मेरी सासु माँ का दोहरा व्यक्तित्व – अमिता कुचया

आज कल‌ जैसे की सोच होती है ,पढ़ी लिखी बहू आए और अगर नौकरी वाली  बहू आती है। तो ससुराल वाले को पुराने सोच बदलने की जरूरत होती है। क्योंकि सर्विस वाली बहू के रहन सहन और व्यवहार में अंतर होता है, घरेलू बहू की अपेक्षा…

कहने को आधुनिक विचारों वाले सोच हम लोग है  सब ऐसा ही लड़की वालों से कहा जाता है।

पर एक समय के बाद ही एहसास हो जाता है। कि ससुराल वाले कितने आधुनिक है।

ऐसा ही दीपा के साथ हुआ। जब लड़की देखने गए तो होने वाली सास ने कहा-  तुम सर्विस तो करोगी ,पर  क्या घर और बाहर दोनों को मैनेज कर पाओगी?

तभी दीपा ने कहा- आंटी जी समय और परिस्थितियों को देखकर सब एडजस्ट करना ही पड़ता है।

इतना सुनते ही  सास बोली -वो सब तो ठीक है पर  ज्यादा जिम्मेदारी भी अकेले ही बढ़ जाती है, तुम्हें तो  मेरे बेटे से सामंजस्य बना कर चलना पड़ेगा।

फिर आगे तुम्हारी जिंदगी है। तुम लोगों  को अपने हिसाब से रहना पड़ेगा।फिर दीपा ने भी कहा- “गृहस्थी की गाड़ी अकेले नहीं चलती।  पति-पत्नी तो एक दूसरे के पूरक होते हैं।”

फिर रिश्ता भी तय हो जाता है। शादी में सब रस्मों में आधुनिक सोच समझ आ रही थी।

  और सासु मां हमेशा कहती “हमारे यहां पर्दा नहीं होता पर रीति-रिवाज को हम लोग मानते हैं। “

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शादी के बाद ससुराल में दीपा को एक सप्ताह रहना पड़ा। तभी उसकी समझ में आ गया कि सासु जी  कहती कुछ है•••• और करती कुछ•••

अब पहली रसोई बनाने की रस्म हुई, तब जो भी नेग मिलते तो उन्हें लगता  कि बहू सभी नेग में मिले उपहार और लिफाफे हमारे पास रखवाये।

धीरे-धीरे समय बीत रहा था। कभी पूजा के कारण, कभी रीति-रिवाज के नाम  पर रोक टोक लगाये जा रही थी।

दीपा भी संस्कारी बहू की तरह सब बातें मान रही थी। अब तो अति तब होने लगी जब उसे राहुल से बात करने  को भी रोका गया। राहुल उनका बेटा है। जिसके साथ उसके सात फेरे हुए। खैर…

अब वह जब भी किसी से बात करने की कोशिश करतीं, तभी सासुमा टोंक देती कि तुम्हें तो शर्म लिहाज है ही नहीं …

कुछ दिन  तो नयी बहू जैसे रहो!

अब दीपा जो खुशियों के पंख लगाये आई थी। तो उसे लगा कि धीरे-धीरे उसके पंख कुतरे जा रहे हैं। यहां शादी में भाई बहन और भी बहुत से रिश्तेदार थे। पर उसने सोचा कि  कौन सा हमेशा मुझे रहना है। इस तरह दीपा चुप रही। इस तरह समय बीतता गया।

अब दोनों बहू बेटा  दूसरे शहर जब जाने लगे तो उन्होंने पैर छूकर आशीर्वाद लिया तभी  उनके मुंह से आशीर्वाद निकला ” सदा खुश रहो “।

इतना सुनते ही दीपा के मन ने कहा- “मम्मी जी जब खुश‌ रहने दोगी, तभी तो खुश रहेंगे।”




फिर राहुल और दीपा जाने लगे तो राहुल ने कह ही दिया मम्मी कहने को तो आधुनिक हो, हमारा रहन सहन भी आधुनिक है।पर आपकी सोच दोहरे व्यक्तित्व वाली और पुरानी व दकियानूसी है क्योंकि  मैंने महसूस किया है कि आपकी  जैसी रोक टोक दीपा को करती हो ,उससे समझ आता है कि आप मन से खुले व्यक्तित्व वाली नहीं हो पाई। दादी जी जैसा ही आपका व्यवहार मैं दीपा के साथ देख रहा हूं।

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   फिर दीपा भी बोली- मम्मी जी केवल आधुनिकता पहनावा से  नहीं होती बल्कि सोच भी बदलनी पड़ती है। माना कि यहां पर्दा नहीं होता हैं ,वो भी आपने ये बात इसलिए मानी। क्योंकि आप जानती थी कि नौकरी करने वाली बहू कैसे पर्दा करेगी!

मम्मी आप  को अपनी सोच को भी बदलना होगा तभी तो सही मायने में आधुनिक बन पाएगी। क्योंकि आधुनिक हो या न हो पर आपसी सोच एक दूसरे से मिलना जरुरी होता है।

आज सासु मां को समझ आ गया कि बहू बेटे को यहां रहना ही नहीं है, इसलिए उन पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती है। उन्होंने कहा-” बेटा मैंने जैसा देखा और महसूस किया वहीं मुझसे होता गया। मुझे तुम्हारे साथ ऐसी रोक टोक नहीं लगानी चाहिए। मुझे माफ़ कर दो। “

इस तरह वे समझ गई कि रीति-रिवाज जितने सीमित हो उतने ही अच्छे होते हैं ।ताकि बहू बेटे के साथ मधुरता बनी रहे।

दोस्तों -इंसान आधुनिक केवल कपड़े और रहन सहन‌ से ही नहीं होता है। बल्कि उसे सोच में भी बदलाव लाना चाहिए।ताकि नये जमाने के साथ कदम से कदम  मिलाकर चल पाए। नहीं तो बहू बेटे से ही क्या, किसी से भी बेइज्जती हो सकती है।

#दोहरे_चेहरे

आपकी दोस्त ✍️

अमिता कुचया

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