मेरी बेटी वारिस ही नहीं, मेरा गुरूर है” -सुधा जैन

संजीव की शादी को 7 साल हो गए थे ,पर संजना मां नहीं बन पाई। चिकित्सीय परामर्श, देवी देवता ,पूजा ,पाठ सब कुछ कर लिया पर कुछ नहीं हुआ ।संजीव की मां बहुत चिंतित थी ,सोचती थी मेरे एकलौते बेटे के यहां संतान नहीं होगी तो वारिस कौन बनेगा?

एक दिन संजना ने कहा” क्यों ना हम एक बेटा गोद ले ले “

संजीव ने सोचा “यह ठीक है”। उन्होंने अनाथालय से संपर्क किया तो पता चला कि अगर लड़की चाहिए तो तुरंत मिल सकती है ,पर लड़के के लिए इंतजार करना पड़ेगा, क्योंकि कई लोगों की अर्जी लगी है।

एक दिन संजीव अनाथालय जाते हैं, तो देखते हैं कि तीन-चार साल की एक प्यारी सी गुड़िया खड़ी है, और उन्हें देखकर उनके पास आ गई और उन्हें” पापा पापा” कहने लगी… क्या पता उसकी आवाज में क्या जादू था.. उन्होंने उसे गोद में उठा लिया। अनाथालय में सारी प्रक्रिया पूरी की, और उसे घर ले आए।

संजना और संजीव की मां दोनों नाराज हो गए.. क्योंकि दोनों की इच्छा थी कि बेटे को गोद लिया जाए.. उन्होंने संजीव से कहा कि हमें तो हमारे वारिस की कमी पूरी करनी है और आप तो बिटिया ले आए ” संजीव  ने अपनी पत्नी और मां को समझाया कि ” वारिस का मतलब होता है ,वहन करने वाला… बच्चों को माता-पिता का वारिस इसलिए कहते हैं क्योंकि वे उनके संस्कारों का ,अधिकारों का कर्तव्य का वहन करते हैं.. जरूरी नहीं हूं कि यह काम लड़के ही करें.. लड़कियां भी कर सकती है… और मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि मेरी यह बात सत्य साबित हो”

 संजीव बिटिया से खूब प्यार करते .. उसका नाम रूही रखा अपना सारा स्नेह उस पर उंडेला,  पर संजना और संजीव की मां क्या पता क्यों, उस बिटिया  को कभी भी उतना प्यार नहीं दे पाए जितना प्यार उसे मिलना चाहिए था।


वक्त गुजरता है ..रूही पढ़ने में बहुत अच्छी  है.. मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लिया और डॉक्टर बन गई। बड़ी हो गई थी …समझने भी लगी थी.. बुरा भी लगता था ..क्या पता मम्मी और दादी मुझे इतना प्यार क्यों नहीं करते ?लेकिन अपने पापा पर हमेशा गर्व होता । मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उसी के साथ पढ़ाई कर रहे  तन्मय  को उसने अपना हमसफर बनाने का फैसला किया। पापा ने सहर्ष अनुमति दी। मम्मी ने शादी से जुड़ी सारी रस्में निभाई .. पर एक आंतरिक खुशी की कमी रूही ने हमेशा महसूस की।

वह तन्मय के साथ मुंबई आ गई। पापा के साथ उसकी प्यार भरी बातें हमेशा होती रहती। एक दिन पापा ने घबराते हुए फोन लगाकर बोला”

रूही जल्दी आ जाओ, मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है”

रुही और  तन्मय फ्लाइट से अपने शहर आते हैं ।रूही की मम्मी को दिल का दौरा पड़ा था, और वह जानी मानी हर्ट स्पेशलिस्ट थी। उसने तुरंत वहां के डॉक्टरों से परामर्श करके चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध की.. और तीन दिन  तीन रात तक  मम्मी की देखभाल करती रही। मम्मी की तबीयत में जब थोड़ा सुधार हुआ.. तब मम्मी ने रूही को अपने पास बुलाया.. उसके हाथों को अपने हाथों में लिया और कहां” बेटी मुझे माफ कर दो, मैं कभी भी तुम्हें अपने हिस्से का प्यार नहीं दे पाई, “लेकिन मुझे बड़ा गर्व है कि तुम मेरे परिवार की सबसे प्यारी वारिस हो” और मेरा और पापा का सबसे बड़ा गुरुर हो”।

दोनों मां बेटी एक दूसरे की आंखों में आंखें डाल कर देख रही थी, और मुस्कुरा रही थी। पास खड़े संजीव मां बेटी के मिलन को देखकर बहुत खुश हो रहे थे और दादी भगवान के आगे हाथ जोड़कर कह रही थी.. सचमुच में भगवान आपने मुझे ,और मेरे परिवार को वारिस दे दिया।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!