Moral stories in hindi :
सुरेखा ने उसे देखते ही ताना मारा और मुंह बनाया, पर नीरजा ने इसकी परवाह नहीं की, और अपनी मम्मी सुनीता जी को बताया कि उसकी सास उसकी नौकरी करने के लिए राजी हो गई है, वो अपनी मार्क शीट, सर्टिफिकेट और डिग्री लेने आई है।
ये सुनते ही सुरेखा चौंक गई, वो तो कभी नहीं चाहती थी कि उसकी ननद नौकरी करें और अच्छी जिंदगी जीयें, आखिर उसके ससुराल वाले राजी कैसे हो गये?
बहुत कोशिश करने पर भी नीरजा ने ये ना बताया कि आखिर उसकी सास उसकी नौकरी करने के लिए कैसे राजी हो गई?
नीरजा एक समझदार बहू थी, अब ससुराल ही उसका अपना घर है और वो अपने घर की परेशानी, अपने घर की बात घर में ही रखना चाहती थी।
नीरजा ने शांतिपूर्ण ढंग से अपना सामान लिया और अपने ससुराल चल दी, पर जाने से पहले वो अपनी भाभी सुरेखा को कहकर गई,” भाभी आपने तो बहुत कोशिश की थी, मेरी जिंदगी नरक बनाने की पर मैंने भी ठान लिया था कि मै अपनी जिंदगी संवार ही लूंगी, इतनी मेहनत से दिन-रात जागकर जो मैंने पढ़ाई की है, उसे इस तरह तो बर्बाद नहीं होने दूंगी, मैं अपने पैरों पर एक दिन जरूर खड़ी होकर दिखाऊंगी, इसलिए मैंने कोशिश की और मै जीत गई, अब कुछ ही दिनों में मेरी नौकरी लग जायेगी, फिर मै अच्छा कमाने भी लगूंगी”।
अच्छा!! वैसे आपको कितनी पगार मिलेगी? सुरेखा ने मन लेते हुए कहा।
भाभी, अब कितनी भी पगार मिले, वो आपके लिए नहीं होगी, मेरी सारी कमाई मेरे अपने घर ससुराल वालों के लिए ही होगी, आपको तो एक रूपया भी नहीं मिलेगा, ये कहकर नीरजा ससुराल चली गई।
कुछ दिनों की मेहनत और इंटरव्यू के बाद उसे एक अच्छी स्कूल में टीचर की नौकरी मिल गई ।
अब नीरजा अच्छा खासा कमाने लगी, घर की आर्थिक स्थिति भी सुधरने लगी, घरवालों की जरूरतें भी पूरी होने लगी, समय के साथ नीरजा के एक बेटा हो गया, और उसका प्रमोशन भी हो गया, अब वो सीनियर टीचर बन गई। उसकी पगार भी बढ़ गई, एक दिन सुबह घर में कोहराम मच गया, नीरजा के ससुर जी अचानक चल बसे, पिछले चार सालों से वो बिस्तर पर ही थे। नीरजा ने बड़ी मुश्किल से अपनी सास सुमित्रा जी को संभाला और ढांढ़स बंधवाया।
नीरजा ब सीनीयर टीचर से स्कूल की प्रिंसिपल बन गई थी।
कुछ सालों बाद दोनों ननदें बड़ी हो गई, उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर ली तो अब सुमित्रा जी को उनकी शादी की चिंता सताने लगी, वो जल्दी से दोनों की शादी करना चाहती थी।
एक दिन अचानक मायके से फोन आया कि नीरजा की बड़े भाई रमेश की अचानक मृत्यु हो गई, उसे अपने मायके जाना पड़ा, तेरहवीं तक वो वहीं पर रूक गई थी, उसकी भतीजी की पढ़ाई पूरी नहीं हुई थी,सुरेखा अपनी बेटी पढ़ाई को लेकर चिंतित थी, और घर में कमाने वाला चला गया था।
“भाभी, आप बिटिया की पढ़ाई की चिंता मत करना, उसका सारा खर्चा मै उठाऊंगी, और वो इंजीनियर बनना चाहती है तो उसे अच्छे से अच्छे संस्थान में मै पढ़ाऊंगी “।
ये सुनते ही सुरेखा शर्म से जमीन में गड़ गई, नीरजा मुझे माफ कर दो, मैंने तुझे बोझ समझा, शादी जबरदस्ती करवा दी, और तुम मेरी बेटी के लिए इतना सोच रही हो?
“भाभी, जो हुआ उसे भुल जाओं, अब हमें अपनी बेटी का जीवन संवारना है “।
नीरजा ने भाई की बेटी की भी जिम्मेदारी उठा ली, वो ससुराल आ गई।
यहां सुमित्रा जी बेटी के लिए लडका तलाशने में लगी हुई थी, लेकिन नीरजा इसके लिए तैयार नहीं थी, उसका मानना था पहले दोनों अपने पैरों पर खड़ी हो जायें, फिर जाकर शादी के बारे में सोचेंगे। उसने सुमित्रा जी को समझाया,” मम्मी जी मेरी ननदें मेरे लिए बोझ नहीं है, जो मै इन्हें शादी करके उतार दूं।
मेरी ननदों को मैंने बेटियों की तरह पाला है, इसलिए ये मेरी जिम्मेदारी है कि जब तक ये दोनों अपने पांवों पर खड़ी नहीं हो जाती तब तक मै इनकी जिम्मेदारी उठाने को तैयार हूं, अपने पैरों पर खड़ी होगी तो ये दोनों एक बेहतर जिंदगी जी पायेगी।
लेकिन नीरजा, बेटियों को इनके घर भेज देते हैं, बाद में ये अपने हिसाब से ससुराल में पढ़ लेगी,” सुमित्रा जी बोली।
“नहीं मम्मी जी, आप मां होकर ऐसे कैसे कह सकती है, बेटियों को हम दूसरे घर पूरी तरह तैयार करके भेजेंगे, ताकि इन पर कभी कोई मुसीबत आयें तो ये पूरी तरह से उसका सामना कर सकें, मेरी दोनों ननदें मेरी बेटियां जैसी है, जो मेरे साथ हुआ वो मै इनके साथ नहीं होने दूंगी, मेरे पास भी डिग्री थी तो मै नौकरी करके घर चलाने में सहयोग दे पाई”।
“हां, बहू मै तो भुल ही गई थी, अब जैसा तू और सुकेश चाहेगा, वैसा ही होगा, जब तुमने ननदों को बेटियां मान लिया है तो तुम इनका भला ही सोचोगी,”।
नीरजा ने अपने साथ -साथ भाई की बेटी, और अपनी ननदों का भी जीवन संवार दिया।
दोस्तों,” परिवार में एक स्त्री पढ़ती है, पैरों पर खड़ी होती है तो पूरे परिवार के बारे में सोचती है, आत्मनिर्भरता ही आजकल की स्त्री की सच्ची पहचान है।
पीछे की कहानी पढ़ने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें
भाग -2
मेरी ननदें मेरे लिए बोझ नहीं है ( भाग -2) – अर्चना खंडेलवाल : Moral stories in hindi