मेरी बेटी ने ही मुझे जख्म दिया – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

एक दिन रमेश जी को  पता चला कि उनकी बेटी ने कोर्ट में शादी कर ली है। उन्हें यह सुनकर गहरा आघात पहुंचा, लेकिन उन्होंने सोचा कि शायद उसने अपनी खुशी के लिए यह निर्णय लिया होगा। पिता का दिल हर दुख सहन कर सकता है अगर उसे यकीन हो कि उसकी संतान खुश है। रमेश जी को लगा कि उनकी बेटी ने अपनी मर्जी से, अपने भविष्य के लिए यह कदम उठाया है, लेकिन उन्हें तब नहीं पता था कि इस प्रेम विवाह के पीछे की सच्चाई क्या थी।

उनकी बेटी पिंकी ने अमन नामक एक लड़के से प्रेम विवाह किया था। अमन से वह काफी प्रभावित थी। अमन उसके लिए एक सपनों का राजकुमार था, जो हर बात में उसका ख्याल रखता, उसकी हर छोटी-बड़ी परेशानी में साथ देता। धीरे-धीरे पिंकी को अमन के साथ एक मजबूत भावनात्मक जुड़ाव महसूस हुआ, और उसने सोचा कि यही वह शख्स है जिसके साथ वह अपनी पूरी जिंदगी बिता सकती है। इसी विश्वास के चलते उसने घर से अलग जाकर कोर्ट में शादी करने का निर्णय लिया। अमन ने भी उसे अपने प्यार के जाल में फंसाकर उसे यकीन दिला दिया कि उनका साथ हमेशा के लिए है।

शादी के कुछ समय बाद अमन उसे अपने साथ लेकर इधर-उधर भटकता रहा, ताकि उनकी शादी के बारे में किसी को खबर न हो। पिंकी के लिए यह अनुभव नया था, उसने इसे अपनी नई शादीशुदा जिंदगी का हिस्सा मान लिया। लेकिन एक दिन जब अमन उसे अपने घर लेकर आया, तो पिंकी को एक सच्चाई का सामना करना पड़ा जिसने उसकी दुनिया बदल दी। उसे पता चला कि अमन असल में “आमिर” है और वह एक अन्य समुदाय से आता है, जिसके तौर-तरीके, रहन-सहन और जीवन के प्रति दृष्टिकोण उससे बिल्कुल अलग थे। यह बात जानकर पिंकी को गहरा धक्का लगा।

आसमान में उड़ने वाली वह प्रफुल्लित चिड़िया अब घायल हो चुकी थी और उसने जैसे ही सच्चाई का सामना किया, उसके सारे सपने बिखर गए। अमन ने उसके साथ जो छल किया था, उससे उसका मन टूट गया। अब उसे इस शादी का कोई अर्थ नजर नहीं आ रहा था। दो दिन में ही उसने महसूस कर लिया था कि वह उस माहौल में, उन मान्यताओं में अपने आपको कभी ढाल नहीं पाएगी। वहाँ वह अपने आपको अकेला और ठगा हुआ महसूस करने लगी थी। अमन के तौर-तरीके, खानपान और जीवन के प्रति दृष्टिकोण उसके परिवार से एकदम भिन्न थे, जो उसके लिए असहनीय थे।

पिंकी ने किसी तरह अपने पिता को अपनी हालत की खबर पहुंचाई। रमेश जी के दिल पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा। वे समझ नहीं पा रहे थे कि अब क्या करें। अपनी बेटी की हालत देखकर उनका दिल पसीज गया, लेकिन इस समय उनके पास कोई विकल्प नहीं था। उन्होंने ठान लिया कि वे अपनी बेटी को किसी भी तरह से इस स्थिति से बाहर निकालेंगे। वे सीधे अमन से मिलने गए, ताकि अपनी बेटी को इस बंधन से मुक्त करा सकें। अपने दिल में बेटी के लिए दर्द और उसकी मुक्ति की आस लेकर वे अमन के पास पहुंचे और उससे यह गुहार लगाई।

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रमेश जी ने अपनी बेबसी में आमिर से कहा, “मेरी बेटी ने तो मुझे जख्म दे ही दिया, लेकिन मैं यह नहीं समझ पा रहा कि मैं क्यों तुम्हारे पास इन जख्मों का इलाज ढूंढने आया हूँ। पिंकी को छोड़ दो, उसे मुक्त कर दो। अल्लाह का वास्ता है, उसे मेरी दया के लिए छोड़ दो। मैं इस शहर से दूर चला जाऊंगा, किसी दूसरी जगह उसे लेकर जाऊंगा। इस बूढ़े बाप पर रहम करो।”

आमिर उनकी बातों को सुनकर हंस पड़ा। उसे रमेश जी की यह बात बिल्कुल भी असर नहीं कर रही थी। उसने मुस्कुराते हुए कहा, “अब आप क्यों परेशान हो रहे हैं, आप तो हमारे रिश्तेदार बन गए हैं। अब आप हमारे घर के सदस्य हो गए हैं। आता-जाता रहना।” फिर उसने एक ताना मारते हुए कहा, “मुक्ति की बातें भूल जाओ, पिंकी अब मेरी बीवी है और उसका नाम अब आयशा होगा। बताइए, कैसा रहेगा यह नाम?”

रमेश जी के दिल पर जो पहले ही घाव थे, आमिर ने उन घावों को अपने तानों से और गहरा कर दिया। आमिर का यह रुख देखकर रमेश जी को अपनी मजबूरी का एहसास हुआ। उनके मन में गुस्सा और बेबसी का तूफान उमड़ पड़ा। लेकिन वे कुछ नहीं कर सकते थे। उन्हें बार-बार इस बात का पछतावा हो रहा था कि आधुनिकता की दौड़ में उन्होंने अपनी बेटी को शिक्षा तो दी, लेकिन उसे सही-गलत का फर्क नहीं सिखाया। वे सोचने लगे कि समाज में बेटियों को इतनी स्वतंत्रता देते समय कहीं न कहीं यह बात ध्यान में रखनी चाहिए थी कि संस्कार और परंपराओं की अहमियत को भी बनाए रखा जाए।

रमेश जी का दिल अब पूरी तरह से टूट चुका था। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि वे अपने इस दर्द और बेबसी को किसके साथ साझा करें। उन्होंने बेटी की खुशी के लिए उसका साथ दिया था, लेकिन बदले में उनकी बेटी ने उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाई थी। यह सोचकर उनका मन और भी ज्यादा दुखी हो गया कि उनकी बेटी ने उस व्यक्ति का साथ दिया, जिसने खुद को छल के जरिए उसके सामने प्रस्तुत किया।

रमेश जी की यह कहानी कई परिवारों की कहानी है, जहां आधुनिकता के नाम पर बच्चों को स्वतंत्रता तो मिलती है, लेकिन उनके संस्कारों और मूल्यों को भूलना भारी पड़ता है। बेटियों को शिक्षा और आत्मनिर्भरता देने का अर्थ यह नहीं है कि वे सही-गलत का फर्क भूल जाएं। यह कहानी हर माता-पिता के लिए एक सबक है कि बच्चों को सही दिशा में मार्गदर्शन करना आवश्यक है, ताकि वे अपनी स्वतंत्रता का सही तरीके से उपयोग कर सकें।

रमेश जी के लिए अब जीवन का एक ही उद्देश्य बचा था – अपने बचे हुए समय को इस दर्द को सहन करने में बिताना और भविष्य में किसी भी प्रकार की गलती से सबक लेना। आमिर की मुस्कुराहट और ताने उनके दिल पर कभी न मिटने वाले घाव की तरह बने रहे। इस घटना ने उनके विश्वास को बुरी तरह हिला दिया था, और उन्हें यह सोचने पर मजबूर कर दिया था कि कैसे आधुनिकता की इस दौड़ में हम अपनी जड़ों और संस्कारों को कहीं न कहीं भूलते जा रहे हैं।

       बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

मौलिक, 

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