मेरी दुनिया है तुझ में कहीं – डॉ. पारुल अग्रवाल

 कंपनी की तरफ से नव वर्ष की पूर्व संध्या पर पार्टी थी,सभी कर्मचारी आमंत्रित थे। डीजे पर सबका ही पसंदीदा गाना ” जब कोई बात बिगड़ जाए” बजाकर सभी को कपल डांस के लिए स्टेज़ पर बुलाया गया था।

इसी  बहाने समय बिताने के लिए बेस्ट डांसिंग कपल भी चुना जाना था। तन्वी और उसके पति अनिकेत का ये पसंदीदा गाना था। इस गाने की धुन पर दोनों सब कुछ भूलकर एक दूसरे में खोकर डांस करने लगे। वो दोनों तो डांस करते करते दूसरी दुनिया में ही पहुंच गए थे। 

उनकी तंद्रा तब टूटी जब बेस्ट कपल के लिए उनका नाम पुकारा गया। उन्होंने खुशी-खुशी अपना पुरुस्कार लिया। उस दिन पूरी पार्टी में उन दोनों की जोड़ी चर्चा का विषय बनी रही। अधिकतर लोगों ने उन दोनों की तारीफ करते हुए कहा की शादी के इतने सालों के बाद भी उन दोनों का प्यार आज भी नए शादीशुदा जोड़ों की तरह तरोताज़ा है।

इस तरह के खूबसूरत शब्दों ने तन्वी के गालों की लालिमा को और भी बढ़ा दिया, तभी 12 बजने की घोषणा हुई और सब एक दूसरे को नववर्ष की शुभकामनाएं देते हुए विदा हुए।

घर आकर तन्वी की आंखों से नींद बिल्कुल गायब थी। दोनों बच्चे और अनिकेत तो थकान के कारण आते ही सो गए। पर तन्वी के दिमाग में यादों का झरोखा जिसमें उसने जिंदगी की धूप और छांव दोनों को अनुभव किया था,चलचित्र की भांति चलने लगा।

असल में ये दोनों की ही दूसरी शादी थी। तन्वी के पति एक दुर्घटना में चल बसे थे और अपने पीछे छोड़ गए थे,तन्वी और उसके दो साल के बेटे चिरायु को। ऐसा ही कुछ हुआ था अनिकेत के साथ, उनकी पत्नी भी बेटी रिद्धि को जन्म देते समय चल बसी थी। असमय जीवन साथी के जाने से दोनों ही टूट गए थे बस किसी तरह बच्चों के लिए जिंदा थे।

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 पत्नी के जाने के बाद बेटी की ठीक से देखभाल के लिए अनिकेत अपने माता-पिता के साथ रहने आ गए थे, जो तन्वी के ही पड़ोस में रहते थे। एक बार अनिकेत की माताजी अस्वस्थ थी।वो अचानक बेहोश होकर गिर गई थी, उस समय अनिकेत काम के सिलसिले में कही बाहर थे। घर में रहने वाली नौकरानी ने तन्वी के घर जाकर मदद मांगी थी।

तब तन्वी ने अपनी दिक्कतें भुलाकर उनकी बहुत मदद की थी और उस बिन मां की बच्ची को अपने बेटे के समान दुलार दिया था। बस उसका ये रूप ही अनिकेत की माताजी को आखों में बस गया था, दूसरी तरफ उनको अपने अब ज्यादा दिन जिंदा रहने की भी उम्मीद नहीं थी इसलिए वो अनिकेत का घर संसार अपने सामने बसते हुए देखना चाहती थी।

उन्होंने किसी तरह तन्वी के घर वालों से बात करके अनिकेत और तन्वी का चट मंगनी पट विवाह करवा दिया था।

अनिकेत और तन्वी को अपने घरवालों के सामने झुकना पड़ा था। पर तन्वी कहीं ना कहीं इस रिश्ते को लेकर बहुत असुरक्षित महसूस करती थी।

उसको लगता था कि वो तो एक औरत है, वो तो उस बिन मां की बच्ची को दिल से अपनाएगी पर अनिकेत तो पुरुष है,उसके लिए उसके बेटे को अपनाना आसान नहीं होगा। इसी कशमकश में जिंदगी आगे बढ़ रही थी। पर तभी ऐसा कुछ हुआ कि तन्वी के मन से संशय के बादल छंट गए। असल में घर पर एक छोटी सी पार्टी थी।

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वहां अनिकेत के चाचाजी जिनको ये लगता था कि तन्वी ने अनिकेत को अपने जाल में फंसाकर शादी की है और इस बात को लेकर उन्होंने तन्वी और उसके छोटे से बेटे को सबके सामने कुछ भला बुरा बोल दिया था।

तन्वी तो कुछ कह नहीं पाई थी पर अनिकेत ने एकदम से आकर अपने चाचाजी का ये कहकर मुंह बंद कर दिया था कि खबरदार अगर किसी ने मेरी पत्नी और बेटे के खिलाफ कुछ भी बोला तो मेरे से बुरा कोई नहीं होगा। बस तभी से अनिकेत के लिए तन्वी के दिल में जगह बननी शुरू हो गई थी। 

इस तरह और भी कई बातें हुई जिससे तन्वी और अनिकेत एक दूसरे की ढाल बनकर खड़े रहे। जीवन की राह और समझौते दोनों के लिए मुश्किल थे पर एक-दूसरे के साथ ने सब आसान कर दिया था। पति-पत्नी से पहले दोनों एक दूसरे के अच्छे दोस्त बने और फिर जीवन में आगे बढ़े।

दोनों बच्चों में भी सिर्फ 2 साल का अंतर था। दोनों बच्चे का आपसी प्यार देखकर कोई भी नहीं कह सकता था कि दोनों सगे भाई-बहन नहीं हैं। त्यौहार के दिन दोनों की शरारतों से घर गुलज़ार रहता है।

आज सबकी बातों सुनकर और यादों के झरोखे में चक्कर लगाने के बाद तन्वी भगवान से अपने सुंदर सी फुलवारी को ऐसे ही बनाए रखने का आर्शीवाद मांगती है। ये भी सोचती है कि शायद यही जिंदगी है जिसमें कभी धूप और कभी छांव चलते ही रहते हैं।

एक के बिना दुसरे का कोई अस्तित्व नहीं है जैसे अनिकेत और उसका एक दूसरे के बिना नहीं है। तन्वी ये सब सोच ही रही थी तभी उसकी निगाह घड़ी पर चली गई।

देखा तो रात के चार बज गए थे। अब वो भी यादों की दुनिया से बाहर आकर सोने की तैयारी करती है और अनिकेत की तरफ देखते हुए मन ही मन गुनगुनाती है मेरी दुनिया है तुझ में कहीं।

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी?अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। धूप और छांव तो जिंदगी का हिस्सा हैं। जैसे बिना गम को सहे खुशी का अनुभव नहीं हो सकता, ऐसे ही बिना धूप के छांव की शीतलता का आनंद नहीं लिया जा सकता। यही है ज़िंदगी,थोड़ी खट्टी और थोड़ी मीठी।

#कभी धूप कभी छांव 

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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