मेरी आन मेरा परिवार – बालेश्वर गुप्ता : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : देखो अनिल तुम्हारे संग सात फेरे ले मैने तुमसे नाता जोड़ा है।अपने माता पिता भाई बहन सबको बिसरा कर आयी हूँ, जीवन भर इस नये परिवार में।अब यह परिवार मेरा भी है।मुझ पर अविश्वास मत करना अनिल,मैं टूट जाऊँगी।

        आज हमारी सुहागरात है मनी,कैसी बात कर रही हो?मैं तुम पर क्यूँ अविश्वास करूँगा भला? रिलेक्स माई जान।

           अनिल और मनी की आज ही शादी हुई थी।यूँ तो दोनो एक दूसरे से पहले से ही प्रेम करते थे,पर मां को राजी कर तब शादी की थी अनिल ने। पिता थे नही,एक कॉलेज में पढ़ने वाली छोटी बहन और माँ तथा वह स्वयं ही परिवार में थे,आज मनी भी इस परिवार में जुड़ गयी थी।

घर के बिल्कुल पास में ही अनिल के चाचा भी अपने दो बेटों और एक बेटी के साथ रहते थे।दोनो परिवारों का आपस मे खूब आना जाना था।अनिल की छोटी बहन वर्षा की तो अपने चाचा की बेटी नीलम से ही पटती थी।दोनो घंटो एक दूसरे से बात चीत करती रहती।

     अनिल सॉफ्टवेयर इंजीनियर था सो सुबह ऑफिस जाकर रात्रि में ही 8 बजे तक आ पाता था। जॉब मनी भी करती थी पर उसका वर्क फ्रॉम होम था,सो मनी घर पर ही रहती थी।अपने घर के छोटे कमरे को ही मनी ने अपने ऑफिस का रूप दे रखा था।लैपटॉप,प्रिंटर,फाइल्स, सब उसी कमरे में रखे थे।

मनी ने अपने समय को इस प्रकार एडजस्ट कर लिया था,जिससे घर मे उसकी सहभागिता बनी रहे।सुबह उठकर  अनिल और वर्षा का लंच पैक कर  देना क्योकि अनिल को ऑफिस तथा वर्षा को अपने कॉलेज जाना होता था।माँ को नाश्ता करा कर दवाई देना मनी का नित्य कर्म था।उसके बाद वह अपने ऑफिसियल काम मे व्यस्त हो जाती।

रात्रि में भोजन चारो साथ करते।इस प्रकार गृहस्थी सुचारु रूप से चल रही थी।सनी की माँ यूँ तो मनी से संतुष्ट थी,क्योकि मनी कभी किसी भी शिकायत का अवसर देती ही नही थी,पर मनी को लगता माँ कहती तो कुछ नही पर उससे कुछ खिंचाव सा अवश्य रखती है।जितना उन्मुक्त व्यवहार माँ का वर्षा से रहता उसके दशांश भी उसके साथ नही रहता।

बस औपचारिक वातावरण रहता घर में।माँ शायद अनिल और मनी की शादी को मन से स्वीकार नही कर सकी थी।मुँह से तो कुछ न बोलती,पर पारिवारिक खुलापन अपनापन अधिकार की भावना का अभाव साफ दिखायी भी दे रहा था,महसूस भी हो रहा था।मनी समझ ही नही पा रही थी कि वह कौनसी अग्निपरीक्षा दे जिससे माँ उसे अपना ले?संतोष की बात बस इतनी थी कि अनिल उस पर पूरा विश्वास करता था।

     मनी अपने कर्तव्य का निवर्हन करती रही।एक दिन अपने घर के ऑफिस में उसने देखा कि प्रिंटिंग के पेपर्स समाप्त हो गये हैं।उसे आवश्यक प्रिंट निकालने थे तो मनी स्वयं ही पेपर्स लेने निकट के मार्किट चली गयी।पेपर्स खरीद घर वापसी समय उसे वही कॉफ़ी की दुकान पर पीछे से लगा कि वर्षा किसी लड़के के साथ बैठी है।

लेकिन यह समय तो वर्षा के कॉलेज का है,उसे अपने कॉलेज में होना चाहिये,हो सकता है यह वर्षा न हो,उसे वहम हो रहा है।सोचकर मनी घर की ओर अनिश्चय की स्थिति में चल दी।कुछ आगे चल कर उसकी अंतर्मात्मा ने कहा कि वहम क्यूँ रखा जाये, वर्षा उसके परिवार की इज्जत है तो उसे सुनिश्चित करना चाहिये कि वह वर्षा है या नही?

मनी वापस मुड़कर फिर उस कैफेटेरिया के पास आकर उस बैठी लड़की के सामने ही पहुँच गयी।देखकर मनी धक से रह गयी,वह वर्षा ही थी।कॉलेज छोड़ उस लड़के के साथ बिंदास वहां बैठना चोरी और गलत तो था ही।अपनी भाभी को सामने देख वर्षा भी सकपका गयी।उसकी चोरी पकड़ी गयी थी।

      मनी भाभी को वर्षा क्या कहे उसे समझ नही आ रहा था,हिम्मत करके बोली भाभी ये राजेश है।इससे आगे वो बोल नही पायी।तभी राजेश आगे बढ़ा बोला भाभी हमें बिल्कुल भी गलत मत समझना,वर्षा के सिर में दर्द था तो यह घर वापस आ रही थी कि मैं मिल गया,मैं ही वर्षा को यहां ले आया।भाभी सच तो यह है कि हम एक दूसरे को पसंद करते हैं।

इतने स्पष्ट रूप से तो स्वीकारोक्ति  अनिल भी एकदम नही कर पाया था।असमंजस की स्थिति में मनी ने कहा कि यदि तुम दोनों सच्चे और ईमानदार हो तो मैं तुम्हारी सहायता करूंगी,लेकिन जब तक मैं किसी निष्कर्ष पर पहुँचूँ तुम दोनों को मुझसे वायदा करना होगा कि तब तक तुम दोनों आपस मे नही मिलोगे, और राजेश तुम अपने घर का पता मुझे दो।

दोनो ने ही अब भाभी की अनुमति के बिना परस्पर न मिलने  का वायदा भी कर लिया।वर्षा को साथ लेकर मनी घर वापस आ गयी।मनी ने आज की घटना का जिक्र न तो माँ से किया और न ही अनिल से।मनी आज एक अनजाने बोझ से अपने को दबा महसूस कर रही थी।

       आगे कैसे वो राजेश के विषय में सही जानकारी प्राप्त करे,यह प्रश्न ही मनी को आंदोलित कर रहा था।तभी अनिल ने घर आकर सूचना दी कि      तीन दिन बाद रविवार को वर्षा को देखने के लिये लड़के वाले आ रहे हैं, मनी सब तैयारी तुम्हे ही करनी है।यह सुनकर मनी हतप्रभ रह गयी तो वर्षा बस कातर दृष्टि से अपनी भाभी को देखती रह गयी।

       अब वह घड़ी आ गयी थी जब उसे हर हाल में वर्षा और राजेश के बारे में निर्णय लेना ही था।आंखों आँखों में वर्षा को ढ़ाढस बंधा कर मनी आगे की योजना पर विचार करने लगी।

     अगले दिन ही मनी राजेश द्वारा दिये पते पर पहुंच गयी।मनी ने निश्चय कर लिया था कि वह सीधे राजेश के पिता से राजेश के सामने ही बात करेगी।इससे राजेश की गंभीरता तथा अपने प्रेम के प्रति उसकी प्रतिबद्धता का तो पता चलेगा ही,साथ ही उसके परिवार के दृष्टिकोण को समझने में सहायता मिलेगी।बिना राजेश को सूचित किये मनी ने राजेश घर जिसे कोठी कहना उपयुक्त होगा,की घण्टी बजायी और आगंतुक से राजेश के पिता से मिलने को कहा।

ड्राइंग रूम में बैठी मनी राजेश के पिता का इंतजार कर ही रही थी कि राजेश के साथ उसके पिता भी आ गये।राजेश ने चौंक कर मनी भाभी को देख उन्हें हाथ जोड़कर नमस्ते  की और पिता की ओर देख बोला पापा ये ही है वर्षा की भाभी।अब चौकने की बारी वर्षा की थी।

साफ था कि राजेश अपने और वर्षा के विषय मे अपने पिता को पहले ही बता चुका था।परिचय जानकर राजेश के पिता प्रसन्न हो वर्षा के अभिवादन का उत्तर दे बहुत ही स्नेह भाव से मनी से बैठने का आग्रह किया।सब कुछ जैसे जादू सा हो रहा था,सम्मोहित सी मनी सकुचाई सी बैठ गयी।

        मनी के आश्चर्य और संकोच को देख राजेश के पिता सेठ मुरारीलाल ने स्वयं ही मनी को संबोधित करते हुए कहा कि बेटा राजेश ने मुझे सब कुछ बता दिया है, वह मुझसे न तो कुछ छिपाता है और न ही झूठ बोलता है।अच्छा हुआ बेटा तुम आ गयी,हम शनिवार को ही आपके घर आने वाले थे।

मनी बेटा पहले तुम ही बताओ राजेश वर्षा की जोड़ी तुम्हे पसंद तो है।हक्की बक्की मनी कह तो कुछ ना सकी, बस उठकर राजेश के सिर पर हाथ रख दिया। मुरारीलाल जी बोले मनी बेटा तुम अपने घर अभी कुछ मत कहना,मैं खुद ही अनिल से वर्षा के लिये हाथ मांगूगा।मनी ने मुरारीलाल जी के पांव छू कर विदा ली।

      अगले दिन ऑफिस से आकर  अनिल ड्राइंग रूम में माँ और मनी को जोर से आवाज देकर बुलाया और प्रसन्ता पूर्वक बोला आज तो कमाल हो गया।नगर के प्रसिद्ध सेठ मुरारीलाल जी ने अपने बेटे के लिये वर्षा का हाथ मांगा है।हम तो सपने में भी वर्षा के लिये ऐसे घर के विषय मे सोच भी नही सकते थे।

        शनिवार को मुरारीलाल जी राजेश और अपनी पत्नी के साथ अनिल के घर आ गये।अनिल की माँ भी बेहद खुश थी आखिर उनकी बेटी एक बड़े घर की बहू बनने जा रही थी।रिश्ता तय हो गया,अनिल ने राजेश को टीका कर दिया,राजेश की माँ ने वर्षा की गोद भराई की रश्म भी अदा कर दी।

        विदाई लेते समय सेठ मुरारीलाल बोले जानते हो अनिल हमने वर्षा को बहू रूप में क्यो स्वीकार किया?तुम्हारी पत्नी मनी के कारण,जिसने राजेश और वर्षा को एक साथ देखकर इतना ही कहा कि जब तक मैं संतुष्ट न हो जाऊं तब तक तुम नही मिलोगे।और यह खुद हमारे घर आ गयी। जहां की बहू अपनी ससुराल को अपना परिवार और अपनी आन मानती हो तो वह घर इतना संस्कारित होगा कि वहां यदि हम रिश्ता करते हैं तो यह हमारे लिये ही सौभाग्यशाली होगा।

      अनिल का सीना मनी के कारण गर्व से चौड़ा हो गया था और माँ तो मनी को बार बार अपने से चिपटा चिपटा जा रही थी।

         बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

    मौलिक और अप्रकाशित।

ससुराल

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