#बेटियां _हमारा _स्वाभिमान ,
बेटी,,, शब्द सुनते ही होठों पर मुस्कान आ जाती है, क्योंकि, मां का प्रतिबिम्ब होती है बेटी,,, जितना एक बेटे का,, परिवार में होना जरुरी है,, उतना ही परिवार को पूर्ण करने हेतु बेटी का होना जरुरी है,, पिता की शान है ,,, भाई की आन है बहन,,और मां की आत्मा का हिस्सा होती है बेटी ।
बेटी का होना,, किसी आशीर्वाद से कम नहीं,, बेटी ही परिवार के दिल की तरह है,, मां की सहेली,,, भाई की राजदार,, और पिता की विश्वसनीय साथी,,,
सारे त्योहारों की जान है बेटी,, बचपन में उसके नन्हें नन्हें पैरों की पायल,, घर में संगीत भरती है,, राखी हो या भाई दूज,,, बहन के बिना,, ये त्यौहार,, त्यौहार ही नहीं लगते,, भाई बहन की मीठी,, नोक झोंक,,, माता पिता के जीवन को अलौकिक प्रेम और पूर्णता से भरता है।
कन्या को देवी का दर्जा दिया गया है,, माता जगदम्बे का अंश हैं,, बेटियां,, आज मां दुर्गा के प्रतिरूप में बेटियों को ही उनके,, समकक्ष,, स्थान देकर,, उन्हें पूजा जाता है,, अतः पूजनीय हैं बेटियां।
आज की बेटी किसी भी छेत्र में कम नहीं,, मां दुर्गा की तरह,, दुष्टों का संहार करने वाली,,, मां लक्ष्मी की तरह,, धनार्जन करने वाली,,, और मां सरस्वती की तरह,,, अपनी बुद्धि का देश विदेश में डंका बजा,,, विजयी पताका,,, फहराने वाली है।
मेरी बेटी,, जो सच में मेरे घर की रौनक है,, कुछ सालों से वो अपने ससुराल की रोशनी बनी हुई है,, आत्मा से जुड़ी हुईं है मेरी बिटिया,, न जानें कैसे,, मेरे मन की हर बात,,,, उसे ,,मालूम हो जाती है किस्मत ने उसे इंदौर के पास की ही ससुराल दी,,, जिससे समय समय,,पर उसका साथ हमें मिलता रहता है,, उससे दूरी का अहसास, पता नहीं चलता,,, अपने शहर की लीडिंग प्रेक्टिशनर है,, डेंटल सर्जन,,Dr Rupal Shrivastava,,,
दूसरी मेरी बेटी,,,मेरे घर कुछ सालों पहले आई,,, मेरी बहू, प्रोफेसर, अर्पिता,, सक्सेना ,,, बेटी की कमी को उसने पूरा कर दिया ,,,साथ ही मेरे घर की,, रौनक बनी और मेरा दांया हाथ भी,,, उसके बिना,, अपने को अधूरा पाती हूं मैं।
इन दोनों बेटियों ने भी मुझे नन्हीं नन्हीं बेटियां,, दी,,, आन्या की दादी और सिया की नानी,,
अव्यान और शौर्य की हमेशा शिकायत रहती है,,, मुझसे,,, बेटों पर आप क्यों नहीं लिखती,, बेटियों से ही ज्यादा प्यार क्यों???
उनके गुस्से पर भी प्यार आता है ,, क्योंकि, वो भी तो अपनी बहनों से कुछ पल भी अलग नहीं रह पाते,, मेरे घर पर दीवाली,, दशहरा उसी दिन मना लिए जाते हैं,, जब हमारा पूरा परिवार,, एक साथ होता है । मेरी बेटियां,, मेरी जान हैं,, उन सबके बिना,, अपने को अधूरा पाती हूं मैं।
सच कहूं तो बेटी का होना किसी आशीर्वाद से कम नहीं,, इसीलिए कहते भी हैं……
खुशियों का संसार है बेटी,
प्रेम का आधार है बेटी,
शीतल सी एक हवा है बेटी,
सब रोगों की दवा है बेटी,
ममता का सम्मान है बेटी,
हर घर की आन है बेटी।
विवाह के बाद, नए रिश्तों को तन मन धन,, से स्वीकारती हैं बेटियां,, दोनो कुल की मर्यादा,प्रतिष्ठा,, को संभालती हैं ,, परिवार तभी संपूर्ण है,, जब गृहलक्ष्मी ,, शिक्षित हो, स्वस्थ हो,, हमारी बेटियां बड़ी होकर पत्नी और मां बन,, परिवार को जोड़ती हैं,, सच तो ये है,, वो,, जन्मदात्री ही नहीं,, चरित्र निर्मात्री
भी हैं ।
प्रीती सक्सेना
इंदौर