मिथिलेश जी बिजली विभाग में एसडीओ थे और इसी साल सेवानिवृत्त होने वाले थे उनकी पत्नी उर्मिला जी का मन था कि रिटायर होने के बाद वह अपने इकलौते बेटे दुर्गेश जो गुडगांव की एक आईटी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर था और बहू भी गुड़गांव की ही दूसरी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर थी. बेटे ने गुड़गांव में ही अपना फ्लैट खरीद लिया था। अब उर्मिला जी का मन था कि अपने बेटे-बहू और पोते-पोतियो के साथ रहे । पति जब नौकरी कर रहे थे पति के साथ रहना उनकी मजबूरी थी।
उर्मिला जी ने जब अपनी इच्छा अपने पति मिथिलेश जी से बताई मिथिलेश जी ने बेटे- बहू के साथ रहने से साफ मना कर दिया। “उर्मिला कैसी बात कर रही हो तुम्हें पता नहीं है बेटा और बहू दोनों नौकरी करते हैं मैं नौकरी से रिटायर हुआ हूं जिंदगी से नहीं हाँ साल में एक बार मिलने चले जाएंगे वह अलग बात है अभी से बेटे बहू पर बोझ बनना यह अच्छी बात नहीं है मेरा तो सपना है जो गांव में हमारा टूटा हुआ मकान है उसको मैं रिपेयर करा कर जब तक इस शरीर में जान है हम वहीं रहेंगे। जब पति का मन ही नहीं था गुड़गांव रहने का तो उर्मिला जी पति को छोड़ कर कैसे जा सकती थी वह भी अपने पति के साथ गांव में रहने लगी।
लेकिन यह साथ बहुत जल्दी ही छूट गया उर्मिला जी को अपने पति के साथ गांव में रहते हुए अभी 1 साल भी नहीं हुए थे और एक दिन पति को हार्ट अटैक हुआ हॉस्पिटल ले जाया गया लेकिन हॉस्पिटल में डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया।
पति के क्रिया कर्म होने के बाद उर्मिला जी अपने बेटे और बहू के साथ गुड़गांव आ चुकी थी पहले तो उनका बहुत मन था बेटे बहू के साथ आकर रहने का लेकिन इस बार ना जाने क्यों उनका मन नहीं कर रहा था आने का लेकिन आना उनकी मजबूरी थी वह अकेले गांव में रहकर करेंगी भी तो क्या।
उर्मिला जी शुरू से ही कड़क स्वभाव की महिला थी। उनका बेटा दुर्गेश आज दो बच्चों का बाप भले बन गया था लेकिन मजाल है जो अपनी मां से आज भी आंख मिलाकर बात कर सके।
गुड़गांव आने के बाद उर्मिला जी ने देखा कि बेटे बहू के घर में सारा सामान अस्त-व्यस्त पड़ा हुआ है किचन में भी कोई सामान सही से नहीं रखा हुआ है उन्होंने अपने पास बहू को बुलाकर पूछा, “बहू तुम यहाँ कैसे रहती हो ऐसा लग रहा है यह घर नहीं कोई कबाड़ी की दुकान है।” अब उर्मिला जी को कौन बताए कि बड़े शहरों में जब पति पत्नी दोनों नौकरी करते हैं तो उनके घर का हाल ऐसा ही होता है। उर्मिला जी की बहू नंदिनी ने कहा, “मां जी आपको तो पता ही है कि हमें सुबह ऑफिस के लिए घर से 8:00 बजे ही निकल जाना होता है घर मैं झाड़ू पोछा तो नौकरानी कर जाती है लेकिन और चीज करने का हमारे पास समय कहां होता है। उर्मिला जी ने कहा बहू मैंने तो शुरू से ही दुर्गेश से कहा है कि जब तुम नौकरी करते ही हो तो बहू को नौकरी करने की क्या जरूरत है।
नंदिनी ने कहा, माँ जी सिर्फ नौकरी जरूरत के लिए नहीं की जाती है मैंने भी आखिर इतनी पढ़ाई कि मेरे पापा ने मुझे इंजीनियरिंग कराया वह इसलिए नहीं कि मैं घर पर बैठे रहूँ। और आज महानगर में एक अच्छी लाइफ स्टाइल जीना है एक आदमी की नौकरी करने से कुछ नहीं होता है दुर्गेश की तनख्वाह तो बच्चों की पढ़ाई और घर की इएमआई में ही खत्म हो जाता है अगर मैं नौकरी छोड़ दूं तो घर का खर्च चलाने के लिए पैसे भी कम पड़ जाए।
उर्मिला जी अपने बहू के सोने उठने आने-जाने कपड़े पहनने सभी पर हमेशा कुछ न कुछ कमेंट करती थी थोड़े दिनों तक तो बहु चुप रही लेकिन कुछ दिनों के बाद से ही सास और बहू में विरोध होने लगा जिसके कारण आए दिन एक दूसरे से झगड़े होने लगे। बेटा दुर्गेश को भी समझ नहीं आ रहा था कि वह किसकी तरफ बोले एक तरफ मां है तो एक तरफ बीवी अगर सही मायने में देखा जाए तो दोनों में कोई गलत नहीं होता था नंदिनी एक कामकाजी महिला थी उस नजर से देखें तो वह घर को जैसा मां चाहती थी वह कभी नहीं रख सकती थी।
1 दिन दुर्गेश ने जब अपनी मां से कह दिया मां आप इन सब पचड़ों में क्यों पड़ती हैं आप को अगर नंदिनी का बनाया हुआ खाना पसंद नहीं है तो घर आपका ही है आपको जो इच्छा करें बनाकर खा लिया कीजिए। दुर्गेश का इस तरह से अपनी पत्नी का पक्ष लेना उर्मिला जी को अच्छा नहीं लगा उन्होंने दुर्गेश से कहा, “वाह बेटा दुर्गेश आज तक तुमने मुझसे नजरें उठाकर भी बात नहीं की थी और आज पत्नी की तरफदारी कर रहे हो. मुझे इस घर में अब नहीं रहना है कल ही मेरा टिकट करा दो मैं गांव जाऊंगी जैसा भी हो मैं वहीं रहूंगी मैं नहीं चाहती हूं कि मेरी वजह से तुम दोनों के आपसी रिश्ते में कोई विवाद हो।
दुर्गेश भी पत्नी और मां के लड़ाई झगड़े से तंग हो चुका था और आखिरकार उसने अपनी मां को गांव भेज दिया।
दुर्गेश की बड़ी बेटी मधु बहुत अच्छी डांसर थी और दिल्ली में एक रियलिटी शो का ऑडिशन चल रहा था तो उसने भी ऑडिशन दिया और वह फर्स्ट राउंड में सिलेक्ट हो गई और उसे फाइनल राउंड के लिए मुंबई बुलाया गया।
अब परेशानी यह थी कि मधु अकेले मुंबई कैसे रहेगी क्योंकि दुर्गेश और नंदिनी को ऑफिस में बिल्कुल भी छुट्टी नहीं था कि वह मधु के साथ जा सके या तो मधु को अकेले जाना पड़ेगा।
दुर्गेश नंदिनी अपनी बेटी के लिए इतना बड़ा मौका छोड़ना भी नहीं चाहते थे। तभी उनकी बेटी मधु बोली, “पापा आप दादी के पास फोन करके बुला लीजिए दादी मेरे साथ चली जाएगी।”
नंदिनी बोली, “हां दुर्गेश मधु सही कह रही है तुम अपनी मां को यहां बुला लो गांव में आखिर वह अकेली रहती हैं।”
दुर्गेश ने अपनी मां के पास फोन मिलाया उधर से मां ने हैलो किया दुर्गेश अपनी मां को प्रणाम कर बोला, “मां कैसी हो।”
उर्मिला जी बोली, “मैं तो ठीक हूं बेटा तुम बताओ आज दिन में कैसे फोन कर दिया रोजाना तो रात में फोन करते हो।” “मां दरअसल बात यह है कि तुम्हारी बहू तुमसे बात करना चाहती है।”
इस बात पर उर्मिला जी ने कहा अब बहू को मुझसे क्या काम आ गया है जो बहू मुझसे बात करना चाहती है गांव आए मुझे 6 महीना से भी ज्यादा हो गया आज तक तो बहू ने कभी मेरा हाल भी जानने की कोशिश नहीं की।
नंदिनी ने दुर्गेश से फोन ले लिया था और फोन पर ही अपने सासू मां को प्रणाम किया उर्मिला जी ने अपनी बहू को आशीर्वाद दिया सदा सुहागन रहो।
नंदिनी ने फोन पर ही अपने सासू मां को बताया कि मधु का एक रियलिटी शो में सिलेक्शन हो गया है और मुंबई उसके साथ जाने के लिए कोई नहीं है। अगर आप साथ में चली जाती तो? इतना कहना था कि उर्मिला जी ने कहा इसमें भी कोई पूछने की बात है बहू कल का ही मेरा टिकट करा दो कल ही आ जाती हूं मैं।
दुर्गेश ने अपनी मां की का टिकट करा दिया था और गांव में ही अपने चाचा के लड़के से बोल दिया कि वह स्टेशन पर जाकर मां को ट्रेन में बैठा दें वह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से अपनी मां को पिकअप कर लेगा।
दुर्गेश अपनी पत्नी नंदिनी को भी समझा रहा था देखो नंदिनी इस बार मां के साथ कोई लड़ाई झगड़ा मत करना तुम्हें तो पता ही है मां अकेली है अब तो पापा भी नहीं है अब आखिर मां इस बुढ़ापे में कहां जाएगी तुम्हें तो पता ही है जब पापा जिंदा थे तो मां घर को अपने अनुसार ही चलाती थी।
नंदिनी ने दुर्गेश से कहा, “दुर्गेश इस बार मैं मम्मी को कुछ नहीं बोलूंगी जैसे उनको इस घर को रखना है रखें।
नंदिनी तो मन ही मन सोच रही थी कि उसकी सासू मां यही रहे लेकिन वह दुर्गेश से कह नहीं पा रही थी लेकिन इस बार अपनी बेटी के डांस के बहाने जब सासु मां आ रही है तो वह उन्हे जाने देना नहीं चाहती थी। जब सासू मां यहां नहीं रहती थी तो उसके बच्चे सिर्फ फास्ट फूड ही खाते थे लेकिन उसकी सासु माँ के आ जाने से बच्चे घर का खाना, खाना शुरु कर दिया था। पहले बच्चे बाहर का खाना खाकर आए दिन बीमार ही रहते थे लेकिन जब से उनको घर के खाने का चस्का लगा तब से वह भी स्वस्थ रहने लगे। नंदिनी समझ गई थी कि सासु माँ कड़वी दवाई की तरह है जो खाने में कड़वा तो जरूर लगता है लेकिन बीमारी को ठीक कर देता है।
उर्मिला जी आते ही अपनी पोती के साथ मुंबई रवाना हो गई। मुंबई जाने के बाद मधु टॉप टेन में जगह नहीं बना पाई और वह लोग गुड़गांव वापस लौट आए।
इस बार उर्मिला जी ने भी सोच लिया था अब परिवार के साथ रहना है तो ऊंच-नीच तो होगा ही उर्मिला जी की बेटी ने भी उर्मिला जी को समझा दिया था कि मां कैसे भी करो अब भैया के साथ ही रहो जब एक जगह दो बर्तन रहेंगे तो आपस में टकराएंगे ही और फिर तुम्हें भी पता ही है कि भाभी नौकरी करती हैं तुम्हें उनको सहयोग करना चाहिए ना कि उनसे कंपटीशन।
मां तुम मान कर यह चलो की भाभी तुम्हारी बहू नहीं बल्कि वह दूसरी बेटी है फिर देखना तुम्हारे मन में कभी भी उनके प्रति गलत भाव नहीं आएगा।
इधर नंदिनी भी अब उर्मिला जी को गांव भेजना नहीं चाहती थी क्योंकि उसे पता चल गया था कि घर में बुजुर्गों के रहने से कोई हानि नहीं होती बल्कि बच्चे संस्कार सीखते हैं।
दोस्तों रिश्ता कोई भी हो एक दूसरे में सामंजस्य रखने के लिए एक दूसरे की भावनाओं की कद्र करना भी जरूरी है लेकिन हम अपने ईगो के कारण एक दूसरे से दूर होते चले जाते हैं अगर हम चाहते हैं कि हमारा रिश्ता लंबे समय तक चले तो कई बार रिश्तो में अपनों के लिए झुकना भी जरूरी होता है।