मिलन की बेला  ( भाग – 1 ) – सीमा वर्मा

आज शाम से ही रुक -रुक कर बारिश हो रही है।

चार कमरे वाले विशाल फ्लैट की बलकॉनी में शिवानी उमस भरी गर्मी में बेचैन सी टहल रही है। पति सुधीर ऑफिस के टूर से मुम्बई गये हैं।

अचानक उसे कुछ याद आया उसने कमरे के टेबल पर आ कर देखा ,

” यह क्या ?

सुधीर फिर अपनी डायबिटीज की दवा ले जाना भूल गये हैं”

कितने लापरवाह हैं सुधीर शिवानी ने उसे फोन मिलाया उधर घंटी बजती रही। सुधीर ने फोन नहीं उठाया वह अधीर हो रही है।

उसका एक-एक क्षण भारी गुजर रहा है।

एक बार इच्छा हुई रहने दे।

लेकिन बस फिर एक और आखिरी बार इस बार सुधीर ने फोन उठा लिया शिवानी झल्ला गई है ,

“ये क्या सुधीर किधर बिजी थे ? कॉल ही नहीं उठा रहे थे “




” सॉरी ,सॉरी … शिवानी मीटिंग में था “

शिवानी गुस्से में है फिर भी ताकीद करना नहीं भूली,

” तुम अपनी डाइबिटीज  की दवा छोड़ गये हो।

देखो मीठे से परहेज करना और हाँ काम का ज्यादा टेंशन मत लेना ” कहती हुई फोन रख दी।

फिर बाहर बलकॉनी में आ गई चुपचाप रेलिंग पकड़ सामने रोड पर आने-जाने वालों को देखती रही।

गाड़ियों की रेलमपेल के बीच ऑटोरिक्शे की भीड़ … साथ में स्कूटी और साइकिल पर भागते बच्चे…

पूरा शहर ही जैसे भाग रहा है।

शिवानी को  ऐसा महसूस हुआ मानों सिर्फ उसकी कहानी ही थम कर रह गई है।

जो कभी भी अचानक खत्म हो सकती है वो एकाएक  घबरा गई।

इस वक्त उसका ‘अकेलापन’ उस पर हावी होने लगा है।




कंही कोई पत्ता खड़का साथ ही शिवानी का दिल भी जोर से धड़क गया…

उसके और सुधीर की शादी को पैंतीस वर्ष बीत गये हैं इस बीच जाने कितना कुछ छूटा ,टूटा फिर जुड़ा है।

सुधीर के साथ उसकी शादी शिवानी की मर्जी के खिलाफ हुई थी। उसकी चाहत कुछ और थी लेकिन घरवालों और खास कर माँ को वह अपनी मर्जी समझा नहीं पाई थी।

बहरहाल जो हो सुधीर उसका प्यार नहीं महज समझौता हैं जिसे  बखूबी निभाते हुए वह सुधीर के दो बच्चों की माँ बनी है। अब तो बच्चे भी अपनी जगह सेटेल हो गये हैं।

बेटा बंगलुरू में किसी मल्टीनेशनल कम्पनी में जॉब कर रहा है और बिटिया इन्दौर के किसी हाई स्कूल की असिस्टेंट टीचर बन गई।

जिसने अपनी मर्जी से साथ पढने वाले सहपाठी से घरवालों की इजाजत ले कर   पिछले साल  ही शादी की है।

अब शिवानी की जिन्दगी किसी शांत ठहरे हुए जल से भरे तालाब की तरह है जिसपर कंकड़ मारने पर भी कोई उथल-पुथल नहीं होती।

शाम धीरे-धीरे रात में ढ़लती जा रही है। सुधीर इस बार पाँच दिनों के लिए बाहर  गये हैं। बारिश ने जोर पकड़ लिया है।

थोड़ी देर तो वो बारिश की बूदों से खेलती रहती।

पानी की छोटी-छोटी बूदें उसके तपते दिल को ठंडक पंहुचाते रहे लेकिन फिर जल्दी ही उबी हुई अनमनी सी शिवानी अन्दर आ कर आरामकुर्सी पर बैठ गयी।




रेडियो पर गाना आ रहा है…

“भीगी-भीगी रातों में ऐसी बरसातों में कैसा लगता है? “

शिवानी ने यों ही अनमनी सी मोबाइल में फेसबुक खोल ली है।

इधर-उधर नजर फिराती हुई एक तस्वीर पर नजर जा टिकी। पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ कि वह सही देख रही है या उसकी नजर का धोखा है।

फिर उसकी प्रोफाइल पढ़ी तब जा कर कहीं यकीन हुआ शिवानी को कि यह सुशांत ही है।

जो अब चश्मिश बना पहचान में ही नहीं आ रहा है उसने उस तस्वीर पर अपनी उंगलियाँ फिराई  महसूस करने के लिए कि यह सच में सुशांत ही है फिर काफी देर यकीन करूँ या ना करूँ इसमें ही ठिठकी रही। उसके दिल के धड़कनें तेज हो गई। 

इसी उत्तेजना में उसने सुशांत को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज डाली ।

इतने दिनों बाद सुशांत का दिख… जाना

शिवानी को ऐसा लगा मानों कितने दिनों से उसकी चल रही खोज आज जा कर पूरी हुई है या फिर  लंबे सफर में चलते हुए अचानक पुराना




बिछुर गया हमसफर मिल गया हो।

उस साइड से तत्क्षण ही रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली गई थी।

शिवानी पुलकित हो गई फिर न जाने क्यों उसने झट से फेसबुक बन्द कर दिया।

क्रमशः

सीमा वर्मा / नोएडा

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!