आधुनिका राधिका की शादी एक रूढ़िवादी परिवार में हुई….. कुछ दिन तो शादी के बाद के रस्मों में निकल गए…..
सब मेहमान चले गए और राधिका – रमन हनीमून से वापस आ गए …. अब असली परीक्षा शुरू हो गई…. राधिका संपन्न घर की बेटी थी.।
थोड़ा बहुत खाना बना लेती थी पर यहाँ तो पूरा काम ही उसे सौंप दिया गया….
पहले दिन तो किसी तरह उसने खाना बनाया, पर कच्ची पक्की रोटी देख अनुभवी सास समझ गई की राधिका को खाना बनाना नहीं आता…..
.बस उन्होने सास वाले तेवर दिखने शुरू कर दिया…. बिचारी राधिका, शादी के नये अरमानों का खून होते देख जार – जार रोती और अपने को भी कोसती
काश माँ का कहना मान खाना बनाना सीख लिया होता … तो आज इतना सुनना ना पड़ता….
सास हर दिन एक नया काम पकड़ाती…. राधिका किसी तरह सास को खुश करने की कोशिश करती, पर अनाड़ी हाथों काम बिगड़ जाता….
और फिर राधिका की लानत- मलानत शुरू हो जाती…। एक दिन दुखी हो राधिका ने रमन से पूछा माँ मुझे ही क्यों इतना डांटती हैं….
क्योकि तुमको काम नहीं आता वो चाहती हैं तुम्हे सब काम आ जाये….. पर राधिका विश्वास नहीं कर पाई रमन की बात पर…
दिन बीतते गए .. राधिका हर काम में परफेक्ट होती गई … कच्ची पक्की रोटी बनाने वाली खाना बनाने में पारंगत हो गई…
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इतना स्वादिष्ट खाना बनाने लगी की लोग ऊँगली चाटते रह जाते…… अब उसका हुनर सबको दिखने लगा… राधिका का भी आत्मविश्वास वापस लौट आया …
एक दिन सासू माँ के सिर में तेल लगा रही थी सासुमां बोली राधिका तुमको मै बहुत डांटती थी क्योकि मै चाहती थी तुम हर चीज में महारत हासिल करो…..
जब तुम्हारी शादी के लिए तुम्हारे पिता जी आये थे तो उन्होने कहा था की मेरी बेटी सर्वगुण संपन्न हैं…. पर जब तुम यहाँ आई तो मैंने देखा तुम खाना भी ठीक से नहीं बना पाती हो….
उसीदिन मैंने तय कर लिया की तुम्हे सर्वगुण संपन्न बहू जरूर बनाउंगी….
और आज तुम सर्वगुण संपन्न बहू हो।… क्या हुआ जो तुम अपने उस घर से नहीं सीख कर आई….
जो वहां नहीं सीखा वो यहाँ सिखाया…. ये सच हैं तुम कामों में सर्वगुण नहीं थी पर संस्कारों से तुम संपन्न थी….
आज तुम कामों में भी सर्वगुण संपन्न हो गई…. सोने में सुहागा हो गया… बस तुझे मैंने बहुत डांटा…. सासुमां की बात राधिका भावुक हो गई और सासुमां के गले लग गई
— संगीता त्रिपाठी