मेरी बहु रानी – हेमलता गुप्ता : Moral Stories in Hindi

मां जी… आप इस तरह  गिड़गिड़ाती हुई बिल्कुल अच्छी नहीं लगती, मुझे तो मेरी पहली वाली कड़क और तुनक मिजाज सासू मां चाहिए! नहीं बहू मैंने तुम पर कितने जुल्म किए हैं किंतु फिर भी तुमने ही मेरी सेवा का ठेका क्यों लिया? मरने देती मुझे या मुझे मेरे कर्मों की सजा तो भूगतने देती,

अरे जिनके लिए मैंने इतना अच्छा-अच्छा सोचा, किया उन दोनों बेटे बहू ने मुझे एक महीने भी अपने घर में रखने की जरूरत नहीं महसूस की, आज विमला देवी को अपने किए पर बहुत शर्म भी आ रही थी और पछतावा भी हो रहा था, विमला देवी का भरा पूरा परिवार जिसमें तीन बेटे तीन बहुएं और एक बेटी जिसकी शादी हो गई थी थे, उनके पति का देहांत करीब 10 वर्ष पूर्व हो गया था,

विमला जी के तीनों बेटे अच्छी नौकरियों में थे और एक ही शहर में अलग-अलग मकान लेकर रहते थे दोनों बड़ी बहू विमला जी को पसंद नहीं करती थी और सारे दिन विमला जी को उल्टा सीधा सुनाती थी, किंतु दोनों बहुएं पैसे वाले घरों की थी जहां से विमला जी को भी खूब अच्छा अच्छा सामान आता था

और छोटी बहू उनके बेटे अभय की पसंद की लड़की थी जिसे विमला जी ने कभी मन से अपनी बहू स्वीकार नहीं किया था ! किंतु अभी दिवाली के दिन जब विमला जी नीचे लोन में दीपक रखने गई तभी वहां रैंप पर फिसल गई और उनकी रीड की हड्डी में फ्रैक्चर हो गया बेटे तुरंत उन्हें अस्पताल लेकर पहुंचे जब डॉक्टरों ने कहा

की मां जी को दो तीन महीने तक बिल्कुल बेड रेस्ट की जरूरत है इन्हें बिस्तर पर से हिलने भी नहीं देना है तो दोनों बड़े- बेटों और बहू के हाथ-पाथ फूल गए,  विमला जी को काम करने की आदत थी तो बैठी बैठी घर की सारी सब्जियां साफ कर देती कपड़ों की घड़ी कर देती और घर के कई छोटे-मोटे काम को निपटा देती थी,

बच्चे भी उनके साथ बहुत खुश रहते थे, अब बेटों के लिए विमला जी की बीमारी कोई आफत से कम नहीं थी, तब तीनों बेटों ने यह निश्चय किया कि इस शहर में उनका पुराना घर खाली पड़ा हुआ था जिसे वह बेचने की सोच रहे थे तो उस घर में मां को एक केयर टेकर के साथ रख दिया जाए, और जो भी खर्च होगा आपस में बांट लेंगे

इस कहानी को भी पढ़ें:

बड़े भाई सा पिता या पिता सा बड़ा भाई – लतिका श्रीवास्तव

बीच-बीच में एक-एक जना जाकर मिल आया करेगा और जरूरत का सामान भी रख आया करेगा, छोटी बहू के साथ विमला जी की कम  पटती थी  किंतु आज जब सभी  ने विमला जी की जिम्मेदारी लेने से मना कर दिया तब छोटी बहू ने सहर्ष यह जिम्मेदारी ले ली, आज के जमाने में ऐसी बहू को देखकर सभी आश्चर्य में पड़ गए,

दोनों बड़ी बहूओ ने छोटी बहू आभा को खूब समझाया.. तुम क्यों इस पचड़े में पढ़ रही हो, क्यों अपनी जिंदगी नरक बना रही हो, किंतु बिन मां की बच्ची आभा अपना फर्ज निभाना चाहती थी, और वह विमला जी को अपने साथ अपने घर ले आई, आभा ने कभी अपनी सास की तीमारदारी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी

बल्कि वह उनके सभी कामों को  पूरी प्रेम और श्रद्धा से करती थी, कभी उनकी गंदगी साफ करने में उसे घिन महसूस नहीं हुई, उसने घर के कामों के लिए काम वाली रख ली और अपनी सास  का सारा काम स्वयं करती,  उसका मानना था  सास तो साक्षात दूसरी मां है, उसके बच्चे भी उसी के जैसे संस्कारी थे

वह अपनी दादी को हर समय खुश रखने की कोशिश करते, आभा ने आते ही अपनी सास की बालों की कटिंग कर दी ताकि उनके बालों में जूए ना पड़े और ना ही उन्हें बार-बार धोने में दिक्कत  हो, पहले तो सास खूब चिल्लाई कि तूने यहां लाकर मेरे सुंदर बालों का सत्यानाश कर दिया, क्या तु इस तरह मेरी सेवा करेगी,

किंतु बाद में आभा की इतनी अच्छी सेवा देखकर विमला देवी पश्चाताप की अग्नि में झुलसने लगी, उन्हें याद आने लगा  8 साल पहले जब आभा घर में बहु बनकर आई थी वह उसे कितना जलील करती थी कभी उसके मायके से अत्यधिक सामान ना आने की वजह से कभी उसके रहन-सहन की वजह से,

कभी-कभी तो उसके मां-बाप ना होने की वजह से, आभा के हर काम में कमियां निकालना, बात-बात पर ताने देना और बड़ी बहू से उसकी तुलना करना उनके प्रिय शौक में शामिल था, किंतु आभा ने कभी भी उन्हें पलट कर जवाब नहीं दिया जबकि दोनों बहुएं विमला जी को छोटी-छोटी बात पर उल्टा सुना देती थी,

विमला जी के साथ कोई भी नहीं रहना चाहता था इसीलिए धीरे-धीरे करके तीनों बेटे अलग-अलग घर लेकर रहने लगे और चार-चार महीने के हिसाब से उन्होंने अपनी मां का बंटवारा कर लिया जब तक मां सही थी कामों में सहयोग देती थी तब वह बोझ नहीं लगी किंतु आज सभी को वह बोझ लगने लग गई,

ऐसे समय में उनकी सबसे बुरी बहू ही उनके काम आई, आभा की दोनों जेठाणिया कभी-कभी अपनी सास से मिलने आती तो  आभा  को सुनाती…. तुमने मा जी को कैसा कमजोर कर दिया तुमने मा जी के बाल क्यों काट दिए? मां जी को खाने में यह बना कर दिया करो, इत्यादि!

इस कहानी को भी पढ़ें:

अनमोल धन….!-विनोद सिन्हा “सुदामा”

ऐसे ही काफी समय बीत जाने पर जब दोनों बहुएं बेटे फिर से आए और यही सब बातें दोहराने लगे तब विमला देवी ने अपनी दोनों बहू को फटकार लगाते हुए कहा…. बैठे-बैठे जुबान चलाना बहुत आसान होता है जब मैं तुम दोनों के पास रहती थी क्या तुमने मेरी सेवा की, अरे कम से कम अब जब मैं बिस्तर पर पड़ी हूं

तुम दोनों में से किसी के मुंह से भी निकला कि कुछ दिनों के लिए मां जी को हम अपने साथ ले जाएं? नहीं तुम तो चाहती थी बुढ़िया मर जाए तो तुम्हारा भी फंद कटे और हां यह मेरी छोटी बहु रानी है इसे कुछ भी कहने की गलती मत करना, अभी मैं मरी नहीं हूं मैं इसके खिलाफ एक भी शब्द नहीं सुनूंगी

क्योंकि मुझे समझ में आ गया है की कौन सोना है कौन पत्थर है,  दिखावा करने और पालन करने में कितना अंतर होता है, तुम दोनों ने हमेशा ऊपरी मन से मेरे लिए कुछ किया होगा किंतु आभा ने एक मां की तरह मेरी देखभाल की है यह सही मायनों में इस घर की बहु रानी है मेरी बहु रानी है जिस पर मुझे बहुत गर्व है यह सुनकर बड़े वाले दोनों बेटा बहू शर्म से पानी पानी हो गए!

    हेमलता गुप्ता स्वरचित .   

  कहानी प्रतियोगिता “बहु रानी”

VM

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!