मेरी बेटी रश्मि पियुष को गुजरे पंद्रह दिन हो गये ।उसने प्रतिलिपि पर कयी कहानियाँ लिखी।उसी के याद में आप सभी पाठकों से श्रद्धांजलि की आशा करती हूँ ।मेरी अवस्था भी ठीक नहीं है फिर भी—-। नन्ही सी कली मेरे आँगन में आई
तो खुशियाँ भर आई हमारे जीवन में ।पापा की तो बहुत ही दुलारी थी वह ।नर्स ने कहा बेटी हुई है ।एक दम दुबली पतली प्यारी सी थी वह ।और सबकी आखों का तारा बन गई ।देखते देखते बड़ी होती गई वह ।बहुत शान्त, शालीन,
समय पर शिक्षा पूरी हुई ।पापा को उसकी शादी की चिंता हुई ।अच्छा घर वर देख कर, थोड़ा बहुत दान दहेज देकर बेटी को विदा किया ।पति अच्छे थे ।लेकिन इतने अच्छे कि परिवार के सामने मुँह न खोलने की हिदायत दे दिया ।शान्त तो शुरू से थी ही ।अब और हो गई ।पापा के पास पैसे नहीं थे कि अधिक दान दहेज देते ।
वे सोचते मेरी बेटी के पास शिक्षा तो पूरी हैही।अब ससुराल में बात पीछे दहेज का ताना सुनाई देने लगे ।इसे तो कुछ आता ही नहीं, कोई तरीका नहीं जानती,इसे तो आंटा गुधना भी नहीं आता ।माँ बाप ने तो कहा बहुत होशियार है
सबकुछ जानती है पर मुझे तो ऐसा नहीं लगता ।फिर हुआ कि पढ़ाई की हो तो घर बैठने का क्या मतलब? उसने स्कूल में नौकरी ज्वाइन कर ली ।सुबह सारे काम खत्म करके स्कूल जाती और आकर घर वालों को गर्म खाना परोसती ।
तीन बजे से टयूशन पढाती ।शाम पांच बजे से नाशता तैयार करती।सभी को चाय भी अलग अलग चाहिए था ।फिर रात को खाने की तैयारी होती ।गर्मी में पसीने से तर बतर होती तो भी सूट या नाईटी की इजाजत नहीं थी।माँ बाप को बुरा लगेगा ।
।दो साल बाद बेटे का जन्म हुआ ।अपने माँ के यहाँ भेज दी गई “” पहला बच्चा माँ के यहाँ होता है “” जिंदगी की आपाधापी चलती रही ।पहले जन्म दिन पर उत्सव मनाने की बात चली तो कहा गया “” यहाँ यह सब नहीं चलता “” फालतू पैसे की बर्बादी है ।घर में कलर टीवी आया तो सुनाई देने लगे ।
कभी कलर टीवी देखा है? ससुराल में दो ननद और देवर थे।सबने कहा “” भाभी, दो नाव पर पैर न रखिएगा, गिरने का डर होता है ।” मायके को भूलना पडेगा ।” कैसे भूल जाऊं, जहां पली बढी, उसे कैसे छोड़ दूँ “”। समय बीता।देवर की शादी तय हो गयी ।
अब नयी बहू, सुन्दर, ठसके वाली ठहरी।विचार होने लगा था “” नयी बहु को कौन सा कमरा देना है “”” ननदो ने कहा कि भाभी का कमरा तो है ही “”। रश्मि का सामान हटा दिया गया ।वह दूसरे कमरे में आ गई ।थोड़ी दिन बाद ससुर जी ने कहा मैंने अपने लिए घर बनाया था ।
मुझे भी सुविधा चाहिए ।वह बैठक में चली गई ।अब कपड़े पहनने को भी उसे सुविधा नहीं थी ।जीवन चलता रहता है, चलता रहा ।मायके के बुराइयों का बोझ सिर माथे लेती रही ।भाभी कभी सिखाती ” इतना चुप कैसे रह लेती हो, सही बात रखो”” पर नहीं न जाने किस मिट्टी की बनी हुई है ।सतही रही ।फिर एक बीमारी में पति चले गये ।
बिल्कुल अकेले हो गई वह ।किससे अपना दुख बाँटे ।बेटे के शिक्षा के लिए सरकार ने मदद की ।दिन रात खटती रही ।बेटा खाने की कोई इच्छा जाहिर करता तो सुनाई पडता ” कभी खाया नहीं है क्या,पूरी कचौरी? देवरानी कहती
” आपने बेटे को बिगाड़ने का काम किया है ” बेटा मैट्रिक में गया ।मोबाइल की फरमाइश की।” मम्मी, आज कल मोबाइल जरूरी हो गया है “” फिर घर में हंगामा हो गया ।बेटे को बिगाड़ने का काम किया है ।घर वालों को जरा भी दया नहीं आती थी ।
बिना बाप का बच्चा ।घर बहुत बड़ा था ।इनके हिस्सों से घर का लोन चुकाया जाता ।लेकिन खाने के लिए माँ बेटे को एक मुक्त राशि चुकाना पड़ता ।बेटा इंजीनियर हो गया ।माँ के सपनो में पंख लग गए ।अब वह मेरी सारी खुशियाँ पूरी करेगा ।
नौकरी लगी तो लड़की वाले आने लगे।एक सुन्दर सी कन्या से ब्याह तय हो गया ।खूब धूम धाम से शादी हो गई ।फिर कमरे का सवाल हुआ ।नयी बहू कहाँ रहेगी ।रश्मि ने अपना कमरा खाली कर दिया ।
बेटा बहू तो अपने ही हैं ।उसके लिए सारी जिंदगी न्योछावर कर देगे।तीन तल्ले के मकान में रश्मि के लिए जगह नहीं थी शादी के पंद्रह दिन के बाद बेटा बहू नोयेडा चला गया रश्मि खुश थी।बारह साल इन्तजार किया ।अब बेटे के पास जायगी ।
जीवन में खुशियाँ आने को है ।कभी अपने मन मर्जी से जी ही नहीं पायी ।अब सुख बटोरेगी।अपने मन से एक तस्वीर भी नहीं लगा पायी घर में ।ताने उलाहना ही उसके जीवन का अंग बन गया था ।संयोग से माँ भी पोते के पास नोयेडा में थी।एक दिन घर वालों के विरोध के बावजूद भाई के साथ नोयेडा आ गयी ।घर वालों ने बात ही बन्द कर दिया ।फोन बंद कर दिया ।लेकिन तीन महीने में उसने जीवन जी लिया ।
भाभी के साथ सिनेमा, गयी, माॅल घूमने गयी ।अक्षर धाम घूमने गयी ।जो मन में आता बनाती, खाती।नये नये ड्रेस पहन लिया ।जीवन हंसी खुशी बीत रही थी कि सास के बीमार रहने की खबर मिली ।तुरंत वह रांची आ गयी ।घर वालों ने बात ही बन्द कर दिया था
अकेले अंधेरा कमरा में बैठी रहती ।कोई बोलने वाला नहीं था ।बेटे के पास रहना इतना बड़ा गुनाह हो गया उसके लिए? अगर सास गलत हो तो मान भी ले।लेकिन देवरानी को ऐसा ब्यवहार करने का हक किसने दिया ? फिर एक दिन सताइस अगस्त को मामूली सी पेट दर्द से वह चल बसी।
एक ही खयाल बार बार आता है उसे अस्पताल क्यो नहीं भर्ती कराया गया? मै माँ हूँ बहुत बेचैन हो गई हूँ ।कहाँ से लाऊं उसे?। हम दोनों कहानी और कविता लिखते ।आपस मे सारी बातें शेयर करते ।माँ बेटी और एक अच्छी दोस्त थी वह ।
आप सभी से निवेदन है उसके लिए दो शब्द लिखे ।ताकि उसकी आत्मा को शांति प्रदान करें ।क्या कहना चाहती हूं मुझे नहीं पता ।इतनी शान्त, सीधे चेहरे पर मुस्कान ।यही उसकी पहचान थी ।वह बेटे को बहुत प्यार करती थी तभी रश्मि के साथ पियुष लगा रखा था ।
उमा वर्मा