मिल गया आशीर्वाद – हेमलता गुप्ता : Moral Stories in Hindi

तू भाग जा शिवानी.. तेरे प्यार को यहां समझने वाला कोई नहीं है! अगर तेरे पापा को तेरे प्यार की भनक भी लग गई तो वह पहली गोली तुझे मारेंगे और फिर अपने आप को खत्म कर लेंगे! शिवानी… महेंद्र प्रताप बहुत ही अच्छा लड़का है, वह तुझसे बेहद प्यार करता है, अच्छी कंपनी में कार्यरत है क्या हुआ अगर वह हमारी बिरादरी के नहीं है उसके परिवार को भी तू पसंद है!

मैं तेरे पापा को मना लूंगी, पर अभी अगर यह बात उनको बताएंगे तो वह खून खराबा कर देंगे और वैसे भी मेरा और मां दुर्गा का आशीर्वाद हमेशा तेरे साथ है, माता रानी सब भला करेगी! किंतु मम्मी… पापा के आशीर्वाद के बिना मैं अपनी नई जिंदगी में कैसे कदम बढ़ा पाऊंगी, पापा ने एक-एक कदम मुझे चलना सिखाया था, पापा मुझे अपनी राजकुमारी कहते हैं,

और कितना गर्व है पापा को मुझ पर! मम्मी में बहुत कशमकश में हूं एक तरफ में महेंद्र प्रताप को नहीं छोड़ सकती दूसरी तरफ पापा भी मेरे लिए उतने ही महत्वपूर्ण है, मैं करूं तो क्या करूं..? मुझे समझ नहीं आ रहा मैं क्या फैसला करूं और कहते-कहते शिवानी का गला भर आया! देख बेटा.. इस समय नई जिंदगी तेरे स्वागत को आतुर है परसों अच्छा शुभ दिन है

और महेंद्र जी के परिवार वालों को भी शादी से कोई दिक्कत नहीं है, तो तू यहां से चली जा और उनके घर वालों की मौजूदगी में तू हंसी-खुशी अपना नया जीवन आरंभ कर !अब वह तेरे माता-पिता है उनका भी आशीर्वाद तेरे साथ है! किंतु मम्मी……! इस बैग में मैंने तेरे सारे कपड़े और कुछ गहने जो मैंने तेरे लिए बनवा कर रखे थे

सब रख दिए हैं, तो बस देर ना कर, महेंद्र तेरा इंतजार कर रहे होंगे! तू  चली जा मेरी बच्ची, चली जा! तुझे तो पता है ना जब तेरी भूआ ने  भी एक बार ऐसा कदम उठाने की सोची थी तब तेरे दादाजी ने कितनी तबाही मचाई थी और फिर तेरी बुआ ने आत्महत्या कर ली थी! मैं नहीं चाहती मेरी बेटी को भी ऐसा कदम उठाना पड़े!

धीरे-धीरे समय के साथ तेरे पापा का गुस्सा भी शांत हो जाएगा! किंतु मम्मी.. पापा आपके साथ जो करेंगे मुझे वह भी सोच सोच कर डर लग रहा है! मैंने कहा ना बेटा… तू यहां की चिंता बिल्कुल मत कर, अपनी जिंदगी में खुशी-खुशी आगे बढ़ और ऐसा कहकर रात के अंधेरे में मां ने शिवानी को महेंद्र के साथ भेज दिया और आकर ऐसी सो गई जैसे कुछ हुआ ही नहीं ना हो,

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हालांकि नींद आंखों से कोसों दूर थी! सुबह होते ही घर में  हाहाकार  मच गया, शिवानी.. शिवानी.. की आवाज से पूरा घर गूंज उठा, पर शिवानी घर में हो तभी तो मिले! रुद्र प्रताप का सारा गुस्सा विजयलक्ष्मी पर फूट पड़ा,… कहां गई शिवानी सच सच बता दो वरना तुम्हारी खैर नहीं! ओह..तो शिवानी घर से भाग गई ,तुमने ही उसे भगाने में शह दी होगी..? 

हां शिवानी चली गई हमेशा के लिए,  क्या तुम शिवानी और महेंद्र की शादी के लिए कभी राजी होते? तुम खुद जानते हो की महेंद्र एक बहुत ही अच्छा, समझदार नेक दिल लड़का है किंतु तुम्हारा खानदान, बिरादरी तुम्हें यह रिश्ता करने  की कभी इजाजत देती..? इसलिए मैंने शिवानी को यहां से भगा दिया, मैं नहीं देख सकती अपनी बेटी को मरते हुए! मैं कह रहा हूं देखना शिवानी अपनी जिंदगी में कभी खुश नहीं रहेगी, एक बाप की बद्दुआ उसे जरूर लगेगी!

कैसी बातें कर रहे हैं आप… कम से कम आशीर्वाद ना दो तो बद्दुआ तो ना दो. कहीं ऐसा ना हो बाद में तुम्हें अपने शब्दों की वजह से पछताना पड़े! उधर शिवानी ने दो दिन बाद साधारण तरीके से, माता रानी के आशीर्वाद से महेंद्र से शादी कर ली और ससुराल में आ गई! ससुराल वाले बहुत ही अच्छे थे! वह शिवानी को अपनी पलकों पर बिठाकर रखते थे

किंतु शिवानी को हर पल अपने पिता की याद आती थी, वह चाहती थी उसे अपने पापा का भी आशीर्वाद मिलता तो कितना अच्छा होता? डेढ़ साल बाद शिवानी ने एक अपनी ही जैसी खूबसूरत सी गुड़िया को जन्म दिया, पूरा परिवार बहुत खुश था! इधर रुद्र प्रताप की शिवानी की याद में तबीयत खराब होने लगी, उन्हें शिवानी के ऊपर रह रहकर क्रोध आता था किंतु शिवानी उनकी इकलौती और लाडली बिटिया थी,

कभी-कभी वह बिस्तर में पड़े पड़े सोचते, सही तो कहती थी शिवानी की मां… महेंद्र प्रताप  कितने अच्छे  वर हैं शिवानी के लिए, शायद मैं भी इतना अच्छा लड़का शिवानी के लिए नहीं ढूंढ पाता, क्या हुआ अगर वह हमारी बिरादरी का नहीं है मेरी बेटी तो उसके साथ खुश है और मैंने तो हमेशा से अपनी बेटी का सुख चाहा था!

अगर वह महेंद्र प्रताप के साथ खुश है तो मैं इतना दुखी क्यों हूं? शायद मैं उस वक्त इन बातों को नहीं समझ पाता! इन्हीं बातों को याद करते-करते 3 साल बीत गए! उधर शिवानी की बिटिया खुशी थोड़ा-थोड़ा चलने और बोलने लगी, जब काफी समय बीत गया एक दिन रुद्र प्रताप ने अपनी पत्नी से कहा…. सुनो,

तुम्हारी तो शिवानी से बात होती होगी, कैसी है शिवानी? क्या उसे अपने पापा की तीन-चार सालों में एक बार भी याद नहीं आई ? उसने एक बार भी कोशिश नहीं की अपने पापा से आकर माफी मांग ले? मेरा दिल भी तो अपनी बेटी से मिलने के लिए तड़पता है, जिस बेटी को मैंने इतने लाड प्यार से पाला था मैं कैसे उसे भूल जाऊं?

मैं अपनी बेटी से मिलना चाहता हूं और कहते-कहते रुद्र प्रताप जी की आंखें आंसुओं से भर गई! तुम शिवानी को घर पर बुला लो! यह सुनते ही शिवानी की मां ने खुशी से पागल होते हुए शिवानी को फोन कर दिया, बेटा शिवानी…. तुम तुरंत घर आ जाओ, तुम्हारे पापा तुमसे मिलना चाहते हैं! अगले ही दिन शिवानी और महेंद्र प्रताप दोनों घर आ गए साथ में थी छोटी सी खुशी जिसे देखकर रुद्र प्रताप का  बचा हुआ गुस्सा भी गायब हो गया,

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बाप बेटी गले मिलते हुए फूट-फूट कर रोने लगे।  बेटी मुझे माफ कर देना, मैं अपनी बेटी की खुशी से बढ़कर अपने  खानदान और बिरादरी को मानता था, किंतु बिरादरी की  इज्जत से बढ़कर मेरे लिए मेरी बेटी की खुशी है और अब मैं सच्चे मन से तुझे आशीर्वाद देता हूं… कि तेरा जीवन हमेशा खुशियों से महकता रहे, तुझे किसी प्रकार की आंच न आए और यह सुनकर आज शिवानी सहित पूरा परिवार खुश था, क्योंकि जिस आशीर्वाद की चाहना शिवानी को थी वह उसे आज मिल गया।

 हेमलता गुप्ता स्वरचित

.# आशीर्वाद

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