मिस्सल ताई ने उसका नाम भी कान्हा ही रख दिया। उस परिवार में भी बच्चे को पालने के लिये कोई बचा नहीं था और न ही कोई उस बच्चे को लेने के लिये कभी मिस्सल ताई के पास आया, हालांकि मिस्सल ताई के दिल में हमेशा ये डर बना रहता था कि किसी न किसी दिन कोई आकर कान्हा को ले जायेगा लेकिन मिस्सल ताई ने अपना सारा प्यार उस बच्चे पर लुटा दिया और इस घटना ने ही मिस्सल ताई को अपने जीवन का एक नया उद्देश्य भी दे दिया।

मिस्सल ताई को समझ आ गया कि ममता सिर्फ अपनी कोख से जन्मे बच्चे के लिये ही नहीं होती, जो अनाथों पर भी अपनी ममता लुटा सके, असली ममता तो वही है। कान्हा के बाद मिस्सल ताई ने अपने जीवन में ना जाने कितने ही अनाथों को सहारा दिया और बंाझ और डायन कहलाने वाली मिस्सल ताई आज जाने कितने बेटे बेटियों की माॅं बन गयी थी और इस मतलबी रिश्तों की दुनिया में जाने कितने सच्चे रिश्ते बना लिये थे। 

           तभी फोन की घनघनाहट से मेरी तन्द्रा टूटी, देखा तो माॅं का फोन था। हेलो बोलते ही उधर से मिस्सल ताई की आवाज सुनाई दी, ’’बहन की शादी है, आना नहीं है क्या?’’ उस ’’क्या’’ में सवाल के साथ साथ आदेश भी था और मैं मुस्कुराते हुये बस यही बोल पाया, ’’अभी निकलता हूॅं……’’

 

मौलिक

स्वरचित

अनुराधा श्रीवास्तव “अंतरा”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!