एक दिन आलमारी साफ़ करते हुए मेरे हाथ बहुत सारी डायरियां लगी,, मैंने चौंक कर देखा, इतनी सारी ,,,, यहां,कब कैसे,,, मैंने साफ़ करते हुए अपनी
सबसे प्यारी डायरी को उठाया और खुश हो कर उसे माथे से लगाया ,,
*** ये मेरी डायरी, तुझको देखा है पहले कभी,,
,,, डायरी ने पलकें झपकाई,, और बोल पड़ी,,,,,ऐ , मेरी जिंदगी, मुझको पहचान ले, मैं वही हूं वही हूं,वही,,,,**”*****
,, जिसके दामन में तुमने अपनी जिंदगी की कितनी रातें बिताई,, कितने दुःख और बिछोह की बातें बताई,कितने आंसूओं की बरसात बहाई,, तुम्हारे हर दुःख को मैंने अपना समझा,, मैंने तुम्हारे हर आसूं को अपने आंचल में मोतियों
की तरह समेटा,, तुम अपने सारे रंजोगम मुझे सुना कर बड़े शांति और सुकून की नींद सोती,, अपने आंसुओं से मेरा दामन भर देती,सारा मनोमालिन्य और गुबार मुझ पर निकाल देती और हल्की होकर अपने दैनिक काम में लग जाती,,,,, मैं वही तुम्हारी परछाईं हूं,,वही डायरी हूं,,,कि,,,, तुम आराम से सोओ, और मैं जागूं, पूरी रात तुम्हें दुआ देती,, और तुम्हे चैन की नींद सोता देखती,,जब तुम सुबह उठती,तो तुम्हें तरोताजा देखकर मैं बहुत ही खुश होती,, और मैं तुम्हारा दर्दे दिल, दर्दे हाल सुनकर रात, दिन सिसकती,, आहें भरती,पन्ने फड़फड़ाती रहती,, और मायूस हो कर तुम्हें देखती रहती ,,, सोचती,,,काश, तुम्हारे सब ग़म मेरे हो जाये,,,
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आज तुम मुझे भूल चुकी हो, एक कोने में पटक चुकी हो,, क्यों कि तुम्हारे हाथ में डिजिटल लेखनी आ गई है अब ,,मेरा क्या काम है तुम्हारी जिंदगी में,,पर मेरा क्या कसूर है,,, मैं ऐसे ही धूल खाती पड़ी रहूं,,,*****””*
सुषमा यादव,, प्रतापगढ़,, स्वरचित, मौलिक,,,
,,, मैं सन्न रह गई,, मेरी आंखें खुल गई,, ये बिल्कुल सही है,, हमारी डायरी हमारे सुख दुःख की साथी है,,,जब हम अपने दुःख दर्द को किसी के साथ भी साझा नहीं कर सकते,,तब हम अपने दर्द, पीड़ा को डायरी के उन कोरे कागजों पर अपनी लेखनी से उकेर देते हैं,,ऐ मेरी प्यारी डायरी,तू किसी से कुछ नहीं कहती,सारे राज़ अपने सीने में दफन कर लेती है
,,,तू मेरी राजदार है,, मेरे सुख दुःख की सहेली है तू,,,अब मैं पहले अपनी जीवन गाथा तुझे सुनाऊंगी,, फिर डिजिटल लेखनी उठाऊंगी,,, क्यों कि नया कुछ दिन का,,,पुराना जिंदगी भर का,,,ये तो कब धोखा दे जाये,,
कब किसके पास भाग जाये,,
पर तुझे तो कोई नहीं ले जा सकता,,तू मेरी अमानत बन कर हमेशा मेरे साथ ही रहेगी,,
**** तू कहीं नहीं जायेगी,
,, मेरी सच्ची सहेली बन कर रहेगी,,,********
सुषमा यादव,, प्रतापगढ़,,
स्वरचित,, मौलिक,,