मेरी गुरूर है मेरी सास!-Mukesh Kumar

रोजाना की तरह आज भी मैंने बच्चों और पति को नाश्ता दे कर बच्चो को स्कूल और पति को जॉब पर भेज दिया था। उसके बाद मैं कुछ देर अपने बालकनी में थोड़ी देर बैठती थी वहाँ पर ठंडी ठंडी हवा आती थी तो बहुत अच्छा लगता था। बालकनी में बैठे हुए रोजाना में एक आंटी को जॉब करने जाते हुए देखा करती थी और यह भी देखती थी कि घर से निकलने से पहले उनके घर के दरवाजे के पास एक बूढ़ी अम्मा सोई रहती थी और रोजाना आंटी उनके पैर छूना नहीं भूलती थी।

मैं रोज यह सोचती थी उनके घर में सारे लोग जॉब पर जाते हैं उनके पति का भी एक अच्छा खासा जॉब है फिर भी आंटी जॉब करती हैं। और एक मेरे पति हैं जो बोलते हैं तुम जॉब करके क्या करोगी आखिर मैं तो कमाता हीं हूं। घर मे मां के सेवा करने और बच्चे को पालने वाले के लिए भी तो कोई चाहिए। हम इतने पैसे कमा कर क्या करेंगे जब हमारे बच्चे ही किसी लायक नहीं हो पाए। आंटी को देख कर मुझे कहीं से भी ऐसा नहीं लगता था कि आंटी के बच्चे नालायक हो वह भी अच्छे पद पर जॉब करते थे। 



मन में यह सवाल आता था कि आखिर आंटी ने भी तो जॉब करते हुए ही अपने बच्चे पाले होंगे। मेरे मन में ऐसे ही कई सारे सवाल उमड़ते रहते थे। एक दिन की बात है संडे का दिन था हम पार्क में बैठे हुए थे और वहीं  पर आंटी भी आकर बैठ गईं, फिर हम दोनों में बातें होने लगी तो मैंने बातों-बातों में आंटी से पूछ ही लिया कि आंटी आपके घर में तो सब कोई अच्छा खासा कमा लेता है, फिर भी आप जॉब करने क्यों जाती हैं? आपको जॉब करने की क्या जरूरत है? यह सुनकर आंटी पहले तो बहुत खिल खिलाकर हंस पड़ी। उसके बाद बोली, “चलो आज मैं बताती हूं कि क्यों मैं जॉब करती हूँ।” ऐसे ही बताते बताते आंटी अपने पुराने दिनों की बातें मुझको बताने लगी।

“मै नई-नई शादी करके ससुराल आई थी शादी के कुछ दिनों बाद मैं जैसे ही किचन में गई तब तक मेरी सास आकर दरवाजे पर खड़ी हो गई, बहु तुम्हें किचन में नहीं जाना है मैं भी हड़बड़ा गई मेरी सास ऐसा क्यों बोल रही हैं, मैंने कौन सी गलती कर दी जो मुझे मेरी सास ने किचन मे जाने से रोक दिया।

उसी समय मेरी सास ने एक SBI बैंक का पी ओ का फॉर्म निकला हुआ था उन्होने मेरे हाथों में पकड़ाते हुए कहा कि बेटी इसे भर दो। मैंने बोला यह क्या है ? तो मेरी सासु माँ बोली आज से घर का कोई काम नहीं करोगी तुम्हें बैंक की तैयारी करनी है तुम्हें बैंक में मैनेजर बनना है।

यह सब बातें मेरी समझ से बिल्कुल ही बाहर हो रही थी मैं समझ नहीं पा रही थी कि आखिर हो क्या रहा है, फिर मेरा हाथ पकड़ कर वही सोफ़े पर सासु माँ ने बैठा दिया और उन्होंने बोला बेटा अगर मुझे तुमसे खाना ही बनवाना होता तो मैं क्या इतनी पढ़ी लिखी बहू इसलिए ढूंढ कर लाई हूं कि उसका जीवन सिर्फ खाना बनाने और बर्तन धोने में निकल जाए।

मैं चाहती हूं तुम जॉब करो और बैंक में मैनेजर बनो, मैंने अपनी सासू मां से आखिर पूछ ही लिया कि मम्मी मुझे बैंक में मैनेजर ही क्यूँ बनवाना चाहती हो और कोई जॉब क्यों नहीं, फिर मेरी सासू मां ने बताया कि बहू पता नहीं क्यों बैंक का मैनेजर बनना मेरा शुरु से ही सपना रहा है।

मैं अपने कॉलेज के दिनों में इसकी तैयारी भी शुरू की थी लेकिन मैं छोटे शहर मे रहती थी वहां पर कोई भी तैयारी करने का साधन नहीं था और मेरे माता पिता भी इतने सक्षम नहीं थे कि वह दूर शहर में मुझे कोचिंग करने के लिए भेज दे।



फिर मैंने उस वक्त तो  अपने सपने का गला घोट दिया लेकिन जब मेरी शादी हो गई तो मैंने सोचा कि अगर मेरी बेटी पैदा होगी तो मैं उसे जरूर बैंक की तैयारी करवाऊंगी और उसे मैनेजर बनाऊंगी। किस्मत को यह मंजूर नहीं था हमारी कोई बेटी नहीं हुई बस एक बेटा विनय ही हुआ फिर मैंने उसी दिन डिसाइड किया कि कोई बात नहीं बेटी नहीं है तो क्या बहू तो आएगी और मैं अपना सपना पूरा करूंगी। वह बैंक का मैनेजर बन जाएगी उस दिन मुझे लगेगा अपने आपको कि मैं मैनेजर बन गई और तब से यह सपनें अपने दिल के किसी कोने छुपा रखा था।

तुम्हें देख कर मुझे पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि तुम जरूर मैनेजर बन सकती हो। फिर क्या था मैंने फॉर्म फिलअप किया और सासु माँ ने मेरे पतिदेव विनय को को फॉर्म जमा करने के लिए पोस्ट ऑफिस में भेज दिया। फिर क्या था अगले दिन ही शहर के एक नामी कोचिंग संस्थान में मेरा दाखिला करवा दिया गया।

रोजाना सुबह जैसे ही मै कोचिंग जाने के लिए तैयार होती मेरी सासू मां मेरा नाश्ता तैयार करके टेबल पर रख देती थीं और ऐसे में धीरे-धीरे मेरी कोचिंग समाप्त हुआ और मैं पहले ही प्रयास मे में बैंक की नौकरी पा गई थी।

घर में सब कुछ अच्छा हो रहा था तब मेरे पति का भी मुझे बहुत ही सपोर्ट था मुझे कभी भी किसी भी चीज की चिंता नहीं होती कि मेरे बच्चे कैसे रहेंगे स्कूल से आएंगे तो खाना कौन खिलाएगा। यह सब सारी चीजें मेरी सासू मां कितनी अच्छी तरह से कर लेती थी कि मुझे कभी भी इन बातों की चिंता ही नहीं होती थी और मेरे पति भी कभी भी किसी बात के लिए मना नहीं किया अगर मैं कभी ऑफिस से लेट भी आती थी तो कभी भी यह नहीं पूछते थे कि तुम आज लेट क्यों आए।” आंटी की यह बातें सुन मैंने मन ही मन सोचा काश सबकी सासू मां ऐसे ही होती है, सबके पति ऐसे ही सपोर्ट करते।



फिर देखते ही देखते सूरज ढलने लगा आंटी बोली चलो घर चलते हैं फिर शाम होते ही हम घर चले आए। उस दिन के बाद पता नहीं क्यों मेरा भी मन घर में नहीं लगता था मुझे भी ऐसा लगने लगा कि आखिर मुझे इतनी सारी डिग्री लेने का क्या फायदा मैंने अपनी पढ़ाई किस लिए की।

मैंने सोचा आज मेरे पति विकास जैसे ही घर पर आएंगे मैं उनसे अपनी जॉब के लिए बात करूंगी। लेकिन पता नहीं क्यों मैंने जॉब करने की बात कही ही नहीं। क्योंकि मैंने जब कभी जॉब की बात करी है विकास बिल्कुल ही नाराज हो जाते हैं उनको बिल्कुल भी पसंद नहीं है मेरा घर से बाहर जाना।

आज मेरी जैसे ही ना जाने कितनी औरतें अपने सपनों का अपने पति और बच्चों के लिए गला घोंट देती हैं। अगर आप मेरी बात से सहमत हैं तो अपनी राय जरूर रखें।

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