मेरी बिटिया – निभा राजीव “निर्वी”

“वाव पापा !! क्या सच में हम गांव जा रहे हैं…. कितना मजा आएगा…. कितने दिन हो गए सब से मिले हुए…. दादू, दादी मां, चाचा, चाची और सब भाई बहन… सबसे मिलूंगी और खूब सारी मस्ती करूंगी सबके साथ… मेरी गर्मी की छुट्टियां तो खूब मजे से कट जाएंगी….” मार्शल आर्ट की कक्षा से अभी अभी वापस आई रिद्धिमा खुशी से उछल पड़ी ।

“अरी, बस कर 11वीं में पहुंच गई है और लक्षण पांच साल की बच्ची की तरह हैं।” मां ने प्यार भरी झिड़की लगाई।

“पापा… देखो ना… मां तो ढंग से खुश भी नहीं होने देती.”……रिद्धिमा ने बुरा सा मुंह बनाकर कहा तो सब को हंसी आ गई।

            रिद्धिमा के पिता का गांव में संयुक्त परिवार था, जहां उनके मां-बाप और छोटा भाई अपने परिवार के साथ रहते थे। गर्मी की छुट्टियों में रिद्धिमा अपने मां बाप के साथ गांव चली जाती थी। एक रात की रेल यात्रा थी।पर पिछले साल महामारी की वजह से नहीं जा पाई। इसलिए इस बार वह गांव जाने के लिए बहुत ही उत्साहित थी।

                 नियत दिन पर वे लोग  गांव के लिए निकल पड़े और दूसरे दिन सुबह गांव पहुंच गए। सब ने बहुत गर्मजोशी से उनका स्वागत किया और हाथों हाथ लिया।नहा धोकर तरोताजा होकर नाश्ता करने के बाद सभी बातें करने बैठ गए। तो बातों बातों में पता चला कि आजकल गांव में डाकुओं का प्रकोप बहुत बढा हुआ है। आए दिन किसी न किसी के घर में लूटपाट की घटना हो जाती है। जिसने भी विरोध करने का प्रयास किया, वह अपने प्राणों से हाथ धो बैठा। इसलिए अंधेरा होने से पहले सभी अपने अपने घरों में घुसकर बंद हो जाते हैं।यह सब तो सुनकर ही आतंक सा होने लगा। खैर बात आई गई हो गई।

            दो तीन दिन तो किस तरह बीत गए, कुछ पता नहीं चला ।सारा दिन इधर-उधर घूमना, आस-पड़ोस के लोगों से मिलना, बातें करना, यही होता रहता था। गावों में यही तो विशेषता है कि आस-पड़ोस के लोग भी अपने ही होते हैं। सब मिलकर एक परिवार की तरह रहते हैं। सब के सुख-दुख एक होते हैं।

                 उस दिन भी सारा दिन घूमने के बाद रिद्धिमा शाम को घर आ गई और फिर घर का दरवाजा बंद कर लिया गया। बातें करते-करते सबको चाय पीने की इच्छा होने लगी। रिद्धिमा ने उछल कर कहा “- चाय मैं बनाऊंगी, वो भी स्पेशल वाली, रिद्धिमा मार्का…” सब हंस पड़े।

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           रिद्धिमा चाय बनाने रसोई में चली गई और बाकी सब वापस बातें करने में तल्लीन हो गए। अचानक गोली की आवाज पर सब दहल उठे। देखा तो सामने तीन डाकू खड़े थे, जिन्होंने अपने चेहरे पर नकाब पहन रखा था, उनके हाथों में बंदूकें थीं और आतंक फैलाने के लिए यह हवाई फायर किया था। शायद घर के दरवाजे की सांकल ढीली रह गई होगी,इसलिए वे लोग अंदर आने में सफल हो गए।

उन्होंने बंदूक की नोंक पर घर के सभी लोगों को एक जगह एकत्रित कर दिया, और फिर चाची से कहा कि वह घर का सारा कीमती सामान उठाकर ले आए।  रिद्धिमा रसोई से सांस रोके यह सारा दृश्य देख रही थी और मन ही मन सब को बचाने का कुछ उपाय सोच रही थी। मन किया कि रसोई से ही छुप कर पुलिस को फोन कर दे, मगर उसका फोन भी बाहर वाले कमरे में ही छूट गया था।

वह रसोई की तख्त से सटकर कुछ उपाय सोचने लगी। उसके दिमाग में एक योजना आई पर तभी उसके हाथ से लग कर माचिस की डिब्बी नीचे गिर पड़ी। खटका सुनते ही उन तीनों ने पीछे मुड़कर रिद्धिमा को रसोई में देखा। उसे देखते ही उनमें से एक ने कड़कती आवाज में कहा “- ए छोकरी, तू वहां क्या कर रही है….. चल बाहर निकल और यहां आकर सब के साथ खड़ी हो जा… चल, जल्दी बाहर निकल… और हां…ज्यादा होशियारी करने की जरूरत नहीं है….”

               रिद्धिमा डरी सहमी सी कांपती हुई रसोई से बाहर आई और उन तीनों के सामने आ खड़ी हुई। वे तीनों कुछ बोलते इससे पहले ही अचानक रिद्धिमा का हाथ हवा में लहराया और उसकी मुट्ठी खुल गई। ढेर सारा मिर्ची पाउडर उन तीनों की आंखों में जा चुका था। तीनों मिर्ची की जलन से बिलबिला उठे और उनके हाथों से बंदकेँ छूट गईं और वे अपनी आँखें बेचैनी से चीखते हुए मलने लगे।

उनका संतुलन बिगड़ते ही रिद्धिमा ने मार्शल आर्ट का प्रयोग करते हुए उन तीनों को धराशाई कर दिया। अवसर पाते ही रिद्धिमा और उसके भाई-बहन रस्सी ले आए और उन तीनों को घर के बीच बने खंभे के साथ बांध दिया।  रिद्धिमा के पापा ने तब तक पुलिस को फोन कर दिया था।

कुछ ही देर में पुलिस वहां आ पहुंची और उन तीनों को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस के जाने के बाद सब ने चैन की सांस ली और सब ने रिद्धिमा को ढेर सारी शाबाशी दी। डाकुओं के पकड़े जाने की खबर सुनते ही पूरे गांव में खुशी की लहर दौड़ गई। सभी लोग एक सुर में रिद्धिमा की समझदारी और उसके साहस की भरि भूरि प्रशंसा कर रहे थे। रिद्धिमा के परिवार की खुशियों का पारावार न था।

               दूसरे दिन रिद्धिमा के सम्मान में सभी गांव वालों ने मिलकर एक जलसा रखा। उसे फूल मालाओं से लाद दिया गया। रिद्धिमा के परिवार की छाती गौरव से फूल गई। रिद्धिमा के पिता जलसे के बीच बैठी फूल मालाओं से लदी रिद्धिमा के पास पहुंचे भींगी आंखों के साथ प्यार से उसका माथा चूम लिया और अस्फुट स्वर में बोल पड़े “- रिद्धिमा, तू हमारा अभिमान है बिटिया…हमारी बेटी…हमारा स्वाभिमान!!!”

                रिद्धिमा ने झुककर उनके चरण छू लिए और उनके सीने से लग गई।

निभा राजीव “निर्वी”

सिंदरी धनबाद झारखंड

स्वरचित और मौलिक रचना

 

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