“मेरौ दरद न जानै कोय” – कुमुद चतुर्वेदी

“क्या बात है तनु आज तुम बहुत उदास लग रही हो,ऐसा लग रहा मानो रात भर सोई नहीं आँखें भी लाल और पनीली दिख रही हैं”सुनते ही तनु फफक कर रो पड़ी मानो उफनती नदी का पानी बाँध तोड़ बह निकला हो।यह देख मौली पहले तो घबरा ही गई फिर कुछ सोचकर उसने तनु को गले लगा चुप कराया और पानी पिला थोड़ा रुककर बोली”माफ करना तनु शायद मैंने तुम्हारी कोई दुखती रग पर हाथ रख दिया पर मैं तुम्हें परेशान नहीं देख सकी इसीकारण तुमसे पूँछ बैठी।चलो छोड़ो अब भूल जाओ और मेरे घर चलो चाय पीकर थोड़ी देर बाद चली जाना।”यह सुन तनु बोली”अरे नहीं तुमने कुछ गलत नहीं किया तुम्हारी जगह मैं होती तो मैं भी तुमसे जरूर पूँछती,अब हम दोनों के बीच माफी शब्द आना ही नहीं चाहिये।

मैं कल पूरी रात नहीं सो पाई।मेरे घर के हाल तो तुमसे छिपे नहीं हैं।”यह सुन मौली ने तनु का हाथ पकड़ कहा “पहले घर चल कर चाय फिर कोई बात।”फिर दोनों रिक्शा रोक बैठ गईं। तनु और मौली बचपन की अच्छी सहेलियां थी इत्तेफाक से दोनों ने साथ- साथ ग्रेजुएशन किया था और बी.एड. की ट्रेनिंग करके एक ही स्कूल में जॉब भी कर रही थीं।तनु अपने माता – पिता की चार संतानों में सबसे बड़ी थी।वह बचपन से ही समझदार और आज्ञाकारी थी।पिता का साया तनु के दसवीं पास करते-करते सिर से उठ चुका था।उस समय उसका सबसे छोटा भाई दो साल का ही था।तनु से छोटी बहन रिंकी उस वक्त छठी क्लास में थी उससे छोटा भाई मनु दूसरी क्लास में था उसके बाद सबसे छोटा भाई पिंकी था जो अभी बिल्कुल ही नासमझ था।

चारों बहन भाइयों में तनु ही समझी थी कि पिता के जाने के बाद अब हम अनाथ हो चुके हैं। गनीमत थी कि पिता का मकान पुश्तैनी था और वह अपने पिता के इकलौते वारिस थे।उस मकान का ऊपर का पोर्शन पिता ने अपने सामने ही किराए पर उठा रखा था,इसलिए किराए और पिता के पीएफ के पैसों से दाल रोटी चलती रही तब तक, जब तक तनु ने अपना ग्रेजुएशन कंप्लीट करके बी.एड.ना कर लिया।मौली उसकी कक्षा में ही पढ़ती थी और चंचल,मनमौजी तथा अपने पिता की इकलौती संतान थी।उसके पिताजी भी कोई ज्यादा पैसे वाले तो नहीं थे, लेकिन हाँ बेटी की हर इच्छा पूरी करने के लिए समर्थ थे।

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बी.एड.करने के बाद मौली के पिता ने ही कोशिश करके तनु और अपनी बेटी मौली को एक स्कूल में टीचर की नौकरी दिलवा दी थी हालांकि इसके लिये उन्हें दौड़ भाग के साथ-साथ अपनी तरफ से कुछ भेंट भी चढ़ानी पड़ी थी,पर काम हो गया था। मौली के पिता बैंक में क्लर्क थे और उसकी माँ एक सीधी-सादी घरेलू स्त्री थी। जब दोनों घर पहुँचीं तो मौली की माँ तनु को देख बहुत खुश हुई और उन दोनों को कमरे में भेज चाय बनाने के लिए स्वयं रसोई में चली गई तब तक तनु प्रकृतिस्थ हो चुकी थी। मौली ने उसे अपने बेड पर बिठा कर कहा अब तुम आराम से चाय पियो फिर बाद में बात करते हैं।इतना कहकर मौली चाय लेने चली गई।दोनों ने चाय पी फिर मौली माँ से बोली”माँ हम लोग पढ़ाई करेंगे इसलिये मैं कमरा बंद कर रही हूँ।”

कमरा बंद कर मौली तनु के बगल में बैठ कर बोली “हाँ तनु अब बोलो क्या बात है?” तनु ने मौली की तरफ देख कर कहा “वही रोज ढाक के तीन पात।कल मैं जब स्कूल से लौटी माँ दरवाजे पर ही बैठी हुई थी मेरे पहुँचते ही बोली” तनु तुमसे कुछ बात करनी है” मैं जब तक कपड़े बदल कर आई तो माँ कुर्सी पर बैठ थी,मुझसे बोली”तनु बैठो, मेरी बात ध्यान सा सुनो।मैं चाहती हूँ कि रिंकी ग्रेजुएशन कर चुकी है अब उसकी शादी कर दी जाये।मैंने उसके लिए लड़का भी देख रखा है अच्छा खाते पीते परिवार का लड़का है और खुद घर का बिजनेस है इलेक्ट्रिक सामान की दुकान है मेन मार्केट में और दुकान खूब चलती है।




उन लोगों को रिंकी पसंद भी है।मैं चाहती हूँ इसी सहालग में उसकी शादी कर दूँ। इसलिए तुम मुझे कल अपने पीएफ से पैसा निकाल कर ले आना जिससे मैं तैयारी कर सकूँ।” मैं पहले तो उनका मुँह देखती रही फिर बोली “माँ मेरे पास कहाँ पैसा है ?न मेरा कोई प्राइवेट एकाउंट है,आपको मालूम है घर का खर्च और भाई बहनों की फीस के बाद जो कुछ भी है आपके सामने है, मेरे पास क्या बचता है? फिर भी आप यह सब मुझसे कह रही हो।”यह सुन माँ ने पुनः कहा” मैं कुछ नहीं जानती मैं रिंकी की शादी तय कर रही हूँ इसलिये जैसे भी हो तुम जानो चाहे तुम लोन ले लो।”यह कह माँ उठ कर चली गई और मैं बिना कुछ खाये पिये कमरे में लेट गई। किसी ने मुझसे यह ना पूछा कि तुमने क्यों नहीं खाया और क्यों लेटी हो? रात भर मैं रोती रही,नींद मुझ से कोसों दूर थी।

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मेरी तो समझ में नहीं आ रहा था कि माँ को क्या हो गया है, रिंकी की शादी की फिक्र है मेरी तरफ तो किसी का ध्यान नहीं है।मैं भी चाहती हूँ मेरा भी घर बसे,मेरा भी कोई हो,अपना घर परिवार हो।कोई मेरे भी एकांत पलों का साथी हो जिसके कँधे पर सिर रखकर मैं भी चिन्तामुक्त हो सकूँ।पर माँ तो जैसे पराई हो गई है,साथ ही बहन भाई भी।सब ही अपना अपना स्वार्थ देखते हैं।जरूरत होती है तब दीदी दीदी इतने पैसे चाहिये फीस भरनी है, किताब लानी है।उसके बाद कोई मतलब नहीं।मैं क्या करूँ,मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है।इन्हीं लोगों की बदौलत आज लोग मुझे बुढ़िया कहते हैं।रिंकी की शादी के बाद दोनों और भाई भी हैं उनकी पढ़ाई और शादी की बात चलेगी इस सब के लिये मैं ही क्यों?मेरी ही बलि क्यों?अब तो यह प्रश्न भी मेरे मन में बार बार उठता है क्या मैं माँ की सौतेली बेटी हूँ?बाबूजी के बाद मैंने घर की जिम्मेदारी सँभालकर कोई गलती कर दी?क्या बड़ी संतान होना पाप है?कौन देगा मुझे इन सबका जबाब?किससे पूँछूँ ?”
कुमुद चतुर्वेदी
# दर्द

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