उस अधिकारी के ऐसे घटिया वाहियात शब्द सुनकर भारती का खून खौल गया और उसने उन्हें बाहर का रास्ता दिखाते हुए कहा, सुनिए,यह मेरा घर एक मंदिर है और इस मंदिर के देवता मेरे पति हैं जिनकी पुजारन बन कर मैं उनकी पूजा करती हूं।
भारती के पति के देहांत के बाद उनके एम डी साहब ने भारती से कहा,आप अपना ऊपर का मकान हमारे विभाग के लिए किराए से दे दीजिए। आप और आपके बुजुर्ग सास श्वसुर की देखभाल भी आफिस वाले कर लेंगे और आपको उन सबका सहारा भी मिल जाएगा।
कभी उनकी तबियत खराब हो गई तो अकेले आप परेशान हो जाएंगीं। एक तरफ आपकी नौकरी और दूसरी तरफ आपका परिवार। कैसे सामंजस्य बिठा पायेंगी अकेले।
आफिस वाले हर तरह की आपकी मदद कर देंगे। अब आपकी जिम्मेदारी हम सब की जिम्मेदारी भी है। पहले तो भारती नहीं मानी पर सबने समझाया तो मान गई और मकान आफिस के लिए किराए से दे दिया। पहले जो अधिकारी आये वो उसके पति के दोस्त थे अतः सचमुच में उन्होंने उसकी बहुत सहायता की। अपनी जीप से आवश्यकता पड़ने पर जहां जाना चाहती वहां भिजवा देते। उसके श्वसुर या सास बीमार होते तो अस्पताल भिजवाते अर्थात हर तरह की एक बड़े भाई जैसे मदद करते।
उनका ट्रांसफर हो गया और उनकी जगह एक नए अधिकारी ने आफिस ज्वाइन किया।
एक दिन भारती के घर नए अधिकारी अनिल अफसोस जताने आये। भाभी जी आपके साथ बहुत बुरा हुआ। पर आप चिंता ना करें। कोई भी काम हो मुझसे कहियेगा। कहते कहते भारती के कंधों पर हाथ रखते हुए बोले, मैं भी अकेला हूं आप भी अकेली हैं,हम दोनों का साथ रहेगा तो बहुत बढ़िया जीवन बीतेगा।आप समझ रहीं हैं ना,जो मैं कहना चाहता हूं।
उनके ऐसे घटिया “शब्द सुनकर भारती का खून खौल गया।”
उसे बहुत जोर से गुस्सा आ गया। उसने चंडी का भयंकर रूप धारण करते हुए चीख कर कहा,” ये मेरा घर एक मंदिर है।इसके देवता मेरे पति हैं “इसे अपवित्र करने की आप सोच भी कैसे सकते हैं? आप जल्द से जल्द मेरा मकान खाली करिए।आप अभी यहां से निकलिए और आइंदा मेरे घर में कदम मत रखना। मैं आपकी शकल दोबारा ना देखूं वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।
उसने एम डी साहब से भी शिकायत की और मकान खाली करने के लिए कह दिया। एक हफ्ते के अंदर मकान खाली हो गया। भारती का क्रोध शांत हो गया और उसने राहत की सांस ली।
सुषमा यादव
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
#ऐसे शब्द सुनकर मेरा खून खौल गया !