Moral stories in hindi :
ये क्या तुम वापस मायके आ गई!! तुम्हें शर्म नहीं आती, जब देखो मुंह उठाकर चली आती हो? ससुराल में मन नहीं लगता क्या? सुरेखा भाभी ने ताना मारा तो नीरजा अंदर तक हिल गई, पर वो भाभी का ये कड़वा ताना भी सह गई।
अभी दो साल पहले ही नीरजा की शादी सुकेश से हुई थी, सुकेश ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं था, छोटी सी दुकान चलाता था, और नीरजा के सपने बहुत ऊंचे थे ,पर कहते हैं ना किस्मत के आगे किसी का जोर नहीं चलता है, अच्छी पढ़ी-लिखी नीरजा की शादी सुकेश से इसलिए करवा दी गई क्योंकि वो कम दहेज में मान गये थे। नीरजा के पापा की मौत तो काफी पहले हो गई थी, मम्मी भी अपने बेटों पर निर्भर है थी और जवान ननद भाभी के कलेजे में वैसे ही चुभती है, उन्हें लगता है, जल्दी से इसका ब्याह हो तो छुटकारा मिल जायें।
जगह-जगह शादी की बात चलाई पर पढ़ाई और गुण के लिए किसी ने नहीं पूछा, सब ये ही पूछ रहे थे, इकलौती बहन है, कितना शादी में लगा दोगे?
नीरजा शादी नहीं करना चाहती थी, उसका मानना था कि पहले अपने पैरों पर खड़ी हो जायें फिर शादी कर लेगी, पर सुरेखा भाभी ने एक लगा दी, ” अब ये लो महारानी पहले नौकरी करेगी, फिर दो-तीन साल बाद शादी करेगी, अब बूढ़ी होकर शादी करनी है क्या? समाज वाले हमारा जीना हराम कर देंगे, पर इसे तो हमारी परवाह ही नहीं है, अब देखो ना शादी की उम्र में शादी नहीं करेंगी तो घर बैठकर भी क्या करेगी??
अब नौकरी कोई ऐसे तो धरी नहीं है जो चुटकी बजाते ही मिल जायेगी, ज्यादा उम्र हो जायेगी तो लड़के नहीं मिलेंगे, मै तो कह देती हूं, दो तीन महीने में शादी निपटा दो ताकि हमारे सिर से बोझ उतरे, आगे हमारी भी जिंदगी है, कब तक कुंवारी ननद का बोझ सिर पर लेकर घुमेंगे?
सुरेखा भाभी ने अपना फैसला सुना दिया, उनके आगे किसी की भी नहीं चलती थी, भाई रमेश ने हामी में गर्दन हिला दी, और नीरजा की मम्मी सुनीता जी की बोलती बंद हो गई, इसी साल नीरजा ने बीएड पूरा किया था, बड़ी मुश्किल से उसने ये डिग्री पूरी की, और अब वो नौकरी करना चाहती थी, पर सुरेखा ने पूरा घर सिर पर उठा लिया था।
रमेश भी अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा था पर जहां अच्छे लड़के मिल रहे थे वहां उतना ही दहेज मांगा जा रहा था।
“आप भी बेकार में विचार कर रहे हो!! अब लडका बारहवीं पास है, छोटी सी दुकान चलाता है तो क्या हुआ?? दहेज की तो मांग नहीं है, मै तो कह रही हूं कि आंख मूंदकर हां कर दो, और मम्मी जी और नीरजा से कह दूंगी, हम तो इसी लड़के से शादी करेंगे, अब लाखों का दहेज हमारे पास में नहीं है”।
रमेश ने घर पर बात की तो सुनीता जी बोली “एक ही बहन है, उसे भी कुंए में धक्का देगा क्या? घर-वर तो अच्छे से देख लें, नीरजा तो अच्छी पढ़ी-लिखी है वो बारहवीं पास के साथ में कैसे रह पायेगी? कैसा भाई है? अपनी छोटी बहन भी बोझ लगने लगी है “
“मम्मी, सिर्फ नीरजा ही नहीं आप और मेरी पत्नी भी मेरी जिम्मेदारी है, मेरे बच्चे भी तो है, मुझे उनका भविष्य भी देखना है, सारा धन बहन के ब्याह में लगा दूंगा तो मेरे बच्चों के भविष्य का क्या होगा? फिर मै भी बहुत ज्यादा तो कमाता नहीं हूं, मुझे तो ये रिश्ता ठीक लग रहा है, लड़के वालों की कोई मांग भी नहीं है, इसलिए मै तो हां कहने जा रहा हूं “।
ये सब नीरजा सुन लेती है,” भैया आप मेरे जीवन का फैसला करने जा रहे हो, और मुझसे एक बार भी पूछा नहीं, मेरी इच्छा और मेरी मर्जी क्या है? आपको भी मेरे नौकरी करने से दिक्कत है? मुझे अपनी जिंदगी के दो साल दे दो, मेरे पास बीएड की डिग्री है, फिर मै कमाऊंगी तो आपका बोझ भी हल्का हो जायेगा “।
“बस!! अब चुप कर, मैंने और सुरेखा ने फैसला कर लिया है, तेरी शादी उसी लड़के से होगी और अब तुझे जो भी करना है, अपने घर जाकर करना, अब हमारे
सिर से तो बोझ उतरें”।
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भाग -2
मेरी ननदें मेरे लिए बोझ नहीं है ( भाग -2) – अर्चना खंडेलवाल : Moral stories in hindi