सप्ताह में एक बार मुलाक़ात के दौरान सब क़ैदियों से मिलने के लिए कोई ना कोई आ ही जाते थे लेकिन अंजलि से मिलने के लिए आज तक कोई नहीं आया था ।
जेल की सुपरिटेंडेंट कमला देवी अंजलि को चाहती थी । वे पिछले तीन साल से अंजलि को देख रहे थे। वह कभी भी किसी से बात नहीं करती थी । अपने काम से मतलब रखती थी । उसे देख कर कोई नहीं कह सकता था कि उसने अपने पति की हत्या की है।
जेलर जो कुछ दिन पहले ही आई थी । उसने सुपरिटेंडेंट कमला देवी से पूछा मेम यह अंजलि कभी किसी से बात नहीं करती है । किसी ने मुझे बताया था कि उसने पति की हत्या की है उसे देख कर नहीं लगता है कि उसने ऐसा कुछ किया होगा ।
कमला देवी ने कहा कि हाँ तुमने ठीक सुना है । वह किसी से बात नहीं करती है । उससे कोई मिलने भी नहीं आता है । अकेले बैठे हुए कुछ ना कुछ पढ़ती रहती है । तुम्हें मालूम है वह डिग्री फ़ाइनल ईयर में है ।
मैंने कई बार उससे पूछने की कोशिश की थी पर उसने कभी अपनी ज़ुबान ही नहीं खोली।
मुझे पता है कि यहाँ आया हुआ हर कैदी क्रिमिनल नहीं होता है । एक क्षणिक आवेश में की गई गलती की सजा वे लोग भुगततें हैं । मैं सिर्फ़ उसे यही समझाने की कोशिश करती हूँ कि तुम्हारे अच्छे व्यवहार से तुम्हारी सजा कम हो सकती है । वह मुस्कुराते हुए मुझे देखती रहती थी बस ।
उस दिन सारे कैदी आश्चर्य चकित हो गए थे जब मुलाक़ात के दौरान जेलर ने आकर अंजलि से कहा कि तुम्हारी माँ तुमसे मिलने आई है ।
अंजलि खुद भी आश्चर्य से अपनी आँखें फाड़कर उन्हें देखने लगी थी फिर होश आते ही भागते हुए उस जगह पहुँची ।
माँ बेटी दोनों एक दूसरे को आँखों में आँसू भरकर देख रही थी। अंजलि ने कहा कि माँ पिताजी को ग़ुस्सा आएगा जब उन्हें पता चलेगा कि आप मुझसे मिलने आई हैं।
माँ ने कहा कि उन्होंने ही मुझे भेजा है । अंजलि ने धीरे से पूछा माँ मेरे बच्चे कैसे हैं ।
बेटा अभी वे हमारे ही घर पर हैं । हमने उन्हें स्कूल में भर्ती करा दिया है। एक दिन तुम्हारे पिताजी ने देखा कि वे बाज़ार में भीख माँग रहे थे । उन्हें उन पर दया आई और अपने साथ घर ले आए । आज वे हमारे पास ही हैं । वे दोनों अच्छे से पढ़ रहे हैं । मैं अगली बार जब आऊँगी तब उन्हें साथ लेकर आऊँगी।
अंजलि के बच्चे उसकी माँ के साथ मुलाक़ात के दौरान उससे मिलने आए थे । वे दोनों अंजलि को देखते ही डरकर नानी के पीछे छुप गए थे ।
उन्हें स्कूल में और आसपास के लोगों से पता चला था कि उनकी माँ ने पिताजी की हत्या कर दी है । इसलिए वे उसे देखते ही डरकर नानी के पीछे छुप गए थे । उसके बाद फिर कभी वे माँ से मिलने नहीं आए थे ।
अंजलि को लगा जिन बच्चों के लिए उसने ऐसा कदम उठाया था आज वे ही बच्चे ही उससे डर रहे हैं । महेश जिस पर उसने माता-पिता से भी ज़्यादा विश्वास किया था वह मेरे साथ ऐसा व्यवहार करेगा यह कभी सपने में भी नहीं सोचा था ।
अंजलि के सदव्यवहार के फलस्वरूप उसे सात साल में ही जेल से रिहा कर दिया था ।
वहाँ के हर एक क़ैदी के दिल में अंजलि ने जगह बना लिया था । वहाँ महिलाओं को सिलाई कढ़ाई कुकिंग आदि सिखाते थे । अंजलि ने बारहवीं पास किया था इसलिए उसे डिग्री पढ़ाया गया था ।
वह पढ़ने में और दूसरे कामों में भी सबकी मदद कर देती थी । इसलिए उसके रिहा की ख़बर सुनते ही सबकी आँखें भर आईं थीं ।
जेलर और कमला देवी ने उसकी रिहाई पर दो शब्द कहते हुए कहा था कि लोग क्षणिक आवेश में आकर ही ग़लतियाँ कर बैठते हैं । उस समय अगर आप अपने ग़ुस्से पर नियंत्रण रखने की कोशिश करेंगे तो बहुत सारे हादसों के होने की संभावना कम हो सकती है।
उन्होंने सबके सामने अंजलि को बुलाकर उससे दो शब्द कहने के लिए कहा पहले तो वह ना नुकर करती रही परंतु जब कमला देवी ने कहा कि शायद लोगों को तुम्हारे जीवन से कुछ सीख मिल जाए ।
उसने अपने बारे बताना शुरू किया ।
मेरा नाम अंजलि है । मेरे पिताजी एक फ़ैक्ट्री में वाचमेन का काम करते थे । उन्होंने कम सेलरी में ही हम तीन बहनों का पालन पोषण किया था । मैं जब दसवीं कक्षा में थी तब ही मेरी बड़ी दोनों बहनों की शादी हो गई थी ।
पिताजी मुझे बहुत पढ़ाना चाहते थे मैं सबसे छोटी थी इसलिए मुझसे बहुत प्यार करते थे । परी , रानी , बिटिया जो मन में आए बुलाते थे ।
हम एक बस्ती में रहते थे । मैं रोज स्कूल पैदल ही जाती थी । एक दिन मुझे स्कूल जाने के लिए बहुत देरी हो गई थी ।
वहीं बस्ती में ही एक आटो रिक्शा था मैंने उसे स्कूल का पता बताकर कहा जल्दी से ले जाओ स्कूल पहुँचाना मुझे देरी हो रही है ।
उसने मुझे स्कूल तक पहुँचा दिया था । उसके बाद से वह रोज मुझे गली में मिलने लगा था । मैं भी उसकी तरफ़ देखती थी ।
मैंने देखा कि वह बहुत ही हेंडसम था । उसके घुंघराले बाल और छह फुट लंबी कद ने मुझे उसकी तरफ़ देखने के लिए मजबूर कर दिया था ।
मैंने जब उसका नाम पता किया तो मुझे बहुत ख़ुशी हुई थी । उसका नाम महेश है । महेश नाम मेरा फ़ेवरेट था। हम रोज़ एक दूसरे को देखते रहते थे।
मेरी बारहवीं ख़त्म होते ही हमने एक दूसरे से बातचीत की और शादी करने का फ़ैसला भी कर लिया था ।
हम दोनों ने घर में बताना चाहा परंतु हमें मालूम है कि हमारे दोनों के माता-पिता इस शादी पर अपनी मंज़ूरी की मोहर नहीं लगाएँगे क्योंकि हम दोनों अलग अलग जाति के थे ।
इस बीच मेरे घर में मेरे प्यार के बारे में जानकारी मेरे माँ पिता को मिल गई थी । माँ ने मुझे बहुत मारा और मेरा घर से बाहर निकलना बंद करवा दिया था ।
एक दिन दोपहर में माँ सो रही थी कि महेश का एक दोस्त आया और कहने लगा कि जल्दी से चलो मंदिर में शादी की तैयारियाँ हो गई हैं । मैंने आव देखा न ताव सीधे घर के कपड़ों में ही उसके साथ चली गई थी ।
मुझे ना घर की चिंता हुई और ना ही माता-पिता की सिर्फ़ महेश के बारे में सोचकर बिना पीछे मुड़े सीधे मंदिर पहुँच गई थी । वहाँ महेश के दोस्तों ने शादी की पूरी तैयारी कर ली थी ।
मैं भी तैयार हो कर मंडप में बैठ गई।
मेरी शादी महेश के साथ आधे घंटे में हो गई थी गले में मंगलसूत्र भी पड़ गया था । हमने वहीं से दोस्तों के साथ होटल में जाकर खाना खाया और महेश के एक दोस्त के घर पर सुहागरात भी मनाया ।
दूसरे दिन सुबह तैयार होकर हम दोनों महेश के माता-पिता के पास पहुँचे । उन लोगों ने हमें बुरा भला कहा और घर के अंदर नहीं आने दिया ।
हम दोनों ने वहीं दूसरी गली में घर ले लिया और साथ में रहने लग गए ।
महेश किराए पर ऑटो लेकर चलाता था । वह बहुत ही मेहनती भी था । मेरा बहुत ख़याल रखता था। पैसे लाकर मेरे हाथ में रख देता था । वह कहता था कि धीरे-धीरे पैसे जमा करके हम अपना एक ऑटो ख़रीद लेंगे । इस बीच हमें पता चला कि मैं माँ बनने वाली हूँ ।
उसने मेरा बहुत ख़याल रखा । हमारा बेटा पैदा हुआ था । हमने उसका नाम मौर्य रखा था ।
एक रात महेश शराब पीकर घर आया था तो मैं दंग रह गई थी । मेरे पूछने पर उसने कहा कि दोस्तों ने जबरन पिला दी है ।
जब से हमारा दूसरा बेटा हुआ है महेश पूरी तरह से बदल गया था । वह घर में पैसे नहीं देता था और ना ही हमारी ख़बर लेता था । वह हर वक़्त शराब के नशे में धुत्त रहता था ।
उसके शराब पीने के कारण उसे किराए पर ऑटो चलाने के लिए नहीं मिल रही थी । अब आए दिन मुझे और बच्चों को मारना घर के सामान चुराकर ले जाने का काम करने लगा था ।
मैं उसकी इन हरकतों से तंग आ चुकी थी । माता-पिता साथ नहीं दे रहे थे। पिताजी ने मेरा अंतिम संस्कार कर दिया था । बच्चों को खाना देना भी मुश्किल हो गया था । इसलिए मैं दूसरों के घरों में काम करने के लिए जाने लगी थी। महेश को यह भी पसंद नहीं आया था और वह एक दिन रात को बेंत से मारने लगा था कि काम पर नहीं जाएगी ।
उस दिन उसकी मार से मैं अधमरी हो चुकी थी । मुझे महेश से नफ़रत होने लगी थी ।
वह रात को फिर पीकर आया था माँ के घर खाकर आया था । अब वे दोनों मिल गए थे मैं और मेरे बच्चे ही पराए हो गए थे । उसे इस तरह निश्चिंत सोते हुए देख रही थी ।
पहले तो मैं सोचती थी कि आत्महत्या कर लूँ । फिर अपने बच्चों का मुँह देखा लगता था कि मेरे बाद इनका क्या होगा । मैं जब हूँ तब ही बिचारे आधा पेट खाना ही खा पाए थे । महेश ने ज़बरदस्ती बच्चों की थाली से खाना लेकर खा लिया था । इसलिए मेरे बच्चे भूखे ही सो रहे थे ।
बच्चों को इस हालत में देख कर मुझे महेश पर इतना ग़ुस्सा आ रहा था कि मैं मन ही मन में सोच रही थी कि मेरे साथ ऐसा व्यवहार करोगे कभी सपने में भी नहीं सोचा था महेश । इसलिए मैंने तकिया लिया और उसके मुँह पर रख कर उसे मार डाला ।
दूसरे दिन सुबह मैं और बच्चे दोनों रो रहे थे । महेश के माता-पिता आ गए और सब मुझसे पूछने लगे थे कि कल तक ठीक था अचानक ऐसा क्या हो गया है कि वह मर गया है ।
महेश के जीजा ने जब जोर से धमकी देकर पूछा तो डरकर मेरे मुँह से निकल गया था कि उसकी मार से तंग होकर मैंने ही उसे मार दिया है ।
यह सुनते ही पुलिस को बुला लिया गया और महेश की माँ ने मुझे बहुत मारा ।
मुझे आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई थी । उसने कमला देवी की तरफ़ देखकर उसने कहा कि यह तो अच्छा हुआ था कि आप दोनों मुझे मिल गए और मेरे अच्छे व्यवहार के कारण सात साल में ही मेरी रिहाई हो गई है ।
एक बात है कि जिन बच्चों के लिए मैंने यह सब किया है। वे अब मेरी शक्ल भी देखना नहीं चाहते हैं ।
जो माता-पिता पहले मेरी परछाई को भी पसंद नहीं करते थे वे ही मेरे बच्चों को पाल रहे हैं ।
लोगों को मैं यही सीख देना चाहती हूँ कि माता-पिता की मर्ज़ी के बिना प्यार के चक्कर में पड़ कर गलत व्यक्ति के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए ।
दूसरी बात यह है कि क्षणिक आवेश में आकर हमें कोई ऐसा काम नहीं करना चाहिए कि हमें आजीवन पछताना पड़े ।
मैंने गलती की थी यह सच है परंतु जब मैं तकलीफ़ में थी तब मेरे माता-पिता मेरी मदद करते तो शायद मैं यहाँ तक नहीं पहुँचती थी ।
अंजलि रिहा होकर घर पहुँची । आस पड़ोस के लोग उनसे बातें नहीं कर रहे थे । उसे कहीं भी नौकरी नहीं मिल रही थी। पिताजी गुजर गए थे । उनके पेंशन से घर चल रहा था । अंजलि फिर से कमला देवी से मिली तब उन्होंने उसकी नौकरी एक एन जी ओ में लगवा दी थी । आज बच्चे बाहर चले गए थे । और अंजलि माँ के साथ रह रही है ।
के कामेश्वरी
हमेशा की तरह ये कहाणी भी मोटिवेशनल हैं. हम जेलर कि बात से सहमत हैं.
Check ur spelling at first @TriptiKukade,