“बेटी,बड़ी हो रही है अभी भी आप उसके साथ बच्चों की तरह आंख मिचौनी खेलते रहते हैं।”रमा झल्लाते हुए बोली।
“रमा,यही तो समय है जितना अपनी बेटी का साथ लाड लगा सकूं उसके साथ मस्ती कर सकूं।बड़ी होकर तो ये अपने ससुराल चली जाएगी।क्या पता फिर इससे मिलने के लिए भी तरस जाऊं।”सुरेश जी कहते कहते भावुक हो गए।
“वो तो सब ठीक है पर इसके साथ-साथ बेटी को कुछ जिम्मेदारी की बाते भी बताया करो ना,कल को उसे ससुराल जाना है।वहां सब ऐसा मस्ती मजाक थोड़ी चलेगा।”“ठीक है,अभी शांत हो जाओ समय आने पर मैं उसे सब
समझा दूँगा।”
मम्मी की बातें सुनकर प्रांजल रूठकर अपने कमरे में चली उठ गई।
प्रांजल अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी।वैसे पढ़ने में होशियार थी पर पापा के साथ घूमना-फिरना मस्ती करना उसे अच्छा लगता था क्योंकि सुरेश जी उसके साथ बिल्कुल दोस्त की तरह व्यवहार करते थे वहीं
उसकी मम्मी हमेशा टोका टाकी करती रहती थी..ये मत करो..वो मत करो..!
सुरेश जी जैसे तैसे प्रांजल को नाश्ते के लिए मनाकर लेकर आए तो रमा नाश्ता लेकर आ गई और तंज कसते हुए बोली-“आओ महारानी नाश्ता कर लो,तुम्हारी रूठने मनाने के चक्कर में सबको लेट हो जाता है।”
“हाँ.. तो किसने कहा था आपसे मेरा इंतजार करने के लिए आप लोग खा लेते ना।”प्रांजल गुस्से से बोली।
“रमा तुम भी कभी-कभी हद करती हो..अभी ये ताना मारना जरूरी था क्या?”सुरेश जी नाराज होते हुए बोले।
नाश्ता करते करते प्रांजल की आंखों में आंसू आ गए।सुरेश जी उसेे प्यार से सहलाते हुए बोले-“बेटा खाते समय रोते नहीं हैं नहीं तो खाना हमारे तन को नहीं लगता।”
“पापा,मम्मी जब देखो ताना मारती रहती है..कभी मेरी पढ़ाई को लेकर..तो कभी आपके साथ खेलने को लेकर।”
“बेटा तुम्हारी मम्मी तो बस यही चाहती है कि तुम पढ़ाई के साथ साथ घर की जिम्मेदारियों को भी समझो क्योंकि शादी के बाद तो तुम्हें ससुराल जाना है।वो नहीं चाहतीं कि कल को उनकी बेटी को कुछ सुनना पड़े।मम्मी
तुम्हारी दुश्मन नहीं दोस्त हैं इसलिए उनकी बातों का बुरा नहीं माना करो।”
“पर पापा आपके साथ मस्ती करने का भी तो यही समय है ना।”
“बेटा,पर सीखने का भी तो यही समय है ना।अगर हम समय का सदुपयोग नहीं करते तो पीछे रह जाते हैं।चलो तुम जल्दी से नाश्ता फिनिश कर लो फिर मैं तुम्हें आज अपनी कहानी के जरिए ये बताऊंगा कि मैंने कैसे समय
को व्यर्थ नहीं जाने दिया इसलिए आज कुछ बन पाया।”
“सच पापा।”
“हाँ,बिल्कुल सच।”
कहानी सुनने की उत्सुकता में प्रांजल ने फटाफट नाश्ता खतम कर दिया और बोली-“चलो पापा अब सुनाओ अपनी कहानी।”
सुरेश जी ने अपनी अपनी कहानी सुनाना शुरू कर दिया…
“तुम्हारे दादा जी न्यूज़ पेपर बाँटने का काम करते थे।तुम्हारी दादी अक्सर बीमार रहती थीं इसलिए दादा जी को घर के काम भी करने पड़ते थे।सुबह मुझे तैयार करके स्कूल भेज देते फिर पेपर बाँटने निकल जाते थे।दोपहर को घर आते फिर जैसा खाना उनसे बनता वो हमें बनाकर खिलाते थे।
बड़ी मुश्किल से घर का गुजारा चल रहा था।।मेरे पास स्कूल की एक ही ड्रेस थी उसे ही रोज धोकर पहन लेता था।एक दिन दादा जी ने बोला मेरे पास तुझे पढ़ाने के लिए पैसे नहीं हैं।अगर पढ़ना है तो तू भी पेपर बाँटने का काम करले।
मोहल्ले के बच्चों को खेलते हुए देख,मेरा भी मन खेलने का करता था।पर मैं पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बनना चाहता था इसलिए हालात से समझौता कर लिया।सुबह पेपर बांटने जाता उसके बाद फिर स्कूल जाता।थोड़ा और बड़ा हुआ
तो बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया।ऐसे करते करते एक दिन मैंने इंजिनियरिंग की पढ़ाई कर ली।मुझे बड़ी कम्पनी में नौकरी मिल गई।घर के हालात धीरे-धीरे अच्छे होने लगे।फिर तुम्हारी मम्मी से मेरी शादी हो गई।
आज मैं बड़ी कम्पनी में अच्छे पद पर हूँ,मेरे पास गाड़ी बंगला सब कुछ है।यदि मैं अपने बचपन का वो समय खेलने-कूदने और घूमने-फिरने में गँवा देता तो शायद आज पेपर ही बेच रहा होता।इसलिए तो तुम्हें मम्मी समझाती हैं,कि जो समय मिला है उसका लाभ उठाओ..कुछ सीखो क्योंकि ये वक्त जिंदगी में दुबारा नहीं मिलेगा।”
सुरेश जी एक साँस में सब बोल गए।उनकी आँखें नम हो गईं।
प्रांजल ने आज पहली बार अपनी पापा की आँखों में आँसू देखे तो उसका दिल पसीज गया।प्यार से सुरेश जी के गले में बाँहे डालते हुए बोली-“पापा,अब से मैं भी व्यर्थ की बातों में समय नहीं गवाऊंगी। पढ़ाई के साथ साथ घर के काम भी सीखूंगी।किसी को कोई शिकायत का मौका नहीं दूंगी और एक दिन आपका नाम रोशन करूंगी…आपसे मेरा ये वादा रहा।आप मेरा गुरुर हो।”
तभी रमा भी वहाँ आ गई,बेटी की बात सुनकर उसकी आँखों में खुशी के आँसू आ गए।आज उसे महसूस हो रहा थे कि उसकी बेटी सचमुच बड़ी हो गई है।
प्रांजल ने जो वादा अपने पिता से किया था वो पूरा करके दिखाया।आज वो नौकरी के साथ साथ ससुराल की जिम्मेदारियों को भी बखूबी निभा रही है।
कमलेश आहूजा
# गुरूर