मेरी भी तो माँ थी – विनय कुमार मिश्रा : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : माँ को इस दुनिया से गये आज बीस दिन हो आये हैं। मगर ऐसा एक पल नहीं गुजरा कि उनकी याद ना आई हो। कहने को इस घर में अब दो लोग हैं। मेरे अलावा मेरी एक छोटी बहन।पर उसका होना ना होना एक ही बराबर है। दिखने में माँ पर गई है पर दिमागी रूप से बिलकुल कमजोर है।ना किसी बात पर हँसती है ना रोती है।

माँ की मौत पर भी इसके आँसू नहीं निकले थे।जब जब सामने देखता हूँ तो माँ की याद और भी आने लग जाती है और ये भी लगने लगता है कि मैं कैसे इसे अब पूरी ज़िंदगी सम्भाल पाऊंगा। इसे किसी भी बात को सिखाने में बहुत वक़्त लगता है। माँ ने बहुत गलत वक़्त पर साथ छोड़ा है।

आज हफ्तों बाद मैं काम पर जाने के लिए जैसे ही दरवाजे पर आया माँ की याद ने कुछ पल वहीं रोक लिया। माँ के जाने के बाद घर ही नहीं जैसे ज़िंदगी ही खाली और सूनी हो गई है। माँ रोज मुझे घर से निकलने से पहले दही और गुड़ खिलाती थी। कभी जल्दी में होता तो मैं ऐसे ही निकलने लगता पर माँ बिना खिलाए मुझे भेजती ही नहीं थी। मैं थोड़ा चिड़चिड़ा भी हो जाता था उस वक़्त पर माँ..

“क्या माँ तुम रोज रोज ये सब, क्या हो गया किसी दिन नहीं खा कर निकला तो”

“आदत हो गई है बेटे, ऐसे ही चला जाता है तो लगता है कुछ छूट सा गया”

याद कर आँखे भीग आई। रो कर कहना चाहता हूँ कि अब मुझे भी आदत हो गई है माँ तेरे उस गुड़ की। पर ये ना अब सुनने के लिए माँ है ना माँ के हाथों का वो गुड़। मैं इन्हीं यादों के साथ निकलने ही वाला था कि पीछे से आवाज आई

“भैया! पहले ये खा लो”

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देखा कि मेरी छोटी बहन उसी कटोरे में माँ की ही तरह गुड़ और दही हाथों में लिए खड़ी थी। मैं आश्चर्य से उसे देखने लगा।उसे देख एकबार को लगा जैसे माँ ही है। उसने दरवाजे पर आकर माँ की ही तरह मुझे गुड़ खिलाया और

“अच्छे से जाना भैया, और घर जल्दी आना”  मैं उसके चेहरे को ध्यान से देख रहा था अब भी कोई भाव नहीं थे पर आँखों के कोर थोड़े भीगे हुए थे।

“तुमने ये सब कहाँ से..सीखा .रे…छोटी..”

“वो मेरी भी तो माँ थी ना..भैया!”

मैं उससे लिपट कर रो पड़ा। लग रहा था जैसे माँ कहीं गई ही नहीं.है.!

विनय कुमार मिश्रा

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